भक्तों ने की हरगौरी की पूजा-अर्चना

जागरण संवाददाता सिलीगुड़ी शहर में चैती दुर्गापूजा जिसे बंगाल में वासंती पूजा के रुप में मनाते

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 04:46 PM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 04:46 PM (IST)
भक्तों ने की हरगौरी की पूजा-अर्चना
भक्तों ने की हरगौरी की पूजा-अर्चना

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : शहर में चैती दुर्गापूजा जिसे बंगाल में वासंती पूजा के रुप में मनाते आ रहे है। मंगलवार को नवरात्रि की अष्टमी तिथि है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मा महागौरी की विधि-विधान से पूजा की गयी। मायेर इच्छा काली मंदिर, आनंदमयी काली बाड़ी, सिद्धेश्वरी कालीबाड़ी, मां भवानी काली बाड़ी सहित अन्य मंदिरों में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचे। पूजा पंडालों में भी पुष्पांजलि अर्पित की गई। कन्या पूजन के बाद दशमी के दिन सिंदूर खेला के उपरांत देवी का विदाई दी जाएगी।

मंगलवार को मा गौरी को हलवे का भोग लगाया गया है। कहते हैं कि मा महागौरी की विधि-विधान से पूजा करने से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। अष्टमी तिथि को कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है। आचार्य पंडित यशोधर झा ने बताया कि नवरात्रि का आठवें दिन हम आपको बता रहे हैं मा महागौरी के जन्म से जुड़ी है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, पर्वत राज हिमालय के घर माता पार्वती का जन्म हुआ था। माता पार्वती को महज 8 वर्ष की अवस्था में ही अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभाष हो गया था। तभी से उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तप करना शुरू कर दिया था।तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल फल और पत्तों का सेवन करती थीं। बाद में माता ने वायु पीकर तपस्या करना शुरू कर दिया। तप से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था, यही कारण है कि इनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या ने प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें गंगा स्नान करने के लिए कहा। जिस समय मा पार्वती गंगा स्नान करने गईं तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं। साथ ही एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुईं, महागौरी कहलाईं। मान्यता है कि मा अपने हर भक्त का कल्याण करने के साथ मन की सभी मुरादें पूरी करती हैं।

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