आज के दौर में प्रांसगिक है गुरुनानक देव के सीख

जागरण संवाददाता सिलीगुड़ी पूर्वोत्तर के प्रवेशद्वार में कल से गुरुनानक देव जी की जयंती मनायी ज

By JagranEdited By: Publish:Sun, 29 Nov 2020 02:21 PM (IST) Updated:Sun, 29 Nov 2020 02:21 PM (IST)
आज के दौर में प्रांसगिक है गुरुनानक देव के सीख
आज के दौर में प्रांसगिक है गुरुनानक देव के सीख

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : पूर्वोत्तर के प्रवेशद्वार में कल से गुरुनानक देव जी की जयंती मनायी जा रही है। वर्तमान समय में विश्व के पाचवे सबसे बड़े धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी की सीखों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की बात करने से पहले हम सिख शब्द को समझ लें। उसके जीवन पर रविवार को उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया।

सिख का अर्थ होता है शिष्य

सिख का अर्थ होता है शिष्य। अर्थात जो गुरुनानक देव जी की सीखों को एक शिष्य की भाति अपने आचरण और जीवन में अपना ले, वो सिख है और हम सभी जानते हैं कि उनकी सीखों में सबसे बड़ा धर्म मानवता है इसलिए उनकी सीख हर काल में प्रासंगिक हैं।

उसके वाणी प्राचीन व आधुनिक विज्ञान में भी मान्य

गुरुनानक देव जी कहते हैं कि एक ओंकार, सतनाम, तो उनके आध्यात्म की इस परिभाषा को केवल उनके अनुयायी ही नहीं बल्कि प्राचीन वेद विज्ञान से लेकर आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करने पर विवश हो जाता है। वे कहते हैं, एक ओंकार सतनाम यानी ओंकार ही एक अटल सत्य है. ओंकार यानी ॐष्. यह तो हम सभी जानते हैं कि हम जो भी कहते हैं, जिन भी शब्दों का उच्चारण करते हैं उनकी एक सीमा होती है लेकिन ओंकार असीमित है. प्राचीन ऋषियों ने भी ॐ को अजपा कहा है क्योंकि ॐ शब्दातीत है यानी शब्दों से परे है. और आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि ॐ कोई ध्वनि नहीं बल्कि एक अनाहत नाद है। क्योंकि ध्वनि तो दो वस्तुओं के टकराने से या कंपन से उत्पन्न होती है लेकिन ॐ किसी से टकराने से उत्पन्न नहीं हुआ। जहां टकराहट हो वहां भला ॐ कहां जब भीतर बिल्कुल शाति हो, अंदर के सारे स्वर बंद हो जाएं, सभी द्वंद मिट जाएं तो एक अनाहत से हमारा संपर्क होता है और हम ॐ से जुड़ पाते हैं। एक अनोखी ऊर्जा को महसूस कर पाते हैं। ॐ का हमारे भीतर के सत्य और शुभ से लेना देना है। इसलिए जब वे कहते हैं एक ओंकार तो वे कहना चाहते हैं कि ईश्वर एक ही है जो हम सब के भीतर ही निवास करता है और यही सबसे बड़ा सत्य भी है।

स्थापना के साथ आया था क्रांतिकारी बदलाव

जब 15 वीं सदी में गुरुनानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, तो यह धर्म के प्रति लोगों के नजरिए पर एक क्रातिकारी बदलाव की शुरुआत थी। यह उस विरोधाभासी सोच पर प्रहार था जो व्यक्ति के सासारिक जीवन और उसके आध्यात्मिक जीवन को अलग करती थी।अपने विचारों से गुरुनानक देव जी ने उस काल के सामाजिक और धाíमक मूल्यों की नींव ही हिला दी थी। उन्होंने पहली बार लोगों को यह विचार दिया कि मनुष्य का सामाजिक जीवन उसके आध्यात्मिक जीवन की बाधा नहीं है बल्कि उसका अविभाज्य हिस्सा है। सदियों की परंपरागत सोच के विपरीत गुरुनानक जी वो पहले ईश्वरीय दूत थे जिन्होंने जोर देकर कहा था कि ईश्वर पहाड़ों या जंगलों में भूखा रहकर खुद को कष्ट देने से नहीं मिलते बल्कि वो सामाजिक जीवन जीते हुए दूसरों के कष्टों को दूर करने से मिलते हैं। उनके अनुसार व्यक्तिगत मोक्ष का रास्ता सेवा कार्य द्वारा समाज के लोगों को दुखों से मोक्ष दिला कर निकलता था। इसके लिए उन्होंने अपने भक्तों को सेवा ते सिमरन का मंत्र दिया। उस दौर में जब लोगों को यकीन था कि ईश्वर से एकाकार के लिए सन्यास के मार्ग पर चलना आवश्यक है। उनका मानना था, हुकम राजायी चलना नानक लिख्या नाल अर्थात सबकुछ परमात्मा की इच्छा के अनुसार होता है और हमें बिना कुछ कहे इसे स्वीकार करना चाहिए।

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