घर- घर में जलापूर्ति की कवायद तेज

-नल से की जाएगी आपूर्ति -47 वार्ड के 17 स्थानों पर तैयार किए जा रहे हैं डीप ट्यूबवेल -वार्ड पाच म

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 08:10 PM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 08:10 PM (IST)
घर- घर  में जलापूर्ति की कवायद तेज
घर- घर में जलापूर्ति की कवायद तेज

-नल से की जाएगी आपूर्ति

-47 वार्ड के 17 स्थानों पर तैयार किए जा रहे हैं डीप ट्यूबवेल

-वार्ड पाच में पेयजल की किल्लत होगी खत्म, आज शुरू हो रहा प्रकल्प

-जो काम पिछले 10 वर्षो में नहीं हो सका उसे एक माह में ही किया जा रहा है पूरा

-जरूरत से काफी कम है पानी सप्लाई की मात्रा

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी: अब वह दिन दूर नहीं जब नगर निगम क्षेत्र में रहने वाले सभी परिवार को अपने घर पर ही शुद्धपेजयल उपलब्ध होगा। इसके लिए प्रशासनिक बोर्ड ने 8करोड़ 50 लाख की योजना का क्रियान्वयन प्रारंभ किया है। सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासनिक बोर्ड ने वामपंथी बोर्ड के सपने को पूरा करने की कवायद शुरू कर दी है। सिलीगुड़ी नगर निगम के 47 वार्डो में वार्ड वासियों को शुद्ध पेयजल मिल सके इसके लिए हर घर नल के माध्यम से शुद्ध पेयजल पहुंचाने की ओर बढ़ रही है। शहर के पेयजल आपूíत व्यवस्था संभालने वाले आलोक चक्रवर्ती का कहना है कि शहर के 17 स्थानों पर 8 करोड़ पचास लाख रुपए की लागत से डीप ट्यूबवेल बैठाया जा रहा है। इसके माध्यम से लोगों तक शुद्ध पेयजल पहुंचाया जाएगा। एक डीप ट्यूबेल

को तैयार करने में 50 लाख रुपया का खर्च आएगा। इस कार्य को पीएचई विभाग के द्वारा पूरा करवाया जाएगा। रविवार को इसकी शुरुआत वार्ड 5 स्थित मोनी बाबा आश्रम से किया जा रहा है।

शहर को मिल रहा 44 मिलियन लीटर की जल

सिलीगुड़ी शहर को रोजाना 72 मिलियन लीटर पेयजल की जरूरत है। मगर, मात्र 44 मिलियन लीटर पेयजल ही मिल पा रहा है। सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासनिक बोर्ड में जलापूíत व्यवस्था संभाल रहे आलोक चक्रवर्ती का कहना है

सिलीगुड़ी में जब नगर पालिका थी और तब जो योजना बनी वही योजना आज तक चल रही है। आज भी उसी के तहत ही पेय जल की आपूíत हो रही है। वर्ष 1994 में जब सिलीगुड़ी नगर निगम बना तब पेयजल आपूíत योजना के कार्यो की शुरुआत हुई। मगर, यह योजना उससे पहले यानी नगर पालिका के समय की ही थी। इस योजना का कार्य वर्ष 1999 में पूरा हुआ। फूलबाड़ी में 55 मिलियन लीटर जल भंडारण क्षमता वाला वाटर ट्रीटमेंट प्लाट बना। उसी से आज तक जल आपूíत हो रही है। उसका भी सिलीगुड़ी नगर निगम को केवल 44 मिलियन लीटर ही जल मिलता है। बाकी जल नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल एवं अन्य कुछेक ग्रामीण क्षेत्रों को जाता है।उन्होंने कहा कि वर्ष 1999 में शहर में नगर निगम की ओर से पेयजल आपूíत शुरू हुई। पर, तब शहर की आबादी बड़ी सीमित थी जो कि अब बेतहाशा बढ़ गई है। गत एक दशक में कम से कम 10 गुना जनसंख्या वृद्धि हुई है। मगर, उसकी तुलना में पेयजल आपूíत के संसाधनों का विकास बहुत ही कम हो पाया है। अभी सिलीगुड़ी नगर निगम क्षेत्र में होल्डिंग नंबर एक लाख से कुछ ज्यादा हैं पर घर व प्रतिष्ठानों-संस्थानों को मिला कर देखें तो घरेलू एवं वाणि?ियक सभी प्रकार के कुल 38000 ही वाटर कनेक्शन हो पाए हैं। इसके अलावा सार्वजनिक नलकों की बातें करें तो 1700 ही सार्वजनिक नलके हैं जहा से सार्वजनिक रूप में लोग पेयजल प्राप्त करते हैं। इसकी संख्या भी बढ़ानी जरूरी है। पेयजल आपूíत किए जाने हेतु वर्तमान में नगर निगम क्षेत्र में 15 ओवरहेड वाटर रिजर्वर हैं जो कि पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे कम से कम और 15 ओवरहेड वाटर रिजर्वर की आवश्यकता है। वहीं, वर्तमान में ग्राउंड लेवेल रिजर्वर (जीएलआर) की संख्या चार है जो कि 8 होनी चाहिए। अभी तक नगर निगम का लगभग 90-92 प्रतिशत इलाका ही जल आपूíत के दायरे में आ पाया है। बाकी आठ-10 प्रतिशत इलाके को भी इस दायरे में लाना जरूरी है। चक्रवर्ती ने कहा कि जल दोहन और जल संरक्षण के लिए भी इससे जुड़े लोगों के साथ बैठकर प्लान बनाया जाएगा।नगर निगम में दर्जनों ऐसे नल है जहा से जलापूíत के समय जल बर्बाद होता है। इसकी ओर कोई गंभीर नही है। वर्षा के जल को संचित करना होगा। घरों की बर्बाद होने वाले पानी को बचाना होगा। समय समय पर जल संरक्षण का संदेश देने कई संस्थाओं की आवाज तो सुनाई देती है पर वह कारगर नहीं हो पाता। जल संरक्षण वैसे तो हर व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है लेकिन कम लोग हैं जो कि इसे अमल में लाते हैं। इस दिशा में भी काम किया जा रहा है। जल दोहन रोके बिना जल संरक्षण संभव नहीं

