सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है हमारा देश
जागरण संवाददाता सिलिगुड़ी जहा एक ओर देश में साप्रदायिकता के नाम पर समाज को बाटने का काम
जागरण संवाददाता, सिलिगुड़ी: जहा एक ओर देश में साप्रदायिकता के नाम पर समाज को बाटने का काम चल रहा है। वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे मिसाल सामने आते हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश में संप्रदायिक सद्भाव अभी जिंदा है। कौमी एकता के लिए काम करने वाले हाफिज बदरुद्दीन का कहना है कि पिछले दिनों गुजरात के अमरेली में ऐसी ही घटना समाज के अन्य लोगों को प्रेरित करता है। उन्होंने बताया कि साबरकुंड शहर के 3 मुस्लिम भाइयों अबू नसीर और जुबेर कुरैशी ने अपने पिता के हिंदू मित्र भानु शकर पाडया को उनके इच्छा के अनुरूप हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करके कौमी भाईचारा का मिशाल पेश किया। भानुशकर प्रारंभ से ही कुरेशी परिवार के सभी पर्व त्योहारों में शिरकत करते थे। कुरेशी परिवार भी उनके लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन तैयार करता था इतना ही नहीं भानु शकर को नसीर के पुत्र अरमान ने मुखाग्नि दी और 12वीं के दिन सिर मुड़वा कर हिंदू रीति रिवाज के अनुसार उनका क्रिया कर्म किया। इसी प्रकार की दूसरी घटना बंगाल के पड़ोसी राज्य झारखंड के पलामू जिला स्टेट मेदिनीनगर में देखने को मिला। कोरोना के के कारण एक महिला की मौत हो गई। परिवार के परिजनों ने अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने से मना कर दिया। महिला के बेटे का दोस्त मोहम्मद आसिफ नामक युवक को जब यह खबर मिली तो उसने रोजेदार भाइयों के साथ मित्र की सहायता करने का निर्णय लिया और रमजान के पवित्र माह में रोजा रखे मुंसिफ फैजल सोहेल जाफर ने मिलकर हिंदू रीति-रिवाज से मेदिनीनगर के राजा हरिश्चंद्र घाट पर महिला का अंतिम संस्कार कराने की मदद कराने में मदद की। हाफिज बदरुद्दीन ने कहा कि वह इस बात को इसलिए कहने पर विवश है कि आज धर्म के नाम पर रहे लोगों का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है तो कहीं धर्म के नाम पर हिंसा को जन्म दिया जाता है यह उन लोगों के आख खोलने के लिए काफी हैं।