विधानसभा चुनाव से पहले कहीं फिर ना सुलग जाए पहाड़
जागरण विशेष -एक तीर से कई निशाने साधने की हो रही है कोशिश - भाजपा के लिए एक ओ
जागरण विशेष
-एक तीर से कई निशाने साधने की हो रही है कोशिश
- भाजपा के लिए एक ओर कुंआ तो दूसरी ओर खाई
-बिमल और विनय एक दूसरे को दरकिनार करने की कोशिश में -भारत-नेपाल पारगमन संधि 1950 का प्रचार जोरों पर ---------------------
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लोकसभा सीट है उत्तर बंगाल में
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लोकसभा सीट पर है भाजपा का कब्जा
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विधानसभा सीट है उत्तर बंगाल में
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सीट जीतने का भाजपा ने रखा लक्ष्य अशोक झा,सिलीगुड़ी : अलग गोरखालैंड राज्य की मांग कोई आज की मांग नहीं है। पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग इस मांग को लेकर कई बार लहूलहान होती रही है। जबकि एक बार फिर से पहाड़ पर आंदोलन की आग को धधकाने की तैयारी विधानसभा पूर्व शुरू हो गई है। इसकी अगुवाई की है गोरखा जनमुक्ति मोर्चा गोजमुमो सुप्रीमो विनय तमांग ने। वह अलग राज्य की मांग सीधे नहीं करके भारत-नेपाल पारगमन संधि 1950 को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके पीछे मकसद है गोरखालैंड की मांग को फिर से उभारना। इसको लेकर उन्होंने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा और अब पहाड़ और तराई डुवार्स में इसका प्रचार करना शुरु किया है। विधानसभा चुनाव में इस आग की चिंगारी पहाड़ से निकल कर डुवार्स में फैले, उसकी एक सोची समझी तैयारी चल रही है। विनय तमांग जो कभी बिमल गुरुंग के साथ रहकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे हैं,वे जानते है कि आंदोलन को गुप्त रूप से असम व सिक्किम का भी समर्थन है। जबकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को फिर से उठाने के पीछे कभी विनय तमांग तृकां सुप्रीमो व सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की करीबी बनकर पहाड़ पर सन 2017 से लगातार गोरखाओं का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से पहाड़ पर बांग्ला भाषा अनिवार्य करने को लेकर शुरू आंदोलन में गोजमुमो सुप्रीमो विमल गुरुंग पर सैकड़ों मामले चल रहे हैं। उसके बाद से वह फरार चल रह थे। ममता बनर्जी को समर्थन देते हुए वह इन दिनों वापस लौटे हैं। एक ओर तृणमूल कांग्रेस बिमल गुरुंग के सहारे गोरखा वोट को अपने पाले में बदलने की कोशिश में है तो विनय तमांग खेमा गोरखालैंड के सहारे खासतौर से भाजपा के समक्ष विषम स्थिति उत्पन्न करने की ओर अग्रसर है। गोरखालैंड का समर्थन या विरोध, दोनों ही स्थिति भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में अच्छी नहीं रहेगी। जबकि विनय तमांग इसी के सहारे बिमल गुरुंग को पहाड़ पर अपनी राजनीतिक जमीन पर दोबारा कब्जा नहीं करने देना चाहते। अलग राज्य के समर्थकों में इस बात पर रोष है कि गोरखालैंड राज्य के समर्थन में भाजपा खुलकर सामने क्यों नहीं आ रही है। इस मांग का समर्थन करने से क्यों कतरा रही है। क्यों वह अलग राज्य के बजाए तराई- डुवार्स व पहाड़ की समस्या का स्थायी