गोरखालैंड आंदोलन के पुरोधा सुभाष घीसिंग की मनाई गई 86 वीं जन्म जयंती

सुभाष घीसिंग का जन्म मंजू टी एस्टेट में 22 जून 1936 में हुआ था। 1954 में वे भारतीय सेना के गोरखा राइफल्स में शामिल हुए। 1960 में सेना की नौकरी छोड़ 1968 में नीलो झंडा नामक संगठन तैयार किया।

By Priti JhaEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 02:13 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 03:30 PM (IST)
गोरखालैंड आंदोलन के पुरोधा सुभाष घीसिंग की मनाई गई  86 वीं जन्म जयंती
गोरखालैंड आंदोलन के पुरोधा सुभाष घीसिंग की मनाई गई 86 वीं जन्म जयंती

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी। गोरखालैंड आंदोलन के पुरोधा सुभाष घीसिंग कि 86 वीं जन्म जयंती दार्जिलिंग हिल्स से लेकर समतल तक कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखकर मनाया गया। गुरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट की ओर से जगह-जगह इस मौके पर लोगों की सेवा कर घीसिंग कोई याद किया गया। दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि घीसिंग अंतिम सांस तक जाति और माटी की लड़ाई करते रहे। विधायक नीरज जीमबा जन्म दिवस के मौके पर शिशु भवन वृद्ध आश्रम में केक काटकर लोगों के साथ उन्हें याद किया। बताया कि सुभाष घीसिंग का जन्म मंजू टी एस्टेट में 22 जून 1936 में हुआ था। 1954 में वे भारतीय सेना के गोरखा राइफल्स में शामिल हुए। 1960 में सेना की नौकरी छोड़ 1968 में नीलो झंडा नामक संगठन तैयार किया।

सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में 1980 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट का गठन हुआ। सुभाष घीसिंग ने ही गोरखालैंड शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया। 7 सितंबर 1981 को पुलिस ने दार्जिलिंग चौकबाजार में आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं। इस दौर में प्रांत परिषद को बहुत ज़्यादा दमन का सामना करना पद रहा था। प्रांत परिषद द्वारा शुरू किए गए अलग राज्य की मांग और आंदोलन पर 1986 तक जीएनएलएफ ने क़ब्ज़ा जमा लिया था। 1986 से 1988 तक सीपीएम और जीएनएलएफ के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुईं। 27 महीनों तक चली हिंसा में 1800 से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे।22 अगस्त 1988 को  गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट , बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिकोणीय समझौते के तहत दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल का गठन किया गया। इस शर्त पर बनाया गया की पार्टी को अलग राज्य की मांग को छोड़ने के लिए तैयार होना पड़ेगा।

दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को एक राज्य के बराबर अधिकार दिए गए। 30 जनवरी 2015 इलाज के दौरान दिल्ली गंगा राम अस्पताल में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके पुत्र मन घीसिंग पार्टी का कमान संभाले हुए हैं।

नेपाली भाषा और अस्मिता का सवाल: 

इसके ठीक बाद 1989 में हुए आम चुनाव में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट तथा दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल के अध्यक्ष सुभाष घीसिंग पत्रकार इंद्रजीत खुल्लर को समर्थन देकर सदन तक पहुंचाया। 1991 में हुए बंगाल के विधानसभा चुनाव का सुभाष घीसिंग ने बहिष्कार किया। नेपाली भाषा को केंद्र में मान्यता को दिए जाने को लेकर आंदोलन तेज हो रहा था। अंततः 20 अगस्त, 1992 को भारतीय संविधान के अष्टम सूची में मान्यता मिली।

गोरखालैंड आंदोलन एक अनसुलझी पहेली: 

 बंगाल की राजनीति की एक अनसुलझी पहेली है। इसका निवारण ना देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कर पाए, ना सबसे लंबे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु, ना आज की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। इस समस्या का समाधान  युग पुरुष माने जाने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अब तक नहीं कर पाए है। गोरखालैंड बंगाल से अलग एक नए राज्य का प्रस्तावित नाम है, जिसके हिस्से में दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कुर्सियांग और कुछ अन्य ज़िले हैं। गोरखालैंड आंदोलन का मुख्य एजेंडा पश्चिम बंगाल में नेपाली लोगों की भाषा, संस्कृति और पहचान का संरक्षण करने के साथ ही इलाके के विकास है। इस आंदोलन का समर्थन करने वाले मानते हैं कि अलग राज्य गोरखालैंड बनने से गोरखा लोगों को बाहरी या विदेशी नहीं कहा जाएगा। उनकी अपनी अस्मिता और पहचान होगी। इसके अलावा ग़रीबी, विकास और राज्य सरकार का पक्षपाती रवैया भी अहम मुद्दे हैं। 

गोरखालैंड का मुद्दा आज़ादी से कई सालों पहले का

ब्रिटिश शासनकाल मेे बंगाल का पहला विभाजन 1905 में हुए था। उस दौर में ही गोरखा लोगों में अलग राज्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं थीं। आधिकारिक तौर पर अगर बात करें तो साल 1907 में गोरखा लोगों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर मॉर्ले-मिंटो सुधार पैनल को ज्ञापन सौंपा गया था। इसमें हिलमेन एसोसिएशन के प्रतिनिधि शामिल थे। इसके बाद भी कई मौकों पर गोरखा लोगों ने ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी मांग रखी थी।1943 में ऑल इंडिया गोरखा लीग का गठन हुआ। हालांकि तब सिर्फ़ अलग राज्य की मांग थी। गोरखालैंड शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था। उसके बाद से अब तक यह आंदोलन लगातार विभिन्न राजनीतिक दलों के एजेंडे में सुर्खियां बटोर रहा है। 

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