सौमित्र खान को गौतम देव का करारा जवाब

-कहा मर जाएंगे पर सांप्रदायिक भाजपा में नहीं जाएंगे -गोएब्बेल्स का खेल न खेले लोगों को

By JagranEdited By: Publish:Sun, 29 Nov 2020 09:20 PM (IST) Updated:Sun, 29 Nov 2020 09:20 PM (IST)
सौमित्र खान को गौतम देव का करारा जवाब
सौमित्र खान को गौतम देव का करारा जवाब

-कहा, मर जाएंगे पर सांप्रदायिक भाजपा में नहीं जाएंगे

-गोएब्बेल्स का खेल न खेले, लोगों को गुमराह करना छोड़े भाजपा जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव ने भाजपाई सांसद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष सौमित्र खान को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि वे और उनकी भाजपा गोएब्बेल्स का खेल खेलना बंद करें। भाजपा और उसकी आइटी सेल जो दिन रात लगातार गोएब्बेल्स के इस सिद्धांत पर काम करती रहती है कि झूठ को बार-बार बोलो तो वह सच हो जाएगा, वह सब अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है।

मंत्री गौतम देव रविवार शाम, यहां कॉलेज पाड़ा स्थित अपने घर से, अपने फेस बुक पेज के माध्यम से लाइव थे। उन्होंने कहा कि मैं चंद दिन पहले ही कोविड-19 नेगेटिव हुआ हूं। अभी भी क्वारेंटाइन रह रक कर स्वास्थ्य लाभ ले रहा हूं। मैं अभी पूरी तरह स्वस्थ्य नहीं हुआ हूं। फेफड़ों के संक्रमण से चंद दिन पहले ही उबरा हूं। सो, अभी भी ज्यादा बोलने से सांसों में दिक्कत होती है। इसके बावजूद मुझे लाइव आना पड़ा कि मेरे बारे में आधारहीन अफवाहें फैलाई जा रही हैं। मैंने मीडिया के माध्यम से जाना कि भाजपा के युवा नेता सांसद सौमित्र खान ने दावा किया है कि तृणमूल कांग्रेस के अन्य कुछ नेता-जनप्रतिनिधियों संग मैं भी चार दिनों के अंदर ही भाजपा में शामिल होने वाला हूं। इस बाबत कई मीडिया वालों ने मेरी प्रतिक्रिया भी ली लेकिन मैं आश्चर्यचकित हूं कि कुछ मीडिया वालों ने मेरी बात नहीं प्रकाशित की, नहीं दिखाई। इसलिए मुझे अपने फेसबुक पेज के माध्यम से लाइव आना पड़ा, यह बताने के लिए कि सौमित्र खान की बात सरासर झूठ व निराधार है। मैं मर जाऊंगा लेकिन सांप्रदायिक भाजपा में कभी नहीं जाऊंगा।

उन्होंने यह भी कहा कि मैं छात्र जीवन से ही राजनीति में हूं। पढ़ लिख कर एक आदर्श को मानते हुए ही राजनीति कर रहा हूं। 1975 में कांग्रेस के छात्र परिषद से जुड़ा। छात्र परिषद, युवा कांग्रेस व कांग्रेस की विभिन्न महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को निभाते हुए 1998 तक कांग्रेस में ही रहा। 1977 में देश में इंदिरा गांधी की सरकार चली गई, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का अवसान हो गया तब भी मैं अवसरवादी नहीं बना। औरों की तरह सत्तारूढ़ दल में नहीं चला गया। 1998 में आदर्श व नीतिगत मतभेद के चलते ही जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग हो कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया तब मैं भी उनके साथ जुड़ गया। 1998 से 2011 तक तृणमूल कांग्रेस विपक्ष में ही रही तब भी औरों की तरह मैंने इसका साथ नहीं छोड़ा। सत्तारूढ़ दल का दामन नहीं थामा। अब तृणमूल कांग्रेस सत्ता में है। मुझे पूरा सम्मान दिया है। मंत्री हूं। अब इसे छोड़ने का सवाल कहां से पैदा होता है। मेरा एक ही गणतांत्रिक आदर्श है। उसी के लिए मैं कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस से जुड़ा। इन दोनों ही दलों के नीति-आदर्श एक ही हैं, लोकतंत्र व गणतंत्र। इन आदर्शो को छोड़ कर मैं सांप्रदायिक भाजपा में कदापि नहीं जा सकता है। आदर्शो-विचारों के मर जाने से बेहतर खुद मर जाना है। मैं मर भी जाऊं तो मेरे मृत शरीर पर कांग्रेस का झंडा पसंद करूंगा यदि कांग्रेस वाले देंगे तो, लेकिन, गुरुआ सांप्रदायिक भाजपा का झंडा तो मैँ अपने मृत शरीर पर भी पसंद नहीं करूंगा।

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