Atulya Ganga Abhiyan: सदियों पहले लुप्त हो चुकी मुंडमाल परिक्रमा फिर हुई शुरू
Atulya Ganga Abhiyan गंगा को साफ रखने के उद्देश्य से शुरू हुई परिक्रमा बनेंगे सैकड़ों गंगा प्रहरी हर तीन माह में करेंगे पानी और मिट्टी की सैंपलिंग यात्र के जरिये पर्यावरण संरक्षण साहसिक पर्यटन प्रकृति एवं संस्कृति प्रेम आध्यात्मिक चेतना ऐतिहासिक एवं पौराणिक परंपराओं को बढ़ावा दिया जाएगा।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। Atulya Ganga Abhiyan इतिहास में विलुप्त हो चुकी गंगा परिक्रमा आज फिर शुरू होगी। परिक्रमा यात्र प्रयागराज में संगम के उत्तरी किनारे से गंगा सागर पहुंचेगी और फिर गंगा सागर पार कर गंगा के दक्षिणी किनारे से गोमुख होते हुए प्रयागराज पहुंचकर विराम लेगी। 5100 किमी लंबी यह पद यात्र भारतीय सेना के तीन सेवानिवृत्त अफसरों की पहल पर हो रही है, जो आगामी 16 दिसंबर से शुरू होकर अगले वर्ष 15 अगस्त 2021 तक चलेगी।
अतुल्य गंगा जनांदोलन यात्र में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी को भी शामिल करते हुए उत्तराखंड में इसके संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यात्र का हिस्सा बनने जा रहे निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट बताते हैं कि परिक्रमा यात्र के हर पड़ाव पर वहां के पूर्व सैनिकों व छात्रों को गंगा प्रहरी भी बनाया जाना है। जो गंगा की स्वच्छता को लेकर निगरानी रखेंगे और हर तीन माह में गंगा जल, भू-जल और मिट्टी की सैंपलिंग करेंगे। इसके लिए उन्हें बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाएगा।
गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल बनाने के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल (से.नि.) हेम लोहुमी, कर्नल (से.नि.) मनोज केश्वर और प्रसिद्ध पर्वतारोही गोपाल शर्मा ने अतुल्य गंगा नाम से डेढ़ वर्ष पूर्व यह पहल शुरू की थी। इस यात्र का उद्देश्य गंगा की परिक्रमा यात्र (जो सदियों पहले मुंडमाल’ नाम से होती थी) को दोबारा शुरू करना है। परिक्रमा का दूसरा प्रमुख उद्देश्य गंगा को प्रदूषण से मुक्त करना है। इसके लिए स्थानीयजन की भागीदारी के अलावा उन्हें जागरूक भी किया जाना है। ताकि वे गंगा के सशक्त प्रहरी बनकर उसे पवित्र बनाए रखने में सहयोग दे सकें। मुंडमाल गंगा परिक्रमा पदयात्र के संयोजक कर्नल (से.नि.) मनोज केश्वर ने बताया कि हिंदू धर्म में गंगा को साक्षात तीर्थ की मान्यता है। साथ ही यह जीवनदायिनी भी है।
एवरेस्ट विजेता के पास है कैंपिंग की जिम्मेदारी : परिक्रमा यात्र में कैंपिंग व्यवस्था और किचन स्टाफ उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी उत्तरकाशी के स्नो स्पाइडर ट्रैकिंग के संचालक एवं एवरेस्ट विजेता विष्णु सेमवाल को मिली है। विष्णु सेमवाल ने बताया कि ऋषिकेश से गोमुख और गोमुख से दूसरे किनारे होते हुए ऋषिकेश तक पहुंचने के लिए उन्होंने रेकी के साथ मैप भी तैयार कर लिया है।
हर पड़ाव पर पूर्व सैनिक बनाए गंगा प्रहरी : पीपुल्स मूवमेंट टू रिजेन्युएट गंगा यानी गंगा के लिए लोगों को चलायमान करने को अपना ध्येय वाक्य बनाते हुए पूर्व सैन्य अधिकारियों के संगठन अतुल्य गंगा ने इसकी कल्पना दो साल पहले की थी। अभियान के संयोजक सेवानिवृत्त कर्नल मनोज केश्वर बताते हैं कि इस यात्र से जुड़ने के लिए साथी उत्साह के साथ आगे आए। जितने लोग स्थायी पदयात्री के रूप में शामिल हो रहे हैं उन्हें हर मौसम में चलने का प्रशिक्षण मिला है। यात्र का हिस्सा बनने वाले उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) के प्रधानाचार्य कर्नल (रिटायर) अमित बिष्ट को इससे गंगा की दशा दिशा में बेहतरी की उम्मीद है। कहते हैं कि हर पड़ाव पर पूर्व सैनिकों को गंगा प्रहरी बनाया जाएगा। यह प्रहरी गंगा की स्वच्छता पर नजर रखेंगे, प्रशासन के लोगों को बताएंगे साथ ही हर तीन माह में गंगा जल, भू-जल और मिट्टी की सैंपलिंग करेंगे।
संगमगरी अहम स्थल : तीर्थराज की महिला शास्त्रों में बखानी गई है। इसलिए यह यात्र यहां पूजन अर्चन कर शुरू की जा रही है। पहला पड़ाव संगम से गंगासागर होगा और फिर प्रयागराज से गोमुख का। संगमनगरी में 14 अगस्त 2021 को परिक्रमा समाप्त करने का लक्ष्य फिलहाल रखा गया है। प्रयागराज में झूंसी स्थित समुद्रकूप से 16 दिसंबर को जब पदयात्री गंगा सागर की तरफ निकलेंगे तो जितनी बातें उनके जेहन में होंगी, उससे ज्यादा कहीं गंगा किनारे रहने वालों के पास होंगी। पदयात्रियों का यात्र वृतांत भी रोचक होगा। वह इन्हें कुछ शब्दों में कैसे समेट पाएंगे, यह चुनौती होगी। फिर भी यात्र में जुटे लोग उत्साहित- रोमांचित तो हैं ही।
करीब 51 सौ किलोमीटर की इस परिक्रमा में शहर, गांव, कस्बे, जंगल, पहाड़ और ग्लेशियर मिलेंगे। कहीं राह सुगम होगी तो कहीं दुर्गम। चूंकि यह पदयात्र 11 साल तक अनवरत करने के साथ शुरू की जा रही है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पहल गंगा को अविरल निर्मल बहते देखने की इच्छा रखने वाले और उसके प्रयास में जुटे लोगों के लिए रास्ता आसान करेगी। आम तौर पर नदी परिक्रमा धार्मिक महत्व के हिसाब या आत्म मंथन के लिहाज से किया जाता है लेकिन गंगा यात्र पर्यावरणीय उद्देश्य के साथ निकल रही है। गंगा जल, मिट्टी का संग्रहण भी पदयात्री करेंगे। तभी तो नारा दिया गया है-सबका साथ हो, गंगा साफ हो।