Basant Panchami 2021: सरस्वती पूजा का क्या है शुभ मुहूर्त, सिलीगुड़ी में बड़ी संख्या में बाजार में पहुंची मूर्तियां
वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त इस बार 16 फरवरी को सुबह 3 बजकर 36 पर प्रारंभ होकर 17 फरवरी 2021 को सुबह 5.46 तक रहेगा। इस मौके पर रेवती नक्षत्र में अमृत सिद्धि योग एवं रवि योग में सरस्वती की पूजा होगी। अभिजीत मुहूर्त 11.41 से दोपहर 12.46 तक रहेगा।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। सरस्वती पूजा को लेकर बाजार पूरी तरह से सज चुका है। बड़ी मात्रा में छोटी बड़ी मूर्तियां बाजार में पहुंची है। 200 से लेकर 7000 की मूर्तियां यहां उपलब्ध है। सिलीगुड़ी बाजार में कोरोना के बाद पहली बार फिर सरस्वती पूजा में मूर्ति कारोबारी बड़े उछाल की उम्मीद कर रहे हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त
वसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2021 में वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त इस बार 16 फरवरी को सुबह 3 बजकर 36 पर प्रारंभ होकर 17 फरवरी 2021 को सुबह 5.46 तक रहेगा। इस मौके पर रेवती नक्षत्र में अमृत सिद्धि योग एवं रवि योग में मां सरस्वती की पूजा होगी। इसमें अभिजीत मुहूर्त 11.41 से दोपहर 12.46 तक रहेगा। वसंत पंचमी के दिन व्यक्ति को स्नान आदि से निवृत होने के बाद पीले या श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिए। मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा करने के दौरान उनको पीले पुष्प, पीले रंग की मिठाई या खीर जरूर अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा उनको केसर या पीले चंदन का टीका लगाएं। पीले वस्त्र भेंट करें।
क्यों महत्वपूर्ण है सरस्वती पूजा:
इस संबंध में पंडित यशोधर झा का कहना है कि वसंत पंचमी का दिन शिक्षा प्रारंभ करने, नई विधा, कला, संगीत आदि सीखने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। छोटे बच्चों को इस दिन अक्षर ज्ञान कराया जाता है। आज के दिन लोग गृह प्रवेश का कार्य भी करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वसंत पंचमी को कामदेव पत्नी रति के साथ पृथ्वी पर आते हैं और हर ओर प्रेम का संचार करते हैं। ब्रह्माजी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति वसंत पंचमी के दिन की थी। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मानकर पूजा-अर्चना की जाती है।
यदि हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। यही कारण है कि यह त्योहार हिन्दुओं के लिए बहुत खास है। इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं और इसके साथ ही वसंत मेले आदि का भी आयोजन किया जाता है। सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की। इसी बीच उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है। इस पर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री, जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वरमुद्रा में था तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी, प्रकट हुईं।
ऋतुओं का राजा वसंत
भारतीय पंचांग में 6 ऋतुएं होती हैं। इनमें से वसंत को 'ऋतुओं का राजा' कहा जाता है। वसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। ऋतुराज वसंत का बहुत महत्व है। ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए फूल (मौर या बौर), चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है।
यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है। इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस ऋतु को काम बाण के लिए भी अनुकूल माना जाता है। वसंत पंचमी का दिन हिन्दू कैलेंडर में पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जिस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है, उस दिन को ही सरस्वती पूजा के लिए सही माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती है लेकिन पूर्वान्ह का समय पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। सभी शिक्षा केंद्रों व विद्यालयों में पूर्वान्ह के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।