Bengal Chunav: विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने निकली भाजपा उम्मीदवार के काफिले पर हमला
West Bengal Chunav 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव में बारानगर सीट से चुनाव लड़ रहीं पर्णो मित्रा ने आरोप लगाया कि हमलावर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के थे। उन पर 24 घंटे पर यह दूसरा कथित हमला है। विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने निकली भाजपा उम्मीदवार के काफिले पर हमला
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल में भाजपा नेता पर्णो मित्रा के काफिले पर बुधवार को कथित तौर पर हमला किया गया। यह हमला उन पर उस समय हुआ जब वह विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने निकली थीं। बंगाल विधानसभा चुनाव में बारानगर सीट से चुनाव लड़ रहीं पर्णो मित्रा ने आरोप लगाया कि हमलावर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के थे। उन पर 24 घंटे पर यह दूसरा कथित हमला है।
भाजपा नेत्री पर्णो मित्रा ने कहा, 'उन्होंने मुझ पर हमला करने की कोशिश की वे मेरे वाहन के अंदर भी घुस गए, लेकिन वे मुझे पकड़ नहीं पाए क्योंकि मेरे कार्यकर्ता मेरी सुरक्षा कर रहे थे। वे पागल थे।' उन्होंने कहा, 'मैं बंगाली फिल्मों में एक स्टार हूं। लेकिन एक भाजपा कार्यकर्ता के रूप में, मेरे जीवन का खतरा है। मुझे हर दिन डर लगता जब मैं घर से बाहर निकलती हूं। क्योंकि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोनार बांग्ला (स्वर्णिम) सपने को साकार करना चाहती हूं।
बंगाल विधानसभा चुनावों के बीच कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जो लोकतांत्रिक मूल्यों को चोट पहुंचाने के साथ ही हताशा को भी प्रदर्शित करती हैं। हिंसा लोकतंत्र में जायज नहीं है, इस लाइन को हम दोहराते आए हैं। दुर्भाग्य से बंगाल में कोई चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से नहीं होता है। यह क्रूर सत्य होने के साथ हमारे लोकतंत्र की विफलता का एक भद्दा उदाहरण भी है। राजनीतिक हिंसा के साथ-साथ आज कई ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनका विश्लेषण करने पर हम ऐसे परिणाम तक पहुंचने का प्रयास करेंगे, जो तथ्य और सत्य के करीब हो।
बंगाल में चुनाव के समय हिंसा मतदाताओं को वोट डालने से रोकती है। हमें इसके एक बारीक पक्ष को समझना पड़ेगा। यह हिंसा वोटिंग रोकने के लिए तो होती ही है, पर इसका असल मकसद एक खास वर्ग के मतदाताओं को मतदान करने से रोकना होता है। लोकतंत्र में पंचायत का चुनाव हो, विधानसभा का या लोकसभा का हो, इसे हम लोकतांत्रिक पर्व के रूप में मनाते हैं। इस पर्व को सबसे ज्यादा वीभत्स बनाने का काम तृणमूल ने किया है। हमें बंगाल के 2018 के पंचायत चुनाव से इसको समझना होगा। आंकड़े बताते हैं कि उस चुनाव में पंचायत की 58,692 में से 20,076 सीटों पर बिना चुनाव हुए ही विजेता घोषित कर दिया गया था।