खतरे के बीच जीने को मजबूर मस्ताड़ी के ग्रामीण

जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मस्ताड़ी गांव की तीन सौ की आबादी ख्खतरे की जद में हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 03:00 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 03:00 AM (IST)
खतरे के बीच जीने को मजबूर मस्ताड़ी के ग्रामीण
खतरे के बीच जीने को मजबूर मस्ताड़ी के ग्रामीण

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मस्ताड़ी गांव की तीन सौ की आबादी खतरे की जद में है। घर-आंगन से लेकर खेत और रास्तों तक दरारें उभर रही हैं तो कहीं पानी के स्त्रोत फूट रहे हैं। दरअसल, मस्ताड़ी गांव में दरारें पड़ने और भूस्खलन की घटना 1991 के भूकंप से शुरू हो गई थी। वर्ष 1997 में गांव का भूविज्ञानियों ने सर्वे भी किया। गांव को विस्थापित और सुरक्षात्मक कार्य करने के सुझाव भी दिए। लेकिन, 24 वर्ष बाद भी गांव का विस्थापन तो दूर सुरक्षात्मक कार्य भी नहीं हुए। हाल में हुई बारिश के कारण मस्ताड़ी गांव में घर-आंगन से लेकर रास्तों तक दरारें और बढ़ गई। ग्रामीणों को डर है कि उनके घर कभी भी जमींदोज हो सकते हैं।

भटवाड़ी तहसील के मस्ताड़ी गांव में 50 परिवार रहते हैं। अधिकांश परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है। गांव में इन परिवारों ने पाई-पाई जमाकर मकान बनाए थे, उन मकानों में जगह-जगह दरारें पड़ रही हैं। अधिकांश स्थानों पर जमीन नीचे बैठ रही है, जिससे मकान की नींव और पेड़-पौधे भी अपना स्थान छोड़ रहे हैं। गांव के प्रधान सत्यनारायण सेमवाल कहते हैं कि गांव में एक भी घर रहने लायक नहीं है। तेज बारिश होते ही जमीन के अंदर से पानी के बहाव की तेज आवाज आनी शुरू हो जाती है, जिससे ग्रामीण भयभीत हो रहे हैं। गांव में यह स्थिति आ गई है कि एक परिवार को गोशाला में सोना पड़ रहा है। घरों के अंदर पानी के स्त्रोत फूट गए हैं। पूर्व प्रधान खिमानांद सेमवाल कहते हैं कि 1997 में वे गांव के प्रधान थे। तब भी दो घर भूस्खलन से जमींदोज हुए थे। 27 सितंबर 1997 को भूविज्ञानियों की टीम निरीक्षण के लिए गांव आई, जिसमें भूविज्ञानी डीपी शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में गांव को विस्थापित करने का सुझाव दिया था। तत्कालीन जिलाधिकारी ने कोटियाल गांव के पास भूमि भी चयनित की थी, लेकिन आज तक विस्थापन नहीं हो पाया। ----------

भूविज्ञानियों की यह थी रिपोर्ट: मस्ताड़ी गांव में भूधसाव और और दरारें वर्षाकाल में ही बनती हैं। इन दरारों का कारण भूमिगत जल और तेज ढलान भूमि का धसाव है। प्राचीन काल में हुए भूस्खलन के जमे मलबे से बना है। अधिक बारिश होने पर जल इसी भूमि में समा जाता है। इसी भूजल का एक स्त्रोत गांव में मौजूद है। पानी के स्त्रोत से लेकर गांव के ऊपर की पहाड़ी तक की भूमि भूजल से अत्यधिक नम है। इसके कारण जगह-जगह भूमि धस रही है।

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ग्रामीणों ने रोका था मुख्यमंत्री का काफिला: बीती 21 जुलाई को जब मुख्यमंत्री आपदा प्रभावित कंकराड़ी गांव से लौट रहे थे तो रास्ते में ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री का काफिला रोका। साथ ही गांव के विस्थापन की मांग फिर से उठाई। ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया। जिस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फिर से भूविज्ञानियों से निरीक्षण कराने और उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया।

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