इंसान को खाता कोरोना, इंसानियत खा रहे नर्सिंग होम, झोलाछाप डॉक्टरों के सहारे चल रहे हैं कई नर्सिंग होम

सरकारी फाइलों में दफन है निर्देशों का बेड। अस्पताल के सामने लाइन में है जनता। कालाबाजारी में बिक रहा ऑक्सीजन से ईमान तक। प्रतिदिन खर्च के बदले वसूले जाते हैं 40000। -कोरोना संक्रमित परिवार लाचार तो स्वास्थ्य सेवाएं बीमार।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 06:33 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 06:33 PM (IST)
इंसान को खाता कोरोना, इंसानियत खा रहे नर्सिंग होम, झोलाछाप डॉक्टरों के सहारे चल रहे हैं कई नर्सिंग होम
देश के किसी भी राज्य में सिलीगुड़ी जितनी महंगी चिकित्सा व्यवस्था नहीं? जबतक नियंत्रण नहीं तबतक इंसाफ नहीं।

 अशोक झा,सिलीगुड़ी : पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्र में बढ़ते कोरोना संक्रमण से कराहते परिवारों के मुंह से टैक्सी फिल्म का वह गीत, जाएं तो जाएं कहां, कौन यहां समझेगा दर्द भरे दिल की दुआ। हां यह सच है कि कोरोना संक्रमण इंसान को दिन प्रतिदिन खा रहा है उससे भी बड़ा सच यह है कि इलाज के नाम पर सिलीगुड़ी और आसपास के प्राइवेट नर्सिंग होम इंसानियत को खा रहे हैं। यह कोई दूसरा आदमी कहता तो हो सकता है इसे राजनीतिक चश्मा पहना दिया जाता लेकिन नगर निगम प्रशासनिक बोर्ड के सामने कुछ ऐसा ही कहा शहर के जाने-माने चिकित्सक मलय चक्रवर्ती ने। उन्होंने नर्सिंग होम के साथ होने वाली बैठक में प्रशासक गौतम देव को स्पष्ट कहा कि बेलगाम चिकित्सा पर लगाम लगाया जाए। देश के किसी भी राज्य में सिलीगुड़ी जितनी महंगी चिकित्सा व्यवस्था नहीं है? जब तक इस पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक कोविड-19 जूझते परिवारों को हम इंसाफ नहीं दे पाएंगे। 

प्रतिदिन के हिसाब से रोगियों का क्या खर्च आएगा?

इस बात को लगभग 2 सप्ताह बीत गया लेकिन बैठक और कागजों पर फरमान के अलावा सर जमीन पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। सब कुछ हवा-हवाई है। जनता की तो छोड़िए जनप्रतिनिधियों को भी पता नहीं है कि किस नर्सिंगहोम में कितनी सीट खाली है और प्रतिदिन के हिसाब से रोगियों का क्या खर्च आएगा?। 

संक्रमित बचने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं

स्थिति देखकर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता की कहावत के अनुसार पूर्वोत्तर का यह क्षेत्र चिकित्सा व्यवस्था से दो-दो हाथ कर रहा है। कोविड-19 के संक्रमित बचने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। 

बाहर के मरीज और उनके परिजन हो रहे शिकार

निजी नर्सिंग होम में इलाज के नाम पर पेशेंट को तो मार ही रहे हैं साथ ही आर्थिक रूप से परिवार की कमर तोड़ कर फुटपाथ पर लाने पर विवश कर रहे हैं। यह कोई आरोप नहीं वल्कि यही सच्चाई है। इसके शिकार सबसे ज्यादा बंगाल से बाहर के आने वाले मरीज और उनके परिजन हो रहे हैं।

जेब में नहीं है लाखों, नसीब में शाहू डांगी का श्मशानघाट

कोरोना के खेल निराले हैं। कब, क्यों, कहां, किसे, किससे कैसे कोरोना प्रसाद मिल जाए, यह बताना डाक्टरों के लिए भी मुश्किल हो गया है। ऐसे में जनता से लेकर जज तक सरकार के दावों के आगे खेल में फेल हैं तो क्या गलत है? आक्सीजन, अस्पतालों में बिस्तर और दवा के लिए जनता लाइनों में लगी है और सरकार दावा ठोक रही है कि सब ठीक है।

