Sparrow Day 2021: शहरी क्षेत्रों में 20 फीसद कम हुई गौरैया की संख्या, इतने सालों के शोध में सामने आई बात

Sparrow Day 2021 पहाड़ों में भी गौरैया को सीमेंट और कंक्रीट से बने आधुनिक भवनों में घोंसला बनाने के लिए स्थान नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते पिछले 11 वर्षों में उत्तरकाशी गोपेश्वर गुप्तकाशी और कोटद्वार के ग्रामीण क्षेत्रों में गौरैया की संख्या बढ़ने की बजाय स्थिर बनी है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sat, 20 Mar 2021 11:16 AM (IST) Updated:Sat, 20 Mar 2021 11:16 AM (IST)
Sparrow Day 2021: शहरी क्षेत्रों में 20 फीसद कम हुई गौरैया की संख्या, इतने सालों के शोध में सामने आई बात
शहरी क्षेत्रों में 20 फीसद कम हुई गौरैया की संख्या।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। Sparrow Day 2021 पहाड़ों में भी गौरैया को सीमेंट और कंक्रीट से बने आधुनिक भवनों में घोंसला बनाने के लिए स्थान नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते पिछले 11 वर्षों में उत्तरकाशी, गोपेश्वर, गुप्तकाशी और कोटद्वार के ग्रामीण क्षेत्रों में गौरैया की संख्या बढ़ने की बजाय स्थिर बनी है, जबकि पहाड़ों के इन शहरी कस्बों में गौरैया की संख्या में 20 फीसद तक कमी आई है। यह बात गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पिछले 11 वर्षों से चल रहे शोध में सामने आई है।

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के पक्षी संवाद एवं विविधता प्रयोगशाला की ओर से वर्ष 2010 से पहाड़ के चार स्थानों पर शोध चल रहा है। इन वर्षों में पता चला है कि गौरैया की संख्या बढऩे की बजाय कम होती जा रही है। इसका कारण है कि पहाड़ों में पारंपरिक लकड़ी, पठाल और घास से बने मकान धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। गांव में भी आर्किटेक्ट के अनुरूप बन रहे सीमेंट और कंक्रीट के भवनों में भी आले व होल के लिए कोई जगह नहीं है, जहां गौरैया अपना घोंसला बना पाती। गुरुकुल कांगड़ी विवि के पक्षी विज्ञानी डॉ. विनय सेठी बताते हैं, गौरैया एक साल में दो बार प्रजनन करती है। एक बार में कम से कम आठ अंडे देती है, यानि आठ बच्चों को जन्म देती है। बावजूद इसके गौरैया की संख्या बढ़ नहीं रही है। गौरैया की संख्या में कमी का प्रमुख कारण पहाड़ों में पारंपरिक घरों की लगातार कमी और आधुनिक घरों का निर्माण है।

गुरुकुल कांगड़ी विवि के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश चंद्र भट्ट कहते हैं कि पिछले 11 वर्षों के दौरान किए गए शोध में गौरैया को लेकर पहाड़ी क्षेत्रों में भी चिंताजनक स्थिति सामने आई है। पारंपरिक पठाल-लकड़ी के मकान और घास-लकड़ी से बनी गोशालाएं भी लगातार कम हो रही हैं। आधुनिक घरों में अगर गौरैया घोंसला भी बना रही है, वह सुरक्षित नहीं बन पा रहा है, उससे अंडे फूट रहे हैं।

बच्चों को खिलाती है कीड़ों का लारवा

प्रो. दिनेश चंद्र भट्ट कहते हैं कि किसानों के लिए गौरैया की भूमिका महत्वपूर्ण है। गौरैया 14 दिनों तक अपने बच्चों को एक घंटे में चार बार कीड़ों का लारवा खिलाती है। एक गौरैया के कम से कम आठ बच्चे होते हैं। उस हिसाब से 100 गौरैया 800 बच्चों को भोजन खिलाने के लिए एक घंटे में 3200 कीड़ों का लारवा खत्म करती है, लेकिन खेतों में रासायनिक खादों के उपयोग के कारण गौरैया भी इसका असर मैदानी क्षेत्र में दिख रहा है।

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