संस्कारशाला:वैज्ञानिक मनोवृति
सीखने के क्रम में हम पर अपने आस-पास के लोगों के व्यवहार का गहरा प्रभाव पड़ता है और यह प्रक्रि
सीखने के क्रम में हम पर अपने आस-पास के लोगों के व्यवहार का गहरा प्रभाव पड़ता है और यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। जैसे अपने माता-पिता के द्वारा बड़ों का आदर, सेवा और सम्मान प्रकट करने के व्यवहार को देखकर ही एक बच्चा अपने से बड़ों के प्रति सम्मान के भाव को अपने अंदर विकसित करता है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह वैज्ञानिक मनोवृति क्या है। हम सभी जानते हैं कि प्रकृति के क्रमबद्ध व सुव्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है। वैज्ञानिक विधि यानी विचार अवलोकन, परीक्षण व परिणाम विज्ञान की असल कसौटी है। जब हमारे मन की स्वाभाविक स्थिति यानी सोचने का नजरिया वैज्ञानिक कसौटी पर आधारित हो जाएं तो यह वैज्ञानिक मनोवृति कहलायेगी। शायद हमारा अकेला संविधान है, जहा वैज्ञानिक मनोवृति का जिक्र अनुच्छेद 51 ए में वैज्ञानिक मनोवृति, मानवतावाद और उत्सुकता की भावना और सुधार की बात करता है। इसे हर नागरिक का कर्तव्य बताया गया है। बच्चे परिवार, पड़ोस, समाज, विद्यालय तथा धार्मिक संस्थाओं से शिक्षा ग्रहण करते हैं। सामाजिक शिक्षण का प्रभाव सीधे-सीधे मनोवृति के निर्माण के रूप में पड़ता है। धार्मिक और संप्रदायिक मनोवृति के निर्माण में भी सामाजिक प्रक्रिया विशेष महत्व रखती है। आज से पहले कभी इतने अवसर नहीं थे, इतने विश्वविद्यालय नहीं थे, न नहीं प्रौद्योगिकी थी और न ही सोने- हीरे के भंडार थे। आज जो भी उन्नति हुई है वह विज्ञान और वैज्ञानिक मनोवृति की देन है। आज हम देखते हैं तो पाते हैं कि जो भी जाति, समाज, देश, उन्नत है उनमें वहा के लोगों के वैज्ञानिक मनोवृति का सबसे बड़ा योगदान रहा है। जब हम सफल बने तो हमारी मनोवृति विज्ञान पर आधारित होनी चाहिए, तभी हम और हमारा देश व विश्व उन्नति की राह पर अग्रसर होता रहेगा।
एक नारा है-
शाति के लिए- विज्ञान विज्ञान
उन्नति के लिए- विज्ञान विज्ञान
मानवता के लिए- विज्ञान विज्ञान
यह तभी संभव है जब हम वैज्ञानिक मनोवृति को अपनाएं तथा व्यवहारिक जीवन की सफलता के लिए नये अनुसंधान एवं उपकरण निर्माण में वैज्ञानिक मनोवृति हमारा परम लक्ष्य हो। -विपिन कुमार गुप्ता,शिक्षक,भारती हिंदी स्कूल,सिलीगुड़ी