Water Conservation: अब जल संकट को भांपने लगी हैं पहाड़ की देवियां, इस तरह कर रही हैं जल संरक्षण
Water Conservation पहाड़ों में चौका-चूल्हा से लेकर खेती और मवेशियों की जिम्मेदारी ज्यादातर मातृ शक्ति के पास होती है। ऐसे में गहराते जल संकट से सबसे अधिक महिलाओं को ही जूझना पड़ता है। इस संकट से जूझने वाली पहाड़ की महिलाएं भविष्य के गंभीर संकट को भांपने लगी हैं।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। Water Conservation पहाड़ों में चौका-चूल्हा से लेकर खेती और मवेशियों की जिम्मेदारी ज्यादातर मातृ शक्ति के पास होती है। ऐसे में गहराते जल संकट से सबसे अधिक महिलाओं को ही जूझना पड़ता है। इस संकट से जूझने वाली पहाड़ की महिलाएं भविष्य के गंभीर संकट को भांपने लगी हैं। इसी कारण पहाड़ की महिलाएं चाल-खाल तैयार कर बारिश की एक-एक बूंद को सहेजने में जुटी हुई हैं। सीमांत जनपद उत्तरकाशी में आठ गांवों की महिलाओं ने जल संरक्षण के लिए 22 नई चाल-खाल बनाई। साथ ही गाद से भरी 15 पुरानी चाल खालों को भी पुनर्जीवित कर दिया है। इन महिलाओं का यह अभियान एक आंदोलन की तरह चल रहा है।
उत्तरकाशी जनपद के डुंडा ब्लॉक में सरमाली जल स्रोत से दस गांवों को पेयजल आपूर्ति की जाती थी। लेकिन, यहां पिछले कुछ सालों से पानी का संकट शुरू हो गया है। जल संकट से प्रभावित गांवों में वर्ष 2019 में रिलायंस फाउंडेशन पहुंचा तो महिलाओं ने पानी के संकट की व्यथा बताई। जल संकट के समाधान के लिए रिलायंस फाउंडेशन के कमलेश गुरुरानी ने चाल खाल बनाने और पुराने चाल खालों को पुनर्जीवित करने की विधा बताई। जिसके बाद महिलाओं ने श्रमदान से चाल-खाल बनाने शुरू किए। इस अभियान में आठ गांवों की 300 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं। महिलाओं के इस जुनून देखकर गांव के पुरुष भी प्रेरित हुए हैं।
ग्राम पंचायत ओल्या के वन पंचायत महावीर प्रसाद भट्ट कहते हैं कि सरमाली जल स्रोत का आधार जंगल और बारिश का जल ही है। इस स्रोत से दस गांवों की पेयजल योजनाएं हैं। महिलाओं ने श्रमदान से जो चाल-खाल बनाए हैं उनसे सरमाली पेयजल स्रोत रिचार्ज होगा, जिससे वर्ष भर में किसी भी गांव में पेयजल का संकट नहीं होगा।
डांग गांव की सकू देवी कहती हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में जल का मुख्य स्रोत प्राकृतिक स्रोत व वर्षा आधारित जल है और प्राकृतिक जल स्रोत भी वर्षा जल से ही संचय होते हैं। लेकिन, दिनों दिन सूखते जल स्रोत, जल संकट का कारण बन रहे हैं। इसी को लेकर उन्होंने श्रमदान से जल संरक्षण का बीड़ा उठाया है।
इन महिलाओं ने किया चाल-खाल बनाने का नेतृत्व
जल संरक्षण अभियान में आठ गांवों की 300 से अधिक महिलाएं का नेतृत्व करना भी चुनौती थी। लेकिन, ग्राम डांग की आशा देवी, सकू देवी, विनिता देवी, ग्राम मसून की लखमा देवी, दीपा देवी, ग्राम ओल्य की सरिता देवी, महेश्वरी देवी, ग्राम बोन मन्दारा की उषा देवी, वसु देवी, ग्राम पटारा की सरतमा देवी, बीना देवी, ग्राम सिंगोट गांव की भावना देवी, ग्राम बांदू की हेमलता, ग्राम जिनेथ गांव की स्मिता अवस्थी महिलाओं का कुशल नेतृत्व कर मिसाल कायम की।
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