जानिए उत्तराखंड हिमालय के पहले धाम के बारे में, महत्व और इतिहास से भी कराएंगे रूबरू

Chardham Yatra विश्व प्रसिद्ध चारधाम के कपाट खुल गए हैं। भले ही कोरोना के कारण चारधाम यात्रा को सरकार ने अभी स्थगित किया हुआ है लेकिन विश्व प्रसिद्ध इन धामों का अपना महत्व और इतिहास है। जानिए यात्रा के पहले पड़ाव के बारे में।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 05:19 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 05:19 PM (IST)
जानिए उत्तराखंड हिमालय के पहले धाम के बारे में, महत्व और इतिहास से भी कराएंगे रूबरू
जानिए उत्तराखंड हिमालय के पहले धाम के बारे में।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। Chardham Yatra विश्व प्रसिद्ध चारधाम के कपाट खुल गए हैं। भले ही कोरोना के कारण चारधाम यात्रा को सरकार ने अभी स्थगित किया हुआ है, लेकिन विश्व प्रसिद्ध इन धामों का अपना महत्व और इतिहास है। इसी कड़ी में आपको चारधाम यात्रा के पहले पड़ाव पर स्थित यमुनोत्री धाम के महत्व और इतिहास के बारे में बातते हैं। 

उत्तराखंड हिमालय के चारों धाम में यमुनोत्री को प्रथम माना गया है और अधिकांश यात्री यहीं से चारधाम की यात्रा शुरू करते हैं। यमुनोत्री से शुरू होकर यात्री गंगोत्री फिर केदारनाथ और आखिर में बदरीनाथ धाम पर यात्रा पूरी करते हैं। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा हरिद्वार और ऋषिकेश से शुरू होती है। यहां से यात्री सबसे पहले यमुनोत्री धाम के लिए जाते हैं। उत्तरकाशी जनपद में यमुना नदी के उदगम स्थल के पास करीब 3250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम में मां यमुना की पूजा अर्चना होती है। मान्यता है कि यमुनोत्री धाम में पूजा अर्चना करने से यम यातना और शनि के प्रकोप से भी मुक्ति मिलती है। सूर्य पुत्री यमुना, यमराज और शनि महाराज की बहन है। 

यमुनोत्री के कपाट खुलने और बंद होने पर शनि देव की डोली मौजूद रहती है। हर वर्ष यमुनोत्री धाम में लाखों यात्री देश विदेश से आते हैं। कोविड काल से पहले वर्ष 2019 में साढ़े चार लाख से अधिक यात्रियों ने दर्शन किए। केदारखंड में पांडवों की ओर से यमुनोत्री धाम की यात्रा का उल्लेख मिलता है। यमुना का उद्गम 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कालिंदी पर्वत के ग्लेशियर होता है। यमुनोत्री मंदिर समिति के उपाध्यक्ष राजस्वरूप उनियाल कहते हैं कि यमुना पृथ्वी पर आकर उत्तर वाहिनी बनकर संपूर्ण पापों और जन्म मरण के बंधन से मुक्त करने वाली है। यमुनोत्री धाम, यमुना के धार्मिक व पौराणिक महत्व के बारे में कर्म पुराण और केदारखंड ग्रंथ में व्यापक उल्लेख है। 

राजकीय महाविद