कोरोना से मरें ना मरें भूख से जरूर मर जाएंगे बाबू

-बालासन के दो हजार से अधिक श्रमिकों का हाल बेहाल -वैक्सीन से पहले कोई रोजगार देने की

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 07:23 PM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 07:23 PM (IST)
कोरोना से मरें ना मरें भूख से जरूर मर जाएंगे बाबू
कोरोना से मरें ना मरें भूख से जरूर मर जाएंगे बाबू

-बालासन के दो हजार से अधिक श्रमिकों का हाल बेहाल

-वैक्सीन से पहले कोई रोजगार देने की मांग

-अन्य नदियों में बालू-पत्थर निकालने वाले परेशान 03

महीने तक अधिकांश नदियों में खनन पर है रोक

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अप्रैल को लाकडाउन के बाद से ही हाल खराब

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सितंबर तक बंद रहेगा बालू पत्थर निकालने का काम जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : पहले चरण के बाद आक्रामक हुए कोरोना के दूसरे स्ट्रेन पर ब्रेक लगाने के लिए बीते एक महीने से राज्य भर में आशिक लाकडाउन जारी है। इसके अलावा तीन महीने तक नदियों के खनन पर भी रोक लगा दी गई है। जिसके कारण नदियों से बालू-पत्थर निकालने का काम-काज बंद है। काम बंद होने से नदी से बालू-पत्थर निकाल कर ट्रक में भरने वाले श्रमिको के घरों में खाने के लाले पड़े हैं। अगले तीन महीने तक नदियों में खनन पर लगी सरकारी रोक ने श्रमिकों को और परेशान किया है। नदी में काम करने वाले श्रमिक परिवारों के सामने कोरोना से पहले भूख से मरने की स्थिति पैदा हो गई। इनका सीधा कहना है कोरोना से भले ना मरें पर भूख से जरूर मर जाएंगी बाबू। ऐसे श्रमिक परिवारों ने कोरोना वैक्सीन से पहले रोजगार की माग की है।

कोरोना वायरस और उसकी वजह से जारी लाकडाउन ने रोज कमाने-खाने वालों की जिंदगी बीते डेढ़ वर्ष से बदहाल कर दी है। देश में कोरोना के दस्तक देने के बाद बीते वर्ष 25 मार्च से लाकडाउन का दौर शुरु हुआ। लाकडाउन के दौरान निर्माण कार्य की गति में शिथिल हुई। फलस्वरुप नदियों से बालू-पत्थर निकालने का काम भी प्रभावित हुआ। कोरोना का पहला चरण समाप्त होने के बाद निर्माण कार्य के साथ नदियों से बालू-पत्थर निकालने के कार्य ने भी रफ्तार पकड़ी ही थी कि कोरोना का दूसरा स्ट्रेन पहले से ज्यादा आक्रामक होकर प्रहार करने लगा। कोरोना के दूसरे लहर में संक्रमण की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए बीते 16 अप्रैल से राज्य सरकार ने पूरे प्रात में आशिक लाकडाउन जारी किया है। इस विधि-निषेध में नदियों से बालू-पत्थर लादकर पहुंचाने वाले ट्रक और डंपरों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई। अभी यह आशिक लाकडाउन के विधि-निषेध समाप्त भी नहीं हुआ था कि राज्य पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सस्टनेबल सैंड मैनेजमेंट गाइड लाइन जारी कर दिया है। निर्देशानुसार 16 जून से अगले 15 सितंबर तक नदियों से खनन पर प्रतिबंध लगाया गया है। लाकडाउन के बाद अब अगले तीन महीनों तक काम पूरी तरह से बंद रहने की वजह से नदियों से बालू-पत्थर निकाल कर ट्रकों में भरने वाले श्रमिकों की आखों से खून के आंसु निकल आए हैं। डेढ़ वर्ष से लाकडाउन की मार झेलने के बाद अब तीन महीने के सरकारी प्रतिबंध से श्रमिक हताश हैं।

सबसे ज्यादा प्रभाव महानंदा नदी और बलासन नदी से बालू और पत्थर निकालने वाले श्रमिकों पर पड़ा है। बलासन नदी के किनारे बसे गाव माटीगाडा प्रखंड के अठारहखाई ग्राम पंचायत के धिमालजोत, शिशाबाड़ी, बलासन कॉलोनी, पाल पाड़ा और लेनिन कॉलोनी में रहने वाले अधिकाश श्रमिक बलासन नदी से बालू-पत्थर निकालने का काम करते हैं। जानकारी के मुताबिक इस इलाके में बालू-पत्थर निकालने वाले करीब दो हजार श्रमिक हैं। जिनमें से 80 प्रतिशत महिलाएं हैं।

क्या कहना है श्रमिकों का

बलासन से बालू-पत्थर निकालने वाली महिला श्रमिक प्रतिमा राय, जयश्री राय, रागिनी बर्मन, प्रशात बर्मन व अन्य ने बताया कि वर्ष 2020 तो कोरोना वायरस से बचने के लिए लाकडाउन में चला गया। इस वर्ष काम होने की उम्मीद तो बंधी लेकिन फिर से कोरोना ने तबाही मचा दी। फिर लाकडाउन खत्म होने की आस बंधी तो सरकार ने नदी से बालू-पत्थर निकालने का काम पर अगले तीन महीने के लिए रोक लगा दी। पिछले साल तो चल गया था काम

पिछले वर्ष लाकडाउन के समय काफी सारी समाजसेवी संस्थाओं द्वारा मुहैया भोजन और सरकार द्वारा प्रदत्त राशन से अपना और परिवार का पेट भर कर समय गुजारा। लेकिन इस बार स्थिति अलग है। रागिनी और प्रशात ने बताया कि उनके छह बेटे और तीन बेटिया समेत कुल नौ लोगों का परिवार है। परिवार का भरण पोषण करने के लिए उन्होंने बीते वर्ष एक निजी संस्था से एक लाख पाच हजार रुपये का कर्ज लिया था। लेकिन अब उनके पास कर्ज चुकाने के लिए 3500 रुपये का मासिक कि़स्त भी नहीं है।

प्रतिदिन तीन सौ की आमदनी

श्रमिकों ने पूरे दिन नदी के पानी मे भींग कर बालू-पत्थर निकालने पर तीन सौ रुपये जेब मे आते हैं। लेकिन अब अगले तीन महीनों तक काम ही नहीं होगा। अगले तीन महीने परिवार का गुजारा मौत से जंग लड़ने जैसा ही होगा। कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन लगाने के बारे में श्रमिको ने बताया कि दिन भर कतार में खड़ा होने के बदले हम काम की तलाश करते हैं, ताकि रात में पेट मे अनाज खाने को मिल सके। वैक्सीन तो कोरोना वायरस से बचाएगी। लेकिन हमें कोरोना की वैक्सीन से ज्यादा भूख से बचाने की वैक्सीन की आवश्यकता है।

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