बलिदान दिवस पर भाजपा ने शुरू किया पौधारोपण

-जयंती पर याद किए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी -नेताओं ने की रहस्यमय मौत की जांच की मांग जागरण स

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 07:56 PM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 07:56 PM (IST)
बलिदान दिवस पर भाजपा ने शुरू किया पौधारोपण
बलिदान दिवस पर भाजपा ने शुरू किया पौधारोपण

-जयंती पर याद किए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी

-नेताओं ने की रहस्यमय मौत की जांच की मांग

जागरण संवाददाता ,सिलीगुड़ी: डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के और 68वें बलिदान दिवस के उपलक्ष में भारतीय जनता पार्टी सिलीगुड़ी सागठनिक जिला कमेटी की ओर से पौधारोपण अभियान का शुभारंभ किया गया। बुधवार को शहर के वार्ड 46 स्थित श्री गुरु विद्या मंदिर विद्यालय के सामने पौधारोपण अभियान में जिलाध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल, जिला महासचिव राजू शाह, जिला सचिव कन्हैया पाठक, भाजपा नेता नाटू पाल, पंकज शाह, रवि राय, शिखा राय, मुन्ना भद्र, दिनेश सिंह सहित अन्य कार्यकर्ता मौजूद थे।

इस मौके पर जिला अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल ने कहा कि यह कार्यक्रम 6 जुलाई तक चलेगा। इस अभियान के तहत पूरे जिले में 10,000 पौधारोपण किए जाएंगे। भाजपा जिला कार्यालय में भी की प्रतिमा पर पुष्प अíपत कर उनके सपनों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया गया।

इस माकै पर भाजपा नेताओं ने कहा कि डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी निधन को लगभग सात दशक बीतने के बाद भी उनकी मौत पहेली बनी हुई है। कुछ समय पहले कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने माग की है कि डॉ मुखर्जी की मौत की जाच के लिए कमीशन बने। इससे तय हो सकेगा कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या साजिश। वैसे भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी तक ने जनसंघ के संस्थापक मुखर्जी के किसी साजिश का शिकार होने का संदेह जताया था। आजादी के समय से देश के इतिहास में जिन तीन नेताओं की मौत पहेलिया बनकर रह गईं, उनमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस, पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का नाम शामिल है और उसी फेहरिस्त में तीसरा नाम मुखर्जी का है। मुखर्जी की मा जोगमाया देवी ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को इस माग संबंधी चिट्ठी लिखी,लेकिन जवाब में नेहरू ने यही कहा कि मुखर्जी की मौत कुदरती थी, कोई रहस्य नहीं कि जाच करवाई जाए। कम समय में पाई थी प्रतिष्ठा

जुलाई 1901 को कोलकाता के एक संभ्रात बंगाली परिवार में जन्मे मुखर्जी केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवíसटी के कुलपति बन गए। वहा से वो कोलकाता विधानसभा पहुंचे। यहा से उनका राजनैतिक करियर शुरू हुआ लेकिन मतभेदों के कारण वे लगातार अलग होते रहे।

कश्मीर में अलग कायदे-कानून के थे विरोधी : मुखर्जी अनुच्छेद 370 का विरोध करते रहे। वे चाहते थे कि कश्मीर भी दूसरे राज्यों की तरह ही देश के अखंड हिस्से की तरह देखा जाए और वहा भी समान कानून रहें।

कश्मीर जाते हुए थे गिरफ्तारी

इस्तीफा देने के बाद वे नेहरू की नीतियों के विरोध के दौरान मुखर्जी कश्मीर जाकर अपनी बात कहना चाहते थे, लेकिन 11 मई 1953 को श्रीनगर में घुसते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।तब, वहा शेख अब्दुल्ला की सरकार थी। दो सहयोगियों समेत गिरफ्तार किए गए।

लगातार बिगड़ती गई सेहत

एक महीने से ज्यादा कैद में रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी। उन्हें बुखार और पीठ में दर्द की शिकायतें बनी हुई थीं। 19 व 20 जून की रात उन्हें प्लूराइटिस होना पाया गया। जो उन्हें 1937 और 1944 में भी हो चुका था। 22 जून को मुखर्जी को सास लेने में तकलीफ महूसस हुई। अस्पताल में शिफ्ट करने पर हार्ट अटैक होना पाया गया।

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