जहा पिछड़ी थी शिक्षा अगड़ी हो गई!
स्लग शिक्षा का अधिकार -राज्य व देश ही नहीं दुनिया भी इस नजीर पर मोहित -एक जुनूनी शिक्षक
स्लग : शिक्षा का अधिकार
-राज्य व देश ही नहीं दुनिया भी इस नजीर पर मोहित
-एक जुनूनी शिक्षक ने कर दिया कायापलट, सबने माना लोहा
-अति पिछड़े गाव के सरकारी स्कूल को बना डाला मॉडल स्कूल
-विद्यार्थी हो गए 2000, उपस्थिति 90 प्रतिशत से अधिक इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : शिक्षा का अधिकार कैसे सुनिश्चित हो? हर किसी को शिक्षा कैसे मिले? एक सरकारी स्कूल कैसे संपन्न व सक्षम हो कि सबको शिक्षा दे सके? उनसे यह सब सीखने जर्मनी, कनाडा, फिलिपिंस, किíगस्तान, अफगानिस्तान, बाग्लादेश व नेपाल सरीखे देशों से शिक्षा जगत के विशेषज्ञ व सरकार के प्रतिनिधि उनके पास आते हैं। यूनिसेफ जैसे विश्व प्रतिठति संगठन ने उन पर डॉक्यूमेंट्री बनाई और उसे मॉडल के रूप में पेश कर दुनिया को उससे सीखने को कहा। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी उन पर व उनके स्कूल पर डॉक्यूमेंट्री बनाकर औरों के लिए प्रेरणा के रूप में पेश किया है। उनकी कार्यपद्धती से प्रभावित होकर यूनिसेफ के सलाहकार जर्मनी के मेल्फ कुइहल ने कहा कि स्कूल प्रबंधन जो कर रहा है गजब कर रहा है।
वह करिश्माई शख्सियत हैं सिलीगुड़ी महकमा के फासीदेवा प्रखंड के विधान नगर अंतर्गत मुरलीगंज गाव स्थित मुरलीगंज हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम। उन्होंने सचमुच करिश्मा कर दिखाया है। एक दूरदराज के पिछड़े ग्रामीण सरकारी स्कूल को बड़े-बड़े कॉर्पोरेट स्कूल की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया। क्या कोई विश्वास कर सकता है कि तीन मंजिला शानदार इमारत, रंग रोगन भी खूब, अंदर-बाहर चारों ओर चकाचक सफाई, सुंदर सुसज्जित, जगह-जगह कूड़ेदान की व्यवस्था, शौचालय की स्वच्छता अविश्वसनीय, रंग-बिरंगे फूलों की बागवानी से सजा परिसर, 32 सीसीटीवी कैमरे, राष्ट्रीय मानक प्रति 30 की जगह प्रति 25 विद्याíथयों पर एक-एक कर कुल 64 नल, विज्ञान शिक्षा की अत्याधुनिक प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब, विद्याíथयों के खेल के लिए मिनी इनडोर स्टेडियम, आवाजाही के लिए जीपीएस सिस्टम से लैस एक लग्जरी स्कूल बस सेवा, यह सारी व्यवस्थाएं एक सरकारी स्कूल में हो सकती हैं? जी हा, हो सकती नहीं बल्कि हैं। चाहे सरकारी मदद से हो या चाहे हमदर्द संगठन-संस्थाओं व लोगों की मदद से, प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम ने अपने मुरलीगंज हाईस्कूल का ऐसा कायाकल्प कर दिखाया है। यह स्कूल पश्चिम बंगाल के मॉडल स्कूलों में एक है। वर्ष 2013 में राज्य सरकार की ओर से इसे निर्मल विद्यालय, शिशु मित्र व जामिनी रॉय सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
पैडमैन फिल्म से ली प्रेरणा
वर्ष 2018 में आई फिल्म पैडमैन युवतियों के मासिक स्त्राव के दिनों की पीड़ा को समझते-समझाते हुए हर किसी के लिए पैड की आवश्यकता व उसकी सहज उपलब्धता की वकालत कर काफी सराही गई। मगर, इस स्कूल में वर्ष 2013 से ही छात्राओं को सैनिटरी नैपकिन (पैड) प्रदान किए जाने की व्यवस्था है। अब तो इसके लिए वेंडिंग मशीन भी स्थापित दी गई है। जहा पाच रुपये का सिक्का डाल कर छात्राएं आसानी से पैड प्राप्त कर सकती हैं।
मिड-डे-मील व्यवस्था यूनिसेफ डॉक्यूमेंटरी में
