'भंवरे' इस फूल से उस फूल, माली बेचैन!
-'घास फूल' व 'कमल फूल' के बीच 'खिलने' का सवाल -'नेता जी' एक फूल को जला रहे, एक फूल को रिझा रहे इर
-'घास फूल' व 'कमल फूल' के बीच 'खिलने' का सवाल
-'नेता जी' एक फूल को जला रहे, एक फूल को रिझा रहे इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : आज-कल के 'नेता जी' कब क्या रूप धर लें और क्या कर बैठें, यह कोई नहीं जानता। इन दिनों बहुत से 'नेता जी' भंवरे बन गए हैं। वे खूब भिनभिनाने लगे हैं। इस फूल से उस फूल मंडराने लगे हैं। एक फूल को जला रहे हैं, तो एक फूल को रिझा रहे हैं। इसे लेकर दोनों फूलों की बगिया के माली बेचैन हैं। एक 'घास फूल' (तृणमूल) की मालिन की बेचैनी यह है कि किस 'भंवरे' को रोकें और किसे 'जाने दें'। वहीं, दूसरे 'कमल फूल' (भाजपा) के माली को यह बेचैनी है कि किस 'भंवरे' को रोकें और किसे 'आने दें'। आखिर, फूल खिलाने का जो सवाल है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की बयार में गत पांच मार्च को घास फूल वाली तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की सभी 294 में से 291 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। केवल दार्जिलिंग पहाड़ की तीन सीटें खाली छोड़ी। वह तो छोड़नी ही थी। इसलिए कि दार्जिलिंग पहाड़ पर शुरू से अब तक पहाड़ी दल के अलावा औरों की दाल नहीं गलती है। इधर, वहां दाल गलाने का माद्दा बस एकमात्र गोरखा जनुमक्ति मोर्चा (गोजमुमो) में है। खैर, उस दिन जैसे ही तृणमूल कांग्रेस की सूची जारी हुई, वैसे ही तृणमूल कांग्रेस में घमासान मच गया, जो अभी तक बरकरार है। यह घमासान सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से यानी उत्तर बंगाल में है।
उत्तर बंगाल की अघोषित राजधानी सिलीगुड़ी में तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओम प्रकाश मिश्रा को उम्मीदवार बनाया। बस, यहां तृणमूल कांग्रेस के ही एक नेता नांटू पाल ने खुलेआम बगावत छेड़ दी। उत्तर बंगाल के माल बाजार में ही जन्मे ओम प्रकाश मिश्रा को बाहरी करार देते हुए नांटू पाल ने कहा कि सिलीगुड़ी में बाहरी उम्मीदवार मंजूर नहीं होगा। सिलीगुड़ी के 'स्थानीय' को ही टिकट दिया जाना चाहिए था। उन्होंने बाजाब्ता निर्दलीय चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया है। वहीं उनके कमल फूल यानी भाजपा में भी जाने के कयास लगाए जाने लगे हैं। इसी तरह सिलीगुड़ी के निकट जलपाईगुड़ी की राजगंज विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस द्वारा खगेश्वर राय को लगातार तीसरी बार टिकट दिए जाने का पार्टी के ही एक नेता कृष्ण दास ने कड़ा विरोध किया है। इतना ही नहीं उन्होंने यह चेतावनी भी दे डाली है कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे और खगेश्वर राय को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं देंगे। उत्तर बंगाल बल्कि राज्य भर में ऐसे और भी कई मामले हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल उन्होंने ही बगावत छेड़ी है जिन्हें टिकट नहीं मिला है बल्कि उन्होंने भी बगावत कर दी है जिन्हें टिकट मिला है। उसकी नजीर हैं सरला मुर्मू। उन्हें तृणमूल कांग्रेस ने मालदा जिले की हबीबपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया। पर, वह खुश नहीं हुई और तीन दिन बाद ही कोलकाता जा कर भाजपा का दामन थाम लिया। इसकी वजह यह रही कि उन्हें टिकट भले ही मिला पर मनचाहा इलाका नहीं मिल पाया। वह ओल्ड मालदा से लड़ना चाहती थीं पर हबीबपुर का टिकट मिला। सो बगावत कर दी। अब उनकी जगह तृणमूल कांग्रेस ने प्रदीप बास्के को हबीबपुर का उम्मीदवार बनाया है।
यह तो हुई तृणमूल की बात। ऐसे मामलों से अब वाममोर्चा की मुख्य घटक माकपा भी अछूती नहीं रही। सिलीगुड़ी में माकपा के प्रभावशाली युवा नेता डॉ. शंकर घोष ने माकपा को अलविदा कह दिया है। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि उनकी पार्टी ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उन्हें इस बार विधानसभा चुनाव में सिलीगुड़ी सीट से माकपा का टिकट मिलने की उम्मीद थी। पर, प्रबल संभावना के अनुरूप सिलीगुड़ी से लगातार छह बार चुनाव लड़ चुके और पांच बार विधायक व चार बार राज्य के मंत्री रहे अशोक भट्टाचार्य को ही माकपा ने इस बार भी विधायक उम्मीदवार बनाया है। शंकर घोष के इस्तीफे के बाद उन्हें पार्टी से बहिष्कार कर दिए जाने व इसके साथ ही अशोक भट्टाचार्य को उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा कर दी गई।
वर्तमान विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा किए जाने के बाद अब तक पांच विधायकों, विधानसभा में डिप्टी स्पीकर सतगछिया से विधायक सोनाली गुहा, नंदीग्राम आंदोलन में ममता बनर्जी के बड़े सहयोगी रहे सिंगुर के विधायक रवींद्रनाथ भट्टाचार्य, शिवपुर के विधायक जट्टू लाहिड़ी, बशीरहाट दक्षिण के विधायक दीपेंदु विश्वास व संकराइल विधायक शीतल सरदार ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया है। गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस ने इस बार 27 मंत्रियों-विधायकों का टिकट काट दिया है। अब इनमें से ज्यादातर की पहली व अंतिम आस भाजपा ही है। इससे भाजपा की भी बांछें खिल उठी हैं कि बहुत सी जगहों पर उसका उम्मीदवारों का टोंटा का जो मसला था वह खत्म हो जाएगा। इसके बावजूद भाजपा के समक्ष भी यह मसला है कि सारे के सारे घास फूल वालों को ही पनाह दे दी तो फिर अपने कमल फूल वाले 'नेता जी' लोग कहीं 'भंवरे' न बन जाएं। आखिर, फूल खिलाने का जो सवाल है। इसीलिए, घास फूल के कई भंवरे खुल कर नहीं भिनभिना पा रहे हैं। उन्हें डर इस बात का है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि 'न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम.., न इधर के रहे, न उधर के हम..। वैसे, अभी फिलहाल माजरा यही है कि 'भंवरे' इस 'फूल' से उस 'फूल' मंडरा रहे हैं और माली बेचैन हैं।