अशोक भट्टाचार्य पर बिफरे मंत्री गौतम देव
आरोप -कहा राज्य सरकार द्वारा प्रदत कुर्सी पर बैठ कर राज्य सरकार को ही कोसना दोहरा राजनीतिक चरि
आरोप
-कहा, राज्य सरकार द्वारा प्रदत कुर्सी पर बैठ कर राज्य सरकार को ही कोसना दोहरा राजनीतिक चरित्र
-माकपा नीत वाममोर्चा की लगातार 34 साल की सरकार ने दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : तृणमूल काग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव ने सिलीगुड़ी के विधायक व सिलीगुड़ी नगर निगम की प्रशासकीय समिति के चेयरमैन अशोक भट्टाचार्य की इस बात पर आपत्ति जताई है कि राज्य की तृणमूल काग्रेस सरकार ने दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र के लोगों को प्रताड़ित किया है व धोखा दिया है। इस बाबत एक ऑडियो वार्ता जारी कर मंत्री गौतम देव ने कहा है कि <स्हृद्द-क्तञ्जस्>अशोक भट्टाचार्य ने दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र के संदर्भ में राज्य की तृणमूल काग्रेस सरकार को जो धोखा देने वाली सरकार कहा है वह सरासर गलत है। अशोक बाबू को समझना चाहिए कि वह अभी जनप्रतिनिधि नहीं हैं, मेयर नहीं हैं, बल्कि गत छह महीने से राज्य सरकार द्वारा मनोनीत सिलीगुड़ी नगर निगम की प्रशासकीय समिति के चेयरमैन के रूप में एक तरह से राज्य सरकार के ही प्रतिनिधि हैं। इसके बावजूद वह राज्य सरकार के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं। राज्य सरकार के विरुद्ध राज्य सरकार को ही पत्र लिख रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त कुर्सी पर बैठकर राज्य सरकार को ही चिट्ठी लिखकर धोखेबाज कह रहे हैं। यह गणतात्रिक रीति-नीति व नैतिकता के विरुद्ध है। यह उनका दोहरा राजनीतिक चरित्र है।
मंत्री ने यह भी कहा कि 1988 में जब दाíजलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) का गठन हुआ था तब दाíजलिंग पहाड़ के नेता सुभाष घीसिंग के साथ मिल कर अशोक बाबू की माकपा सरकार ने ही गुल खिलाया था। उनके बीच यह परोक्ष समझौता था कि लोकसभा में सुभाष घीसिंग माकपा का समर्थन करेंगे और तत्कालीन सिलीगुड़ी विधानसभा के मिरिक क्षेत्र में अशोक बाबू की जीत के भी सहायक रहेंगे। उसके बदले में माकपा उन्हें दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र की तीन विधानसभा सीट छोड़ देगी और डीजीएचसी का तोहफा भी देगी। उस राजनीतिक साठगाठ के तहत ही सुभाष घीसिंग ने दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र पर निरंकुश शासन किया। डीजीएचसी के माध्यम से सरकार के करोड़ों रुपये की बर्बादी हुई जिसका कभी कोई ऑडिट भी नहीं हुआ। पहाड़ के लोगों को धोखा देकर उन लोगों ने ही लोकसभा और विधानसभा सीटों का आपस में बंटवारा कर लिया। इन सबके बावजूद सुभाष घीसिंग व माकपा की मैत्री बरकरार नहीं रह पाई। उन लोगों ने पहाड़ और पहाड़ वासियों का कभी कोई भला नहीं किया। राज्य में माकपा नीत वाममोर्चा की लगातार 34 साल तक सरकार रही, खुद अशोक बाबू भी 20 साल तक विधायक और मंत्री रहे, वह पश्चिम बंगाल की तत्कालीन सरकार में इस क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, सुभाष घीसिंग ने भी 20 साल तक पहाड़ पर शासन किया। पर, पहाड़ के लोगों की आशाओं-आकाक्षाओं को माकपा नीत वाम मोर्चा सरकार ने कभी पूरा नहीं किया। इधर, 2011 में जब ममता सरकार आई तो गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) का त्रिपक्षीय समझौता हुआ। पहाड़ पर शाति एवं विकास का नया मार्ग प्रशस्त हुआ। वहा के लोगों की आशाओं-आकाक्षाओं को वास्तविक स्वरूप में पूर्ण होने की बेहतर दिशा मिली। हम लोगों ने भले ही पहाड़ के शाति और विकास के लिए समझौता किया लेकिन कोई स्वार्थी राजनीतिक साठ-गाठ नहीं की। दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटों, दाíजलिंग लोकसभा सीट व नगरपालिका आदि चुनाव में भी तृणमूल काग्रेस ने प्रतिद्वंदिता की।तृणमूल काग्रेस ने जीटीए का गठन किया। लोगों की आकाक्षाओं व आशाओं को पूरा किया। शाति एवं विकास का मार्ग प्रशस्त किया। मगर, विभाजन की कोई बात कभी नहीं की जो कि माकपा करती आई है व कर रही है। पहले वे लोग पहाड़ पर जा पाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते थे। मगर, हम लोगों ने जोरों के आदोलन के समय में भी पहाड़ पर जाकर शाति स्थापना की। दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र के कíसयाग के डॉवहिल में प्रेसिडेंसी यूनिवíसटी जैसा महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थान बनाया जा रहा है। मंगपू में हिल यूनिवíसटी का बिल पास हुआ है, और उसका काम भी हो रहा है। गोरुबथान में एक कॉलेज बनाया जा रहा है। दाíजलिंग में पेयजल आपूíत की जो बहुत दिनों से समस्या है उसके समाधान का कदम उठाया गया है। कालिमपोंग को एक ऐतिहासिक रूप में अलग जिला बना कर विकास की नई दिशा दी गई है। पहाड़ की सड़कों का कायाकल्प किया गया है। आधारभूत संरचना का विकास किया गया है। सास्कृतिक विकास की नई इबारत लिखी गई है। कई बोर्ड गठित किए गए हैं। राज्य सरकार ने कई हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। शिक्षा व चिकित्सा आदि के लिए सिलीगुड़ी आने पर ठहरने हेतु पहाड़ के लोगों को कोई समस्या ना हो इसलिए पहाड़िया भवन बनाया गया है। कई जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की मान्यता देने के बिल को भी राज्य सरकार ने स्वीकृति दे दी है। मगर, केंद्र सरकार ने उसे लंबित रखा हुआ है। दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र के चहुंमुखी विकास के लिए राज्य की तृणमूल सरकार ने कम समय में जो कर दिया उसका टुकड़ा भी माकपा नीत वाम मोर्चा की लगातार 34 साल तक रही सरकार नहीं कर पाई।