जनता लाइनों में लगी है और सरकार दावा ठोक रही सब ठीक 

अगर सब सही है तो भीड़ लगाकर कोरोना फैलाने वालों को जेल भेजने में देरी नहीं हो रही है। इलाज के नाम पर लूटने वाले को सरकार या प्रशासन सलाखों के पीछे क्यों नहीं भेज रही, पुरानी कहावत है, महामारी हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा, जल प्रलय हो या फिर अकाल इंसानों को तो खा ही जाती है लेकिन यहां तो प्राइवेट नर्सिंग होम चिकित्सा के नाम पर इलाज करने वाले इंसानियत को भी खा रहे है। जेब में मोटी रकम नहीं है तो आपको सिलीगुड़ी में इलाज तो नहीं, हां मौत के बाद साहू डांगी नर्सिंग होम जाना पड़ेगा। 

प्राइवेट नर्सिंग होम में इलाज की यह है सच्चाई

दार्जिलिंग जिला और सिलीगुड़ी नगर निगम क्षेत्र में 54 नर्सिंग होम हैं। सभी नर्सिंग होम में कमोबेश कोविड-19 रोगियों की चिकित्सा हो रही है। कोविड-19 संक्रमित के इलाज के लिए 1 वर्ड उसके साथ ऑक्सीजन और एक डॉक्टर की देखरेख ही काफी है। महामारी के समय डॉक्टरों की फीस बढ़ा दी गई है फिर भी माने तो 15 सो रुपए रेट डॉक्टरों का फीस 3000 पर प्रतिदिन 200 की दवा और 300 ऑक्सीजन पर्याप्त है। लेकिन इसके लिए नर्सिंग होम में भर्ती कराने से पहले जहां एक लाख  से 3 लाख रुपया संक्रमित परिवारों से जमा कराए जाते हैं। 

प्रतिदिन एक एक पेशेंट से एक-एक हजार रुपया वसूल रहे 

उसके बाद प्रतिदिन के हिसाब से 30 से हजारों रुपए वसूले जा रहे हैं। हद तो यह है कि जिस टेक्नीशियन का वेतन मासिक 15000 है उस टेक्नीशियन के नाम पर प्रतिदिन एक एक पेशेंट से एक -एक हजारों रुपया वसूला जा रहा है। नर्सिंग होम से जुड़े लोग अगर देख लेते हैं कि सामने वाला परिवार मालदार है तो 12 घंटा से 24 घंटे के अंदर ऐसे पेशेंट को आईसीयू के जगह सीधे वेंटीलेटर में ले जाने की बात कही जाती है। मरता क्या नहीं करता वाली स्थिति में उसके बाद 40,000 से बिल प्रतिदिन 50 से 60 हजार का आ जाता है। इसे देखने वाला कोई नहीं है। 

सुविधाओं को देखने की जहमत उठाई? जवाब मिलेगा कभी नहीं? 

राज्य सरकार ने कोविड-19 मुकाबला के लिए सभी नर्सिंग होम में बेड बढ़ाने का फरमान जारी कर दिया। लेकिन क्या सरकार यह स्वास्थ्य विभाग कभी इन नर्सिंग होम में उनके संसाधन यह सुविधाओं को देखने की जहमत उठाई? जवाब मिलेगा कभी नहीं? कागज में ही सुविधाएं और कागज में ही जांच यही है इस शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई। अगर ऐसा नहीं होता तो चंपासारी, देवीडांगा, शिव मंदिर समेत कई ऐसे स्थानों में चल रहे नर्सिंग होम में झोलाछाप डॉक्टरों के सहारे लोगों की चिकित्सा की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन कम से कम नर्सिंग होम में कोविड-19 शंकर मित्रों को इलाज देने वाले चिकित्सकों की सूची जारी करें और बताएं कितने रोगियों पर कितने चिकित्सक वास्तव में चिकित्सा दे रहे हैं।

