ट्रैकिग की रीढ़ है पोर्टर, पर सुदृढ़ नहीं
उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिग के लिए पोर्टर रीढ़ माने जाते हैं जो विकट परिस्थितियों में पीठ पर टीम और अपने लिए रसद टेंट बर्तन और स्लिपिग बैग को लेकर आगे बढ़ता है। इसके बावजूद ट्रैकिग में पोर्टर की महत्ता को दरकिनार किया जा रहा है। यहां पोर्टर को न तो उच्च हिमालयी क्षेत्र में आवाजाही के लिए प्रशिक्षित किया गया है और न ही उनके पंजीकरण की व्यवस्था है।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी
उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिग के लिए पोर्टर रीढ़ माने जाते हैं, जो विकट परिस्थितियों में पीठ पर टीम और अपने लिए रसद, टेंट, बर्तन और स्लिपिग बैग को लेकर आगे बढ़ता है। इसके बावजूद ट्रैकिग में पोर्टर की महत्ता को दरकिनार किया जा रहा है। यहां पोर्टर को न तो उच्च हिमालयी क्षेत्र में आवाजाही के लिए प्रशिक्षित किया गया है और न ही उनके पंजीकरण की व्यवस्था है। सबसे हैरानी की बात तो यह है कि ट्रैकिग करने वाले पर्यटकों के साथ गाइड और पोर्टर का बीमा तक नहीं किया जाता है। ये हाल केवल उत्तरकाशी का नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड का है।
पहाड़ों में साहसिक पर्यटन के लिए सबसे अधिक पर्यटक ट्रैकिग और माउंटेनियरिग के लिए आते हैं, जो ताल, बुग्याल सहित ग्लेशियर और अन्य स्थानों की ट्रैकिग करते हैं। ट्रैकिग में पर्यटकों को सबसे अधिक जरूरत पोर्टर की पड़ती हैं। यहां तक कि भारत-चीन सीमा पर लंबी और छोटी दूरी के गश्त के दौरान रसद, टेंट ढुलान में सेना और आइटीबीपी भी पोर्टरों का सहयोग लेती है। लेकिन, पोर्टरों का चयन करने में किसी के भी कोई मानक नहीं हैं। चीन सीमा पर आइटीबीपी के गश्ती दल के साथ गई तीन पोर्टर की मौत भी इसकी तस्दीक करती है। गढ़वाल हिमालय ट्रैकिग एवं माउंटेनियरिग एसोसिएशन के अध्यक्ष जयेंद्र राणा कहते हैं, पोर्टर की भूमिका ट्रैकिग में रीढ़ की तरह होती है। ट्रैकिग दल में गाइड की भूमिका रास्ता बताने की होती है, लेकिन अन्य कई सारी जिम्मेदारी पोर्टर के जिम्मे होती है। पहाड़ों में कहीं भी अलग से कोई पोर्टर एजेंसी नहीं है। उत्तरकाशी की स्थानीय ट्रैकिग एजेंसी उन्हीं पोर्टर को ट्रैकिग दलों के साथ भेजती हैं, जो पहले किसी अन्य ट्रैकिग दल के साथ जा चुके हों। चीन सीमा पर जो तीन पोर्टर की मौत हुई है, उसमें सबसे बड़ी लापरवाही आइटीबीपी के उस दल की है, जिसकी रसद और सामान ढोने के लिए वे गए थे।
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बेसिक एडवांस प्रशिक्षण के दौरान निम जिन पोर्टर को लेकर जाता है, उनमें कुछ अनुभवी पोर्टर उत्तरकाशी के हैं। जबकि, बाकी पोर्टर नेपाल से बुलाए जाते हैं। हर एक पोर्टर और टीम के हर सदस्य का बीमा किया जाता है। इसके साथ ही पोर्टर को एक टीम सदस्य के रूप में माना जाता है। उनके खाने और रहने का पूरा ध्यान रखा जाता है। इसके कारण निम के अभियान दलों में कोई दुर्घटनाएं नहीं हुई हैं।
कर्नल अमित बिष्ट, प्रधानाचार्य, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान