India China LAC Border Dispute: सीमांत प्रहरी सेना के साथ हर सहयोग के लिए हैं तैयार
उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी और चमोली में चीन सीमा पर रहे रहे गांवों के लोग सजग प्रहरी की भूमिका में हैं।
उत्तरकाशी, जेएनएन। सीमांत जनपद उत्तरकाशी और चमोली में चीन सीमा पर रहे रहे गांवों के लोग सजग प्रहरी की भूमिका में हैं। उत्तरकाशी में उपला टकनौर (हर्षिल घाटी) और चमोली जिले की नीती-माणी घाटी के लोग भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाने के लिए तैयार हैं। चीन के साथ वर्ष 1962 में हुए युद्ध में भी हर्षिल घाटी के ग्रामीणों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
उत्तरकाशी के सुक्कीगांव निवासी 53 वर्षीय मोहन सिंह राणा पैरा कमांडो रहे हैं। अभी भी वे सुक्की गांव में ही रहते हैं। देश की अखंडता और संप्रभुता के लिए आज भी वही जोश और जज्बा है। मोहन सिंह राणा कहते हैं कि एलएसी पर चीन ने घुसकर पहले कब्जा करने का प्रयत्न किया और फिर इस तरह नापाक हरकत की है। इसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। वे कहते हैं कि पूरी घाटी के लोग सेना के साथ हर सहयोग करने को तैयार है। सेना को जरूरत पड़ी तो वे सेना के पोर्टर, कुक बनने के लिए तैयार है।
75 वर्षीय हर्षिल निवासी एवं पूर्व प्रधान बंसती नेगी कहती हैं कि वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद उत्तरकाशी की नेलांग घाटी में बसे दो गांव नेलांग और जादुंग को सुरक्षा की दृष्टि से सेना ने खाली कराया तो ग्रामीण बगोरी, हर्षिल और डुंडा में बस गए। लेकिन, हर्षिल घाटी के सभी लोग सेना के साथ खड़े रहे और आज भी खड़े हैं। वह कहती हैं कि चीन की मंशा बिल्कुल भी सही नहीं है, पहले तिब्बत को कब्जाया और अब भारत की सीमा पर घुसपैठ कर रहा है। सेना इसका जरूर जवाब देगी। वे कहती हैं कि आज वे सुरक्षित हैं तो सेना की कड़ी चौकसी के कारण। इसलिए बच्चे-बूढ़े सब सेना के साथ खड़े हैं।
बगोरी के पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा बताते हैं कि उनकी मांग है कि उन्हें नेलांग और जादूंग में बसाया जाए। वे सेना के साथ रहकर देश के दुश्मनों को जवाब देंगे। जिससे दुश्मन कोई नापाक हरकत न करे और न करने की सोचे। 36 वर्षीय हर्षिल निवासी माधवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि सीमा से जुड़ी हर्षिल घाटी के लोग देश की सेना के हर तरह के सहयोग के लिए खड़े हैं। चीन की नापाक हरकतों का जवाब दिया जाना चाहिए। बॉर्डर से जुडे गांव के लोग सच्चे प्रहरी की तरह है।
कुछ समय पहले सेना से सेवानिवृत हुए धराली निवासी राजेश पंवार ने कहा कि उनका गांव बॉर्डर के सबसे निकट है। चीन जिस तरह से हरकतें कर रहा है। उसका सख्ती से जवाब दिया जाना चाहिए। अगर सेना को जरूरत पड़ी तो वे हर सहयोग करेंगे। साथ ही हर्षिल घाटी के युवाओं को भी प्रशिक्षित करेंगे।
चमोली जिले में जोशीमठ विकासखंड के चीन सीमा से सटे देश के अंतिम गांव माणा के प्रधान पीतांबर मोलफा, नीती के पूर्व प्रधान आशीष राणा,कोषा गांव के पूर्व प्रधान व भेड़पालक राय सिंह रावत का कहना है कि घुसपैठ चीन की पुरानी आदत है। सीमा इन प्रहरियों का कहना है कि वे सीमा रक्षा की द्वितीय पंक्ति हैं और हमेशा देश की सुरक्षा के लिए खड़े रहते आए हैं और रहेंगे। इस बार भी सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मदद करेंगे।
यह 1962 का नहीं, 2020 का भारत है
लद्दाख में चीनी करतूत के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं से लगते सीमावर्ती ग्रामीणों में आक्रोश है। उनका कहना है कि चीन हमेशा धोखा करता है। उसकी चाल को सब समझ गए हैं। उसे जानना होगा कि यह 1962 का नहीं अपितु 2020 का भारत है। किसी भी गलती का चीन को करारा जवाब मिलेगा। चीन सीमा से लगे गुंजी, गब्र्यांग, कुटी, नाबी, नपलच्यू, रोंगकोंग के ग्रामीण खासे नाराज हैं। लद्दाख की घटना पर रोष जताते हुए कहते हैं कि देश की रक्षा के लिए हर पल तैयार हैं।
वर्ष 1962 में उन्होंने सेना के लिए 110 किमी दूर तक गोला बारू द अपनी पीठ पर ढोया था। 2020 की युवा पीढ़ी देश की सुरक्षा के लिए तैयार है। चीन की हर चुनौती का डटकर मुकाबला किया जाएगा। रं कल्याण संस्था के पूर्व अध्यक्ष कृष्णा गब्र्याल, समाज सेवी रिया दरियाल, हरीश कुमार गुंज्याल, योगेश गर्ब्याल व मनोज नबियाल का कहना है कि सभी सीमांतवासी सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।