लिया जा रहा 40 रुपए घंटे का ऑक्सीजन 1000 रुपए घंटा

ज्यादातर कोविड-19 के मरीजों को ऑक्सीजन के नाम पर लूटा जा रहा है।40 रुपए प्रति घंटा दी जाने वाली ऑक्सीजन का अब इलाज के दौरान 1000 रुपए के हिसाब से वसूला जा रहा है। इसका भी रेट निर्धारित नहीं है। इसमें भी जैसा देवता वैसा ही पूजा किया जा रहा है। मजे की बात यह है कि पेशेंट के परिवारों से प्रतिदिन नगदी ही जमा करवाए जाते हैं। 

लूट का सबसे बड़ा सबूत ज्यादातर नर्सिंग होम में नोट गिनने की मशीन

कोविड-19 इलाज के नाम पर लूट का सबसे बड़ा सबूत है कि ज्यादातर नर्सिंग होम में कोरोनावायरस तेजी से फैलने के बाद नोट गिनने वाली मशीन को मंगाया गया है। क्योंकि कोई भी ऐसा नर्सिंग होम नहीं है यहां 30 से 60 के बीच कोरोना संक्रमित इलाज नहीं चल रहा है। इलाज के अलावा दवा भी नर्सिंग होम से ही उपलब्ध कराई जा रही है। किस पेशेंट को इतनी दवा लगी इसे भी देखने वाला उसका कोई घर वाला नहीं होता। करण उन्हें अंदर आईसीयू या सीसीयू में नहीं जाने दिया जाता।

एक-दूसरे का सहयोग में काम आने के वक्त पर लगे कमाने

प्रधाननगर के एक नर्सिंग होम में इलाज के दौरान मरने पर उनके माध्यम से ही एंबुलेंस और सबको उठाने के लिए कर्मचारी भी उन्हीं से लेना पड़ता है जिसका बिल भी अनाप-शनाप कम से कम 25000 रुपए लिया जाता है। तकाजा है कि आपदा के वक्त लोग एक-दूसरे का सहयोग करें, उन्हें जरूरी सुविधाएं और जीवन रक्षक सामग्री उपलब्ध कराएं, मगर कोरोना की इस दूसरी लहर में बड़े पैमाने पर ऐसी अमानवीय घटनाएं सामने आ रही हैं, जिन्हें देख-सुन कर दिल दहल जाता है। 

हजारों रुपए ऐंठने वाले गिरोह भी बड़ी संख्या में सक्रिय हो गए

इस वक्त जब देश भर के अस्पताल ऑक्सीजन और इस संक्रमण के इलाज में काम आने वाली जरूरी दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं, तब कई जगहों से कुछ दवा विक्रेताओं, वितरकों और सक्षम लोगों द्वारा इनकी जमाखोरी और कालाबाजारी की खबरें भी मिल रही हैं। रोगियों और शवों को ढोने वाले वाहन चालक मनमानी पैसा वसूलते देखे जा रहे हैं, तो अस्पतालों में बिस्तर दिलाने, ऑक्सीजन सिलेंडर और इस संक्रमण के लिए जरूरी मानी जा रही दवा रेमडेसिविर आदि उपलब्ध कराने के नाम पर हजारों रुपए ऐंठने वाले गिरोह भी बड़ी संख्या में सक्रिय हो गए हैं। 

गंभीर हालत में मरीजों को अस्पताल जाने की जरूरत पड़ रही 

दुख और संकट से घिरे इंसान की मदद करने से ज्यादा बड़ी पूजा कुछ और नहीं हो सकती। लेकिन इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि एंबुलेस चालक जान बचाने की भूख में अस्पताल पहुंचाने की गुहार लगाते लोगों से उनकी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश करें। पिछले कुछ दिनों से कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच गंभीर हालत में मरीजों को अस्पताल जाने की जरूरत पड़ रही है। 

