दुबई से शेफ की नौकरी छूटी तो शुरू किया अचार का कारोबार

कोरोना महामारी के चलते दुबई से शेफ की नौकरी छोड़कर लौटे एक युवक ने गांव में लिंगुड़े के अचार की रेसिपी तैयार की और अन्य लोगों से भी इसे शेयर किया।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 05:00 AM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 08:07 AM (IST)
दुबई से शेफ की नौकरी छूटी तो शुरू किया अचार का कारोबार
दुबई से शेफ की नौकरी छूटी तो शुरू किया अचार का कारोबार

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। कोरोना महामारी के चलते भले ही टीकाराम पंवार को दुबई से शेफ की नौकरी छोड़कर वापस लौटना पड़ा हो, लेकिन उन्होंने रेसिपी पर प्रयोग करना नहीं छोड़ा। गांव में उन्होंने लिंगुड़े के अचार की रेसिपी तैयार की और अन्य लोगों से भी इसे शेयर किया। बीती 12 मई को गांव लौटने के बाद से वे घर पर ही 50 किलो से अधिक लिंगुड़ा (डिप्लाजियम एसकुलेंटम) का अचार बना चुके हैं। जो 250 रुपये प्रति किलो के हिसाब बिक रहा है।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 55 किमी दूर ग्राम ठांडी निवासी टीकाराम पंवार आठ साल तक दुबई के एक होटल में शेफ रहे। कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन हुआ तो उन्हें भी गांव वापस लौटना पड़ा। हुनर तो था ही, इसलिए गांव में ही कुछ नया करने का विचार मन में आया। बकौल टीकाराम, 'पहाड़ में नदी-नालों के आसपास लिंगुड़ा बहुतायत में होता है। पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण लगभग हर घर में इसकी सब्जी बनती है। बचपन में मैंने भी इसकी सब्जी खूब खाई है। इसलिए सोचा क्यों न लिंगुड़ा का अचार बनाया जाए। हालांकि, शुरुआत में गांव वालों को मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ। तब 'जाड़ी' संस्थान के अध्यक्ष द्वारिका सेमवाल ने मुझे इसके लिए प्रेरित किया और अचार को बाजार उपलब्ध कराने का भरोसा भी दिलाया। मैंने स्वच्छता और गुणवत्ता के साथ रेसिपी तैयार की, जिसे टेस्ट कर ग्रामीण अंगुली चाटते रह गए।'

टीकाराम बताते हैं कि अभी तक वह लिंगुड़ा का 50 किलो से अधिक अचार तैयार कर चुके हैं। लोग इसे हाथोंहाथ ले रहे हैं। आगे भी इसी तरह गढ़वाल के अन्य उत्पादों को एक नए रूप में तैयार करके लोगों तक पहुंचाने की योजना है। ताकि यहां के पारंपरिक फूड को एक नई पहचान मिल सके।

पौष्टिकता से भरपूर है लिंगुड़ा 

रामचंद्र उनियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी के वनस्पति विज्ञान के अध्यक्ष प्रोफेसर महेंद्रपाल परमार बताते हैं कि सब्जियों में सबसे अधिक पौष्टिकता लिंगुड़ा में है। यह एथाइरिएसी फैमिली का सदस्य है और दुनियाभर में इसकी 400 से अधिक प्रजातियां हैं। लिंगुड़ा नमी वाले स्थानों पर मार्च से जुलाई के मध्य खूब उगता है। प्रचुर मात्रा में मिनरल व विटामिन पाए जाने के कारण यह औषधीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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बाजार में खूब बिक रहा लिंगुड़ा 

'जाड़ी' संस्थान के अध्यक्ष द्वारिका सेमवाल बताते हैं लिंगुड़ा इन दिनों बाजार में खूब बिक रहा है। उत्तरकाशी में तो लगभग सब्जी की हर दुकान पर यह आसानी से मिल जा रहा है। ग्रामीणों की आजीविका का भी यह महत्वपूर्ण जरिया है। लोग गांव से लिंगुड़ा तोड़कर बाजार पहुंचा रहे हैं। इन दिनों 15 से 20 रुपये प्रति गड्डी के हिसाब से लिंगुड़ा उपलब्ध है। महत्वपूर्ण यह कि लिंगुड़ा प्राकृतिक रूप से उगता है, इसके लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती।

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