उड़ने वाली गिलहरी से लोगों में दहशत, जानें क्यों हैं ये इतनी अलग
भारत में उड़न गिलहरी हिमालय के आसपास देवदार के पेड़ों पर ग्लाइडिंग करती देखी गई हैं। इनका जीवन अधिकतम 10 साल होता है।
जलपाईगुड़ी, जागरण संवाददाता। गिलहरी को लेकर डुवार्स के घीस बस्ती के लोगों में दहशत का माहौल देखा गया। रात 9 बजे लेबु मोहम्मद काम के बाद घीस बस्ती स्थित अपने घर लौट रहा था। अंधकार के दौरान उसने किसी जानवर आंख चमकते हुए देखा। वह पहले जंगली बिल्ली समझा था। बाद में पता चला कि वह गिलहरी है। इसके बाद माल वाईल्ड लाइफ स्क्वायड व नोयाम रेंज के वनकर्मियों को सूचना दी गई। काफी प्रयास के बाद गिलहरी को पकड़ा गया।
वाईल्ड लाइफ के डीएफओ निशा गोस्वामी ने कहा कि भूटान इलाके की उड़ने वाली गिलहरी थी। वह किसी तरह पहाड़ के जंगल से चला आया था। शारीरिक जांच के बाद उसे गिलहरी को जंगल में छोड़ दिया गया।
उड़ने वाली यह गिलहरी दरअसल ग्लाइड करती है इसके अगले और पिछले पंजों के बीच चमड़े की एक पंख नुमा चादर होती है जिसके बलबूते पर यह गिलहरी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर ग्लाइड करते हुए उतरती है।यह जंगलों में बड़ी तादाद में पाई जाती थी लेकिन अब इनकी संख्या कम हो रही है।
विश्व में तीन तरह की गिलहरियां पाई जाती हैं- पेड़ों पर रहने वाली, जमीन पर घूमने वाली और उड़ने वाली।
उड़ने वाली गिलहरी भारत के अलावा रूस, चीन, श्रीलंका, जापान और एशिया के अधिकांश भागों, अफ्रीका के घाना, कांगो और उत्तरी अमेरिका के कुछ भागों में पाई जाती है। इसका आकार बिल्ली के बराबर तक होता है।
नॉर्थ अमेरिका में पाई जाने वाली उड़न गिलहरी आकार में सबसे बड़ी होती है। इसकी लंबाई 30 सेंटीमीटर से 60 सेंटीमीटर और वजन आधा किलो से 7 किलो तक होता है। उड़ने वाली गिलहरी की आंखें बड़ी होती हैं। इसके पूरे शरीर पर मुलायम और घने बाल होते हैं।
अफ्रीका में पाई जाने वाली उड़न गिलहरी की पूंछ के अगले भाग पर तेज धार वाले नुकीले शल्क होते हैं। इन्हें ‘स्केली टेल्ड गिलहरी’ कहते हैं। ये गिलहरियां पेड़ों की डालियों पर उल्टी लटकी रहती हैं और इसके तनों में घोंसला बनाकर रहती हैं। कीड़े-मकोड़ों के अलावा फूल-पत्तियों को कुतर-कुतर कर खाती हैं।
भारत में उड़न गिलहरी हिमालय के आसपास देवदार के पेड़ों पर ग्लाइडिंग करती देखी गई हैं। इनका जीवन अधिकतम 10 साल होता है।