एक गलती से शिखर से शून्य तक पहुंच गये वामपंथी

-वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अशोक नारायण भट्टाचार्य ने किया चुनाव से किनारा कहा पार्टी का

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 06:06 PM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 06:06 PM (IST)
एक गलती से शिखर से शून्य तक पहुंच गये वामपंथी
एक गलती से शिखर से शून्य तक पहुंच गये वामपंथी

-वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अशोक नारायण भट्टाचार्य ने किया चुनाव से किनारा

कहा, पार्टी को देते रहेंगे मार्गदर्शन, युवाओं को देंगे सीख

अशोक झा, सिलीगुड़ी :

बंगाल का नाम वामपंथी राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है। बंगाल में पैदा होने वाले युवक छात्र राजनीति से जीवन के अंतिम घड़ी तक वामपंथी राजनीति का ध्वज वाहक बना रहता था। जहां उनके नाम के साथ धमक हुआ करती थी वहीं आज विधानसभा में उनके एक भी सदस्य नहीं जीत पाएं। चुनावी हार के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अशोक नारायण भट्टाचार्य ने अब किसी भी चुनाव में भाग लेने से स्पष्ट इंकार कर दिया है। वे पार्टी में रहकर मार्गदर्शक मंडली के रुप में काम करते रहेंगे। हार के कारणों के लिए पोलित ब्यूरो और केंद्रीय नेतृत्व बैठक करेगा। उसमें सभी बातों पर चर्चा होगी। उसके बाद ही पार्टी कहा चूक गयी बताया जा सकेगा। अशोक भट्टाचार्य का कहना है कि इस बार के चुनाव हार से सबक लेने की जरुरत है।

एक दशक पूर्व हुई एक गलती

सीपीआईएम जो कभी 34 वर्षो के शासन का एक इतिहास रचा। एक दशक पूर्व एक गलत फैसले ने उन्हें अर्स से फर्स पर ला पटका है। आजादी के बाद यह पहला मौका है कि जब वामपंथी पार्टियों का एक भी प्रतिनिधि विधानसभा में नहीं जीत पाया है। वामपंथी नेता स्वीकार करते है कि वह गलती थी सिंगूर भूमि अधिग्रहण का फैसला। यही उनके राजनीतिक पतन का मुख्य कारण है। इस घटना के बाद उनकी पार्टी को उबरने का मौका ही नहीं मिल पाया।

इसके अलावा भी कई गलतियां

माकपा के सत्ता गंवाने के पीछे भले ही सिंगूर रहा हो, लेकिन बाद में उसके खड़े नहीं हो पाने के कई कारण हैं। दरअसल, जिन मुद्दों को लेकर माकपा राजनीति करती थी, उन्हीं सब मुद्दों को ममता ने आत्मसात कर लिया तथा उसी तर्ज पर अपना कैडर खड़ा कर लिया। ममता राज्य में एक मजूबत मुख्यमंत्री के रूप में उभरकर आईं तो माकपा कोई चेहरा पेश नहीं कर पाई। 34 वर्षो के शासन में माकपा जिस विरोधी दल काग्रेस से लड़ती थी, उसी से उसने हाथ मिला लिया। इस सबके बावजूद हाल के वर्षो में जब राज्य में भाजपा ने पैठ बढ़ानी शुरू की तो वामदल यह तय नहीं कर पाए कि उन्हें तृणमूल से लड़ना है या भाजपा से। इन सब कारणों के चलते आज माकपा राज्य में शून्य पर है।

माकपा 2006 में जीता था 176 सीटें

वाममोर्चा ने 2006 में राज्य में 176 सीटें जीती थीं। उसके बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री बने थे। उस समय शहरी विकास मंत्री थे सिलीगुड़ी के विधायक अशोक नारायण भट्टाचार्य। उनके कार्यकाल में ही सिंगूर में टाटा मोटर्स के लिए किसानों की भूमि के अधिग्रहण के फैसले ने तृणमूल काग्रेस को राज्य में अपनी जड़ें जमाने का मौका दे दिया। नतीजा यह हुआ कि 2011 में माकपा के 34 साल के शासन का अंत हो गया।

2011 में भी जीत पायी थी 40 सीटें

2011 में भले ही सिलीगुड़ी से अशोक भट्टाचार्य अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार चुनाव में पराजित हुए थे। तब भी माकपा को 30 फीसदी मत और 40 सीटें मिली थीं। इस बार तो 2006 की तुलना में मत प्रतिशत सात फीसदी कम हुआ था। पार्टी नेता का कहना है कि

2016 में माकपा का वोट प्रतिशत और घट गया। पार्टी 19.75 फीसदी मतों पर सिमट गई और सीटें 26 रह गईं। तब एक बार फिर से सिलीगुड़ी से अशोक नारायण भट्टाचार्य विधायक बने थे। इसको लेकर पूरे राज्य में अशोक मॉडल की चर्चा होने लगी थी। माकपा ने काग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। अशोक भट्टाचार्य ने कहा था कि वोट लूट को रोकने के कारण ही जीत मिल पायी है। 2021 के चुनाव में भी माकपा ने खुद को विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश की थी। काग्रेस से गठबंधन किया। ममता विरोधी कट्टर मुस्लिम संगठन आईएसएफ से भी हाथ मिलाकर आलोचना मोल ली, लेकिन हाथ कुछ नहीं आया। वह एक भी सीट नहीं जीत पाई और उसके मतों का प्रतिशत घटकर 4.7 रह गया। वहीं, सहयोगी काग्रेस और आईएसएफ को भी कोई सीट नहीं मिल सकी। काग्रेस तीन फीसदी तो आईएसएफ एक फीसदी वोट ही हासिल कर सका। दार्जिलिंग जिला में फांसीदेवा और माटीगाड़ानक्सलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस के 10 वर्षो के विधायक को तीसरे नंबर पर रहना पड़ा। देखना होगा कि ऐसी पार्टियां क्या फिर खड़ी हो पाती है या नहीं?

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