जंगल महल के जनादेश में सब पर भारी राम

पश्चिम मेदिनीपुर जिला अंतर्गत राजनीतिक हलकों में मेदिनीपुर

By JagranEdited By: Publish:Thu, 23 May 2019 06:36 PM (IST) Updated:Fri, 24 May 2019 06:29 AM (IST)
जंगल महल के जनादेश में सब पर भारी राम
जंगल महल के जनादेश में सब पर भारी राम

तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : पश्चिम मेदिनीपुर जिला अंतर्गत राजनीतिक हलकों में मेदिनीपुर समेत जंगल महल की अन्यान्य सीटों पर ताजा जनादेश में छिपे कारक तत्वों में वाम और राम को महत्वपूर्ण माना गया। जनता के फैसले से शासक दल तृणमूल कांग्रेस सकते में थी, वहीं भाजपा समेत अन्यान्य दलों में जनादेश के इसी कोण से व्याख्या की जाती रही।

मेदिनीपुर व साथ लगती सीटों पर गुरुवार की सुबह मतगणना शुरू होते ही जंगल महल में कमल ही कमल खिलने के संकेत मिलने लगे। निश्चित रूप से ये संकेत शासक दल तृणमूल कांग्रेस खेमे को बेचैन करने वाले थे। हालांकि कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि मतगणना की गति बढ़ने के साथ अशुभ संकेत अपने-आप दूर होते जाएंगे, लेकिन मतगणना के अंतिम दौर में पहुंचने तक यह नहीं हो सका। मेदिनीपुर संसदीय क्षेत्र से केवल एक बार मतगणना के मध्य में तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार मानस भुइयां अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी दिलीप घोष पर बढ़त बना सके। वहीं झाड़ग्राम समेत अन्यान्य सीटों पर भगवा ब्रिगेड अंत तक बढ़त पर रहा। खास तौर से बांकुड़ा जैसी प्रतिष्ठित सीट पर सुब्रत मुखर्जी सरीखे वरिष्ठ नेता का पिछड़ना तृणमूल कांग्रेस शिविर को बेचैन करता रहा। भगवा शिविर का उत्साह समुद्र की तरंगों की तरह उछाल मारता रहा। परिणाम के रुझान को देखते हुए वामपंथी और कांग्रेस समेत तमाम दल शुरू से ही खुद को दौड़ से बाहर मान चुके थे। जंगल महल के एक मतगणना केंद्र के बाहर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के शिविर में मुट्ठी भर कार्यकर्ता उदास बैठे हुए थे। बातचीत में पार्टी की दशा-दिशा पर अफसोस जाहिर करते हुए कार्यकर्ता कहते सुने गए कि पार्टी के बुरे वक्त में ज्यादातर ने साथ छोड़ दिया। हमने हारे हुए मन से चुनाव को महज औपचारिकता के तौर पर लिया। जिसकी परणिति आज इस परिणाम के तौर पर सामने आई।

वामपंथियों में मायूसी

मतगणना केंद्रों के बाहर लगे वामपंथी शिविरों में यूं तो चुनाव नतीजों से मायूसी थी, क्योंकि प्रदेश में उनका सूपड़ा साफ हो चुका था, लेकिन इस संघर्ष में उन्हें केवल एक बात का संतोष था कि संसदीय चुनाव 2019 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सोचनीय प्रदर्शन के पीछे अप्रत्यक्ष रूप से वामपंथियों का हाथ है। अनौपचारिक बातचीत में नेता व कार्यकर्ताओं का दावा था कि शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामांचलों तक में वामपंथियों की अप्रत्यक्ष भूमिका के चलते ही तृणमूल कांग्रेस के पैर उखड़े। नेताओं की दलील रही कि 2011 में सत्ता परिवर्तन के बाद से शुरू हुए अनवरत पराभव से वामपंथी कार्यकर्ता सांगठनिक दुर्बलता से मायूस और दिशाहीन हो चुके थे। लिहाजा बड़े दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए छोटे शत्रु का साथ देने के सिवा उनके पास कोई विकल्प नहीं रह गया था, क्योंकि संसदीय राजनीति में वामपंथियों की हैसियत संघर्ष करने की भी नहीं रह गई है, जबकि तृणमूल कांग्रेस नेता पहले से दावा करते आ रहे हैं कि जंगल महल समेत प्रदेश में भाजपा के उत्थान के पीछे राम नहीं बल्कि वाम है। आज मतगणना वाले दिन अनौपचारिक बातचीत में खुद वामपंथियों ने भी दबी जुबान से इस सच्चाई को स्वीकार किया।

चितन की मुद्रा में टीएमसी

जंगल महल की सीटों के चुनाव नतीजे को ले शासक दल तृणमूल कांग्रेस खेमा मायूसी में डूबा था। तीन अधिकारी दीपक (घाटाल से उम्मीदवार देव) तथा कांथी के शिशिर और तमलुक के दिव्येंदु की प्रतिष्ठा बचने का खेमे को संतोष था, लेकिन मेदिनीपुर समेत जंगल महल की अन्यान्य सीटों पर हुई पराजय से नेता व कार्यकर्ता मायूस थे। दलीय नेताओं का दावा है कि बदहाली से ग्रस्त जंगल महल को माओवादियों के चंगुल से आजादी दिलाने के साथ ही विकास के अभूतपूर्व कार्य तृणमूल कांग्रेस सरकार ने किए हैं। इस खेमे के नेता भी चुनाव नतीजों के पीछे वाम और राम की भूमिका देखते रहे। यह भी माना गया कि आंचलिक स्तर पर सक्रिय दलीय नेताओं के अहंकारपूर्ण व्यवहार के चलते लोग टीएमसी से दूर हुए।

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नतीजों की तत्काल व्याख्या उचित नहीं होगी। हम हार के कारणों का विश्लेषण कर भविष्य की दिशा तय करेंगे।

- दीनेन राय, विधायक, तृणमूल कांग्रेस

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हमारा नारा 19 में हाफ 21 में साफ साकार होगा। जनता के आर्शीवाद के लिए हम सभी के प्रति कृतज्ञ हैं।

- तुषार मुखर्जी, सचिव, भाजपा

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