शव को श्मशान पहुंचाने के मामले में संवेदनहीनता दिखा रहे 

एक ओर अस्पतालों में बिस्तर की कमी, तो दूसरी ओर वहां भी पहुंचना सिर्फ इसलिए दुष्कर हो रहा है कि या तो सड़कों पर वाहन उपलब्ध नहीं हैं या फिर एंबुलेंस वाले मनमाने पैसे मांग रहे हैं। समाज में किसी की मौत के बाद लोग हर तरह से मदद के लिए खुद ही खड़े हो जाते हैं। लेकिन आज हालत यह है कि कोरोना से अगर किसी की मौत हो जाए तो उसके शव को श्मशान पहुंचाने के मामले में भी कुछ एंबुलेंस चालक संवेदनहीनता दिखा रहे हैं।

शिकायत मिलती है तो कार्रवाई करेंगे

क्या कहते हैं जिम्मेदार-सरकारी आदेश के मुताबिक निजी अस्पतालों को कोरोना मरीज को इलाज के लिए भर्ती करना चाहिए। अगर किसी अस्पताल प्रबंधन ने पैसे के अभाव में कोविड-19 मरीज को भर्ती लेने से इनकार किया है तो गलत है। यदि इसकी शिकायत मिलती है तो कार्रवाई करेंगे।

सीएमओएच डॉ प्रलय आचार्य

मनमानी की लगातार शिकायतें मिल रही

प्राइवेट नर्सिंग होम की मनमानी की लगातार शिकायतें मिल रही है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। उस पर लगाम लगाने के लिए है जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से टास्क फोर्स का गठन किया गया है। वे इसकी निगरानी करेंगे। जो भी दोषी पाए जाएंगे उन पर कार्रवाई होगी।

गौतम देव, प्रशासक सिलीगुड़ी नगर निगम।

 केंद्र और भाजपा के प्रतिनिधि सहयोग करेंगे

स्वास्थ्य राज्य सरकार के अधीन है। जबतक राज्य की मुख्यमंत्री दलगत राजनीति से ऊपर उठकर स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति गंभीर नहीं होगी तब तक इसी प्रकार इलाज के नाम पर लोगों को दर बदर की ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ेगा। सरकार यह भी बताएं कि उन्हें कहां-कहां स्वास्थ्य व्यवस्था में दिक्कतें आ रही है तो उसमें केंद्र और भाजपा के प्रतिनिधि सहयोग करेंगे।

राजू बिष्ट, सांसद दार्जिलिंग।

 कौन उसके साथ है और कौन उसके खिलाफ

इसी अव्यवस्था के खिलाफ हम भाजपा विधायकों ने धरना देकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता तो उसके बदले हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। जबकि गिरफ्तारी इस प्रकार की लूट रिसोर्ट करने वालों की होनी चाहिए। जनता को समझना होगा कि कौन उसके साथ है और कौन उसके खिलाफ।

आनंदमयवर्मन, भाजपा विधायक। 

जनप्रतिनिधियों की बात सुनने को तैयार नहीं

दार्जिलिंग जिला कांग्रेस की ओर से जिला पदाधिकारी को नर्सिंग होम की मनमानी पर रोक लगाने के लिए 6 सूत्री मांगपत्र सौंपा गया था। ऐसा लगता सरकार और जिला प्रशासन सत्ता को छोड़कर किसी अन्य जनप्रतिनिधियों की बात सुनने को तैयार नहीं।

शंकर मालाकार, कांग्रेस जिलाध्यक्ष।

सुधार के साथ समन्वय की बहुत आवश्यकता

स्वास्थ्य व्यवस्था सुधार के लिए सुधार के साथ समन्वय की बहुत आवश्यकता है। ऐसा लगता है वर्तमान समय में समन्वय का अभाव सत्ता को छोड़ अन्य दलों के साथ लगभग टूट सा गया है। इसलिए जरूरी है स्वास्थ्य सुधारों के साथ जनता के बीच काम करने वाले प्रतिनिधियों की बात सरकार और जिला प्रशासन सुनें।

अशोक भट्टाचार्य, वरिष्ठ मकपा नेता।

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