जलवायु परिवर्तन के चलतेबरपा है कहर

-विशेषज्ञों ने जताई चिंताप्राकृतिक विपदा अब आम बातअभी भी नहीं संभले तो विनाश तय जागरण

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 07:54 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 07:54 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन के चलतेबरपा है कहर
जलवायु परिवर्तन के चलतेबरपा है कहर

-विशेषज्ञों ने जताई चिंता,प्राकृतिक विपदा अब आम बात,अभी भी नहीं संभले तो विनाश तय

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी: कल-कल की मधुर ध्वनि के साथ बहने वाली उत्तर बंगाल की नदियां इन दिनों गर्जन कर रही हैं। हिमालय के ग्लेसियर पिघल रहे हैं। असमय बारिश व हिमपात रोंगटे खड़े कर रहे है। पूरे देश यूं कहें तो पूरी दुनिया में इन दिनों प्रकृति कहर बरपा रही है। उत्तराखंड से लेकर केरल, गुजरात से लेकर असम हर जगह प्रकृति का बिगड़ा हुआ रूप दिख रहा है। पिछले तीन दिनों से उत्तर बंगाल में बारिश का पानी मानो मुसीबत का बादल बनकर टूटा है। चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई है। हालांकि यह सब अचानक नहीं हुआ है, बल्कि काफी समय से इसकी चेतावनी मिल रही थी। मनुष्य ही है जो इस पर गौर करने के बजाय अपनी धून में चलते चला रहा है। प्रकृति के इस रौद्र रूप को लेकर दैनिक जागरण से हिमालयन नेचर एंड फाउंडेशन के प्रमुख व पर्यावरणविद् अनिमेष बोस ने विस्तार से बातचीत की। उन्होंने कहा कि यह सब क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। जलवायु परिवर्तन के लिए सिर्फ ग्लोबल वार्मिग ही जिम्मेवार नहीं है, बल्कि इसके लिए मानव का रहन- सहन मुख्य रूप से जिम्मेवार है। अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन इसके लिए जिम्मेवार है। मनुष्य के बिगड़े रहन - सहन के कारण कार्बन का अधिक से अधिक उत्सर्जन हो रहा है। कार्बन के कारण ओजोन की परत को क्षति पहुंच रही है और ग्लोबल वार्मिग का खतरा हमारे पर्यावरण पर दिख रहा है। एसी, फ्रीज, वाहन के अत्यधिक प्रयोग के चलते मानव का जीवन संकट में आया है। वैज्ञानिक काफी समय से चेतावनी दे रहे हैं,लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। यूरोपियन देश कार्बन उत्सर्जन के लिए अधिक जिम्मेवार हैं और अब एशियाई देश भी उनके नक्से कदम पर चल रहे हैं। यहीं कारण है कि यूरोप से लेकर एशिया तक बाढ़, बर्फबारी, तापमान वृद्धि, व्रजपात, भूस्खलन, सूनामी का कहर दिख रहा है। श्री बोस कहते हैं कि पहले 50 साल में एक बार प्राकृतिक आपदा आती थी, लेकिन अब यह आम बात हो गयी है।

हर साल सैकड़ों लोगों की जान सिर्फ व्रजपात व बाढ़ से जा रही है। प्रकृति से प्रेम ही बचा सकती है धरती को

प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों से सावधान रहना होगा। अधिक से अधिक पौधे लगाने होंगे। प्रकृति से प्रेम करना होगा। वर्तमान दौर में इंसान कृत्रिम जीवन जीने लगा है। एक घर में कई वाहन, फ्रिज, कूलर, एसी चल रहे हैं। इनसे निकलने वाले गैस इस वायुमंडल को दूषित कर रहे हैं। यदि अब भी न संभले तो विनाश हमारी प्रतीक्षा कर रही है। आने वाले पीढ़ी के लिए हमें एक सुंदर व व्यवस्थित दुनिया देने की मानसिकता रखनी होगी। अब भी वक्त है, इंसान संभल जाए। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक असर फसल व किसानों पर

प्रकृति के बदलते रूप का सर्वाधिक असर किसानों व उनकी फसलों पर हुआ है। असमय बारिश के कारण किसानों का बुरा हाल है। वर्तमान में धान से लेकर साग- सब्जी की खेती करने वाले किसानों की कमर ही टूट गयी है। खेतों में धान की लहलहाती बालियां जमीन पर सो गयी हैं। रवि की बुआई पर भी संकट के बादल हैं। खास तौर से दलहन की बुआई प्रभावित हो चुकी है। आंधी, पानी, ओले, जल जमाव ये सभी किसानों के लिए किसी बर्बादी के मंजर से कम नहीं हैं।

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