भूकंप व भूस्खलन जैसी आपदा में जलवायु परिवर्तन चुनौती: एसपीवाईएफ

अत्यधिक ठण्ड और बेमौसम अत्यधिक बारिश होना जलवायु परिवर्तन का साकेतिक लक्षण संवाद सूत्र गंगट

By JagranEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 07:13 PM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 07:13 PM (IST)
भूकंप व भूस्खलन जैसी आपदा में जलवायु परिवर्तन चुनौती: एसपीवाईएफ
भूकंप व भूस्खलन जैसी आपदा में जलवायु परिवर्तन चुनौती: एसपीवाईएफ

अत्यधिक ठण्ड और बेमौसम अत्यधिक बारिश होना जलवायु परिवर्तन का साकेतिक लक्षण

संवाद सूत्र, गंगटोक : वैश्रि्वक महामारी कोविड-19 के चलते लॉकडाउन, बढ़ती महंगाई और राज्य में कुछ दिनों से हो रही व्यापक बारिश के कारण नुकसान का सामना कर रहे किसानों के पक्ष में सिक्किम प्रोग्रेसिव यूथ फोरम (एसपीवाईएफ) ने आवाज बुलंद की है। किसानों के हित में राज्य सरकार से विभिन्न माग और सरकार को सुझाव देते हुए फोरम ने शनिवार को इस संबंध में विज्ञप्ति जारी कर उक्त जानकारी दी है। जिसमें कहा गया है कि राज्य में धान की फसल उठाने का समय है। इस समय अनवरत बारिश के कारण आधा पका हुआ धान जमीन में बिखर कर नष्ट हो गया है।

अधिकाश लोग बेमौसमी अत्याधिक बारिश होना आश्चर्य मान रहे है। मौसम को लेकर सामान्य ज्ञान रखने वाले लोग तो समझ सकते है कि बेमौसम बारिश होना जलवायु परिवर्तन का ही प्रभाव है। लेकिन यह बारिश केवल एक नमूना है। जल वायु परिवर्तन में अकश्मत अत्याधिक धूप होना, अत्यधिक ठण्ड और बेमौसम अत्यधिक बारिश होना जलवायु परिवर्तन का साकेतिक लक्षण है। जलवायु परिवर्तन को रोकने की माग को लेकर विश्वव्यापी आदोलन भी हो रहे है। सिक्किम में भी पर्यावरण को लेकर समस्याएं है। भूकंप और भूस्खलन जैसे प्राकृतिक आपदा में संवेदनशील सिक्किम में जलवायु परिवर्तन का एक अलग समस्या है। सिक्किम में पहले से ही निर्मित बड़े-बड़े बाध और दवाई कंपनियों की वजह से पर्यावरण में व्यापक असर है, इसी कारण भविष्य में जब भी नीति निर्धारण किया जाएगा इन सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए जलवायु संरचना केंद्रित नीति निर्धारण तैयार करना आवश्यक है। इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए सिक्किम प्रोग्रेसिव युथ फोरम ने सिक्किम सरकार प्रति तीन माग रखा है। फोरम का माग है कि बारिश के कारण क्षति हुए किसानों की उपज का निरीक्षण कर सहायता राशि प्रदान किया जाए। जल वायु परिवर्तन का ख्याल रखते हुए अनावश्यक जल विद्युत परियोजनाओं को बंद किया जाए और निजी फार्मा कंपनियों की थालनि से पहले प्रकृति को ध्यान में रखा जाए।

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