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था नैफ के संयोजक अनिमेष बसु का कहना है कि शहर में सबसे ज्यादा वाहन होने के कारण वर्कशॉप भी ज्यादा है। वाहन धोने में बर्बाद होने वाली पानी पर रोक लगाने की व्यवस्था हो। दुकानों में जिस तरह से वाहनों को धोने में पानी की बर्बादी होती है, उसे रोकने के लिए भी नगर निगम और एसजेडीए व स्थानीय निकाय की ओर से सख्त कदम उठाए जाने की माग की गयी है। जहा भी वाहनों को बड़े स्तर पर धोने का कार्य किया जाता है, वहा एसटीपी के शोधित पानी का प्रयोग किया जाएगा। जिससे प्राधिकरण की तरफ से पेयजल के रूप में सप्लाई किए जाने वाले पानी के साथ भूजल के दोहन पर भी रोक लगेगा। नदियों को शुद्ध रखने के साथ ही उन्होंने वर्षा जल संचय की दिशा में भी प्रयास किया है। नदियों और ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न विद्यालयों व मेला क्षेत्र में गोठयिों का आयोजन कर लोगों को जल संरक्षण की सीख देते आ रहे हैं। बूंद-बूंद पानी की कीमत समझनी होगी। पानी की बर्बादी को रोकना होगा। लगातार बढ़ते डार्कजोन क्षेत्र को रोकने की दिशा में सकारात्मक प्रयास भी करना होगा। तभी पर्यावरण भी बचेगा और जल संरक्षण भी हो सकेगा। जो वर्तमान स्थिति है उसको देखकर लगता है कि इसको लेकर भी नगर निगम और सिलीगुड़ी जलपाईगुड़ी विकास प्राधिकरण गंभीर नहीं है।

रेलवे को देना होगा सबसे ज्यादा ध्यान

अनिमेष बसु और उनके साथ काम करने वाले शकर मजूमदार का कहना है कि सबसे ज्यादा जल संरक्षण पर ध्यान भारतीय रेल को देना होगा। रेलवे कॉलोनी और रेलवे स्टेशनों पर जो भी पानी का प्रयोग हो रहा है वह सभी भू-गर्व से लिया जा रहा है। रेलवे के पास जमीन की कोई कमी नहीं है इसलिए यहा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बड़े पैमाने पर तैयार किया जाना चाहिए। नगर निगम, सिलीगुड़ी जलपाईगुड़ी विकास प्राधिकरण और महकमा परिषद से लगातार आग्रह किया गया है कि वे अपने अपने क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की संख्या बढ़ाएं। पार्क व ग्रीन बेल्ट को लगाए जाने वाले रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की संख्या को भी इस वर्ष बढ़ाया जाए। शहर में जहा भी बड़े पार्क हैं वहा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम विकसित किया जाए। जिन स्थानों पर बरसात का पानी जमा होता है वहीं संपवेल बनाने के साथ रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए जाएंगे, जिससे बरसात का पानी नालियों के जरिए व्यर्थ बहने के बजाय भूजल के स्तर को बढ़ाने का कार्य करेगा। प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षेत्र में अनिवार्य रुप से लागू हो वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम। एसजेडीए की तरफ से पहले ही तीन सौ वर्ग मीटर से बड़े सभी प्रकार के भूखंडों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य किया था। लेकिन उसका पालन नहीं हो पा रहा है। अगर सिस्टम काम नहीं कर रहा है तो उसे दुरुस्त किया जाए, ताकि परिसर में बरसाती पानी को एकत्र करके भूगर्भ में उसे संचित किया जा सके।

जल संकट का प्रभाव

-गर्मी में तेजी से सूखेंगे हैंडपंप और कुएं

-सिंचाई के लिए नसीब नहीं होगा पानी

-पीने के पानी के लिए मचेगा हाहाकार

-पालतू जानवरों के लिए खड़ी होगी समस्या

क्या होगा इससे समाधान

-रोकी जाए पानी की बर्बादी

-गर्मी आने से पहले नलों की हो मरम्मत

-रेन वाटर हार्वेस्टिंग की हो व्यवस्था

- सिंचाई का संयंत्र लगाया जाए

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