कोविड-19 महामारी में आर्थिक तंगी से जूझ रहे सैकड़ों अधिवक्ता, लॉ क्लर्क और उससे जुड़े कर्मियों का हाल बेहाल

कोविड-19 महामारी मैं पिछले 1 वर्षों से सबसे बुरा हाल सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन से जुड़े अधिवक्ताओं और लॉ क्लर्क है। एसोसिएशन के तहत 1800 अधिवक्ता और ढाई सौ से अधिक लॉ क्लर्क है। कई तो ऐसे अधिवक्ता हैं जो कर्ज में डूबे हैं।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 05:49 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 05:49 PM (IST)
कोविड-19 महामारी में आर्थिक तंगी से जूझ रहे सैकड़ों अधिवक्ता, लॉ क्लर्क और उससे जुड़े कर्मियों का हाल बेहाल
महामारी से जूझते सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन के वकील

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी: कोविड-19 महामारी मैं पिछले 1 वर्षों से सबसे बुरा हाल सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन से जुड़े अधिवक्ताओं और लॉ क्लर्क है। एसोसिएशन के तहत 1800 अधिवक्ता और ढाई सौ से अधिक लॉ क्लर्क है। कोरोना महामारी किस समय कोर्ट की गतिविधियां लगभग ठप होने से प्रतिदिन हजार से 10000 कमाने वाले वकील अभी सो 100 के लिए तरस रहे हैं। कई तो ऐसे अधिवक्ता हैं जो कर्ज में डूबे हैं। विडंबना यह है कि इन बातों को वह किसी से खुलकर भी नहीं बोल सकते।

पेशे से वकील होने के कारण उन्हें घर के अलावा एक चेंबर भी लेना पड़ता है। ऐसे में घर सितंबर का किराया अपने जूनियर का वेतन तथा अन्य कई प्रकार के खर्च उन्हें उठाना पड़ता है। इस बात को सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन के सचिव मोहम्मद यूसुफ अली स्वीकार करते हैं और कहते हैं यही स्थिति रही तो कितने अधिवक्ता इस पेशे से दूर चले जाएंगे। वकीलों से बत्तर हाल लॉ क्लर्क और उनसे जुड़े लोगों का है।

सिलीगुड़ी कोर्ट परिसर में वकीलों के अलावा लॉ क्लर्क और वाहनों के कागजात लाइसेंस तथा स्टांप पेपर के साथ इश्तिहार टाइप करने वाले लोग जुड़े हुए हैं। कोविड-19 महामारी कल में कोर्ट परिसर में लोगों का आना जाना ही लगभग बंद है धंधा पानी कैसे चलेगा। इनकी ओर ना तो सरकार का ध्यान है और ना ही अन्य एजेंसियों का। देखना यह होगा कि 15 जून के बाद इनके जीवन की गाड़ी कानूनी पटरी पर दौड़ती है या नहीं?।

15,000 से अधिक मामलों  कि नहीं हो रही सुनवाई

सिलीगुड़ी कोर्ट परिसर में सिविल, क्रिमिनल, एनडीपीएस, फास्ट्रेक 1,2 अतिरिक्त जिला सत्र न्यायालय, पोक्सो एक्ट न्यायालय सहित अन्य न्यायालय कार्य करते हैं। महामारी के कारण सिविल और क्रिमिनल के 15000 ऐसे मामले हैं जिन पर सुनवाई नहीं हो पा रही है। न्यायालय और न्यायाधीश के सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वे लोगों की जान बचाई या लोगों को न्याय दिलाएं?। सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन के सचिव मोहम्मद यूसुफ अली का कहना है कि पिछले वर्ष 2020 से अब तक न्यायालय और इससे जुड़े लोगों लिए बेहतर नहीं रहा। कोरोना का सर्वाधिक असर न्यायिक व्यवस्था पर दिखा।

संक्रमण काल के कारण आम व खास लोगों के आस्था का केंद्र न्यायालय ही होता है। महामारी के कारण यहा मिलने वाली सस्ता व सुलभ न्याय पाने की अवधारणा पर ब्रेक लगा रहा।  न्यायमंडल में तकरीबन 95 प्रतिशित कोर्ट कार्य बंद सा रहा। 2021 के जनवरी 10 के बाद कोर्ट में धीरे-धीरे लोगों का आना शुरू ही हुआ कि मार्च के बाद फिर से कोविड-19 की दूसरी लहर की चपेट में कोट आ गया। इसके कारण न्यायिक अवधारणा के अनुकूल त्वरित न्याय प्रणाली कोरोना की भेंट चढ़ गई। न्याय मांगने वाले सालों भर बिलबिलाते रहे। वैश्विक संकट के कारण अदालत प्रांगण में न्याय अतिथियों के प्रवेश पर रोक लग गई। इसकी वजह से जेल में काराधीन विचाराधीन बंदियों को जेल से जमानत पर निकलना दूभर हो गया।

न्यूनतम आरोपियों की ही जमानत आवेदन पर वर्चुअल सुनवाई पश्चात उनके बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त हो सका। अदालत में पक्षकारों के प्रवेश पर अघोषित रोक लगी रही। इस दौरान गंभीर और संवेदनशील मामलों में भी वर्चुअल कोर्ट रहने की वजह से अदालतों में गवाही कराने का कार्य बंद रहा। आवश्यक वीडियो काफ्रेंसिग के माध्यम से प्राय: जमानत याचिका पर सूनवाई का प्रावधान किया गया। जिसका लाभ काराधीन आरोपितों को मिला। कोरोना काल में वकीलों ने अपने मुवक्किलों के पुराने मुकदमे और नए मुकदमे के ट्रायल में गवाहों के परीक्षण प्रतिपरीक्षण नहीं कर पाए। इसके कारण अधिवक्ताओं को भी कानून की बारीकियों का बौद्धिक क्षमता पर असर पड़ा। सालों भर अदालत प्रांगण वकीलों और पक्षकारों के बिना सुनसान बना हुआ है। जिन्हें जमानत मिल सकती थी। सिविल मामले में त्वरित न्याय हो सकता था अब उसमें ना जाने और कितनी देरी होगी।

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