यह भी गौरवान्वित करने वाला पहलू है कि यूनिसेफ ने अपनी डॉक्यूमेंटरी में यहा की मिड-डे-मील व्यवस्था को शामिल कर दुनिया के लिए नजीर के तौर पर पेश किया है। आम तौर पर सरकारी स्कूल जैसे-तैसे सड़े-गले मिड-डे-मील के लिए ही बदनाम रहते हैं। मगर, यहा उलटा है। कर्मचारी ऐप्रॉन, कैप, मास्क व ग्लोव्स लगा कर ही पूरी स्वच्छता के साथ मिड-डे-मील की तैयारी करते हैं। गुणवत्ता व पौष्टिक पैमाने का भी पूरा पूरा ख्याल रखा जाता है। मिड-डे-मील के अपशिष्ट से जैविक खाद बनाया जाता है। उसका स्कूल के अपने मत्स्य पालन वाले तालाब और किचन गार्डेन में इस्तेमाल किया जाता है। स्कूल का अपना आíथक सहायता कोष
जरूरतमंद विद्याíथयों की मदद के लिए स्कूल का अपना आíथक सहायता कोष है। यहा के कोई शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ाते। बच्चे तक भी प्राइवेट ट्यूशन की जरूरत महसूस नहीं करते। हर बच्चे का नियमित रूप में हर महीने एक बार बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) चेक किया जाता है। स्वास्थ्य पहलुओं के साथ ही अकादमिक शिक्षा के मामले में भी हर एक बच्चे पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस स्कूल के बच्चे जिला व राज्य स्तर के टॉपरों में भी शामिल रहते हैं। यह बहुत ही चाइल्ड फ्रेंडली स्कूल है। यही वजह है कि यहा विद्याíथयों की संख्या एवं उपस्थिति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्ष 2004 में संभाली जिम्मेदारी
वर्ष 2004 में जगदीशचंद्र विद्यापीठ के शिक्षक शम्शुल आलम जब यहा के प्रधानाध्यापक बने तब इस स्कूल में मात्र 165 विद्यार्थी हुआ करते थे उनकी उपस्थिति 50 प्रतिशत से भी कम हुआ करती थी। आज विद्याíथयों की संख्या लगभग दो हजार और उपस्थिति 90 प्रतिशत से अधिक है। इस स्कूल के विद्यार्थी व शिक्षक-कर्मचारी अपने प्रधानाध्यापक का गुणगान करते नहीं थकते। शम्शुल आलम कहते हैं कि यह सब कोई मेरी व्यक्तिगत नहीं बल्कि हमारी टीम और टीम वर्क की उपलब्धि है। हमारे स्कूल में दिन-प्रतिदिन विद्याíथयों की संख्या बढ़ती जा रही है। शिक्षा हेतु आवश्यक मानव संसाधन व आधारभूत संरचनात्मक विकास होता जा रहा है, यही हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है। हम जिस क्षेत्र में हैं। हमारा स्कूल जिस क्षेत्र में है। वहा हर किसी को पढ़ने का अधिकार मिले। हर कोई पढ़ पाए। हर किसी की शिक्षा सुनिश्चित हो पाए। यही हमारा ध्येय है। राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान के लिए नामित
शम्शुल आलम के इस जज्बे व शिक्षा जगत में उनके करिश्माई कारनामे को न जाने कितने संगठन-संस्थाओं ने सराहा है। दिल्ली स्थित इकोनामिक ग्रोथ सोसाइटी ऑफ इंडिया ने उन्हें ग्लोरी ऑफ इंडिया अवार्ड से नवाजा है। आíथक व सामाजिक विकास में व्यक्तिगत योगदान हेतु उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया। मगर, अफसोस यह है कि इस हीरा पर जिस जौहरी की नजर पड़नी चाहिए वह अब तक नहीं पड़ी है। राष्ट्रीय स्तर का राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान तो दूर राज्य स्तर का बंग रत्न या शिक्षा रत्न सम्मान तक उन्हें नहीं दिया गया है। इसकी खलिश उन्हें हो न हो, उनके चाहने वालों को बहुत है। वैसे, इधर यह खुशखबरी है कि राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान हेतु पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा नामित छह शिक्षकों में एक उनका भी नाम शामिल है।