पर्यावरण के लिए सार्थक बन रहा बीज बम, पढ़‍िए पूरी खबर

खेल-खेल में पर्यावरण संरक्षण व मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए बीम बम अभियान सार्थक है। इन दिनों यह अभियान शहर से लेकर गांव कस्बों में चल रहा है। जिसमें बच्चे बुजुर्ग महिला-पुरुष इस अभियान में जुटे हुए हैं।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Sun, 11 Jul 2021 07:10 PM (IST) Updated:Sun, 11 Jul 2021 08:10 PM (IST)
पर्यावरण के लिए सार्थक बन रहा बीज बम, पढ़‍िए पूरी खबर
खेल-खेल में पर्यावरण संरक्षण व मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए बीम बम अभियान सार्थक है।

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : खेल-खेल में पर्यावरण संरक्षण व मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए बीम बम अभियान सार्थक है। इन दिनों यह अभियान शहर से लेकर गांव कस्बों में चल रहा है। जिसमें बच्चे, बुजुर्ग, महिला-पुरुष इस अभियान में जुटे हुए हैं। हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान (जाड़ी) इस अभियान को विभिन्न स्वैछिक संगठन, पंचायत, सरकारी विभाग व शिक्षकों के साथ मिल कर विगत 2017 से बीज बम अभियान चला रहा। 8 जुलाई से लेकर 15 जुलाई तक चलने वाले इस अभियान का नाम बीज बम सप्ताह रखा गया है।

इस बार ऑन लाइन माध्यम से बीज बम अभियान सप्ताह की शुरुआत की गई। जिसमे देश भर के 12 राज्यों के 95 प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। जिसमें इस अभियान की सराहना की। साथ ही अपने क्षेत्रों में इस अभियान को चलाने का आश्वासन दिया गया। हिमालयन पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान (जाड़ी) के अध्यक्ष एवं बीज बम अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कहा कि यह कोई नई खोज नहीं है। जापान और मिश्र जैसे देशों में यह तकनीकी सीड बॉल के नाम से सदियों पहले से परंपरागत रूप से चलती रही है। इसे बीज बम नाम इसलिए दिया गया है ताकि इस तरह के अटपटे नाम से लोग आकर्षित हों और इस बारे में जानने का प्रयास करें। यह नामकरण अपने उद्देश्य में पूरी तरह से सफल रहा है। द्वारिका सेमवाल कहते हैं कि यह एक शून्य बजट अभियान है। इसमें मिट्टी और गोबर को पानी के साथ मिलाकर एक गोला बना दिया है और स्थानीय जलवायु और मौसम के अनुसार उस गोले में कुछ बीज डाल दिये जाते हैं।

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इस बम को जंगल में कहीं भी अनुकूल स्थान पर छोड़ दिया जाता है। द्वारिका सेमवाल बताते हैं कि इस अभियान की शुरुआत उन्होंने उत्तरकाशी जिले के कमद से की थी। पहला ही प्रयास सफल रहा। यहां कद्दू आदि बेल वाली सब्जियों के बीजों का इस्तेमाल किया गया था। कुछ समय बाद बेलें उगी और खूब फैली। हालांकि फलने से पहले ही जानवरों ने इनके फूल खा लिये फिर भी कम से कम एक दिन का आहार तो उन्हें जरूर मिला। साथ ही बड़ी संख्या में ऐसा किया जाए तो वन्य जीवों को फूल खाने की नौबत नहीं आएगी। द्वारिका सेमवाल ने आमजन से अपील करते हुए कहा कि आप जो फल, सब्जी खाते हैं उनके बीज सुरक्षित रखें। जैसे ही बरसात का सीजन आए तो मिटटी, गोबर व पानी को मिला कर बीज बम बना दें। चार दिन सुखाने के बाद उन्हें कहीं भी जंगल या बंजर भूमि में डाल दें।

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