राजनीतिक समाधान निकालने की बात करती है। राज्य के एक बड़े भाग में इस बात को लेकर नाराजगी है कि क्या भाजपा बंगाल को बांटना चाहती है। अगर ऐसा है तो वे उनके साथ नहीं जाने वाले। गोरखालैंड के पक्ष में गये तो हिल्स और उसके आसपास ही भाजपा को तेजी से पांव फैलाने का मौका मिलेगा, अगर विरोध करते हैं तो गोरखाओं के समर्थन से भी हाथ धोना पड़ सकता है। भाजपा अभी तक ममता सरकार को पूरी तरह से घेरने का प्रयास कर रही थी। इसमें काफी कुछ सफल भी हुई। मगर ज्यों ही अलग गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन की सुगबुगाहट हुई भाजपा का तेज कम होता दिखने लगा। कुछ खास बातें
1.राजनीतिज्ञ विश्लेषक इसे मां माटी मानुष सुप्रीमो का 'मास्टर स्ट्रोक' मान रहे है।
2. बिमल गुरुंग को लेकर बंगाली समाज में काफी रोष था। जब बिमल गुरुंग फरार रहे तो वह भाजपा के निकट ही रहे।
3. बिमल के समर्थन से भाजपा दार्जिलिंग में लोकसभा चुनाव जीतती रही है। जो बिमल कभी भाजपा के साथ थे उसी बिमल के सहारे तृणमूल भाजपा को चुनौती देने की रणनीति पर काम कर रही है।
4.उत्तर बंगाल में सारधा,नारदा और तुष्टिकरण की नीति समेत कई मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरने वाली भाजपा पहाड़ को लेकर सकते में है। 5. लोकसभा चुनाव के बाद से ही उत्तर बंगाल में भाजपा का कद बढ़ा है। आठ लोकसभा सीटों में सात पर वह कब्जा जमा चुकी है।
5. विधानसभा में भाजपा का लक्ष्य 54 में 50 सीटों पर कब्जा करना है। यहां तक की विरोधी पार्टियों के साथ मतदाताओं में भी भाजपा अपनी पैठ बनाने में सफल हो रही थीं।
6.पहाड़ पर तो तीन बार से भाजपा की ही जीत हो रही है। यहां लोकसभा, विधानसभा और नगरपालिका चुनाव में उम्मीद के अनुसार तृणमूल को सीटें नहीं मिल पायी है।
7. राज्य की तृणमूल सरकार ने एक रणनीति के तहत पहाड़ पर लोकसभा चुनाव पूर्व भाषा कार्ड खेला। अब फिर विधानसभा चुनाव से पहले गोरखालैंड कार्ड खेलने में जुटी है।
1907 से चला आ रहा है अलग राज्य का आंदोलन
भाषा और जाति अस्मिता को लेकर 1907 से गोरखालैंड आंदोलन चल रहा है। पहाड़ पर विधानसभा चुनाव पूर्व गोरखा अलग राज्य की मांग में एक बार फिर सड़क पर ना उतर जाएं। ऐसा 2017 में देखने को मिल चुका है। पहले भाषा को लेकर सरकारी निर्देश का विरोध हुआ और इसकी लपट ने पूरे पहाड़ को अशांत कर दिया। इतना ही नहीं गोरखाओं के गुस्से का ही परिणाम था कि यहां के तत्कालीन सांसद अहलूवालिया दोबारा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। उनके स्थान पर दार्जिलिंग से राजू बिष्ट चुनाव लड़े और जीतने में भी सफल रहे।
क्या कहते हैं सांसद राजू बिष्ट
दार्जिलिंग के सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट ने स्पष्ट कहा है कि उनके संकल्प पत्र में कही बातें तराई डुवार्स और हिल्स का स्थायी राजनीतिक समाधान निकालने के लिए वे संकल्पित हैं। इसकी ओर तेजी से काम आगे बढ़ रहा है। तृणमूल कांग्रेस जिस दो नाव की सवारी कर रही है उसका डूब जाना तय है। गोरखा हो या अन्य जाति विशेष के लोग, ममता के 10 वर्षो के कुशासन और झूठ को नजदीक से देखा है वह उसके झांसे में नहीं आने वाली। यहां के लोग जानते है कि इस मुद्दा का समाधान कोई निकाल सकता है तो वह है भारतीय जनता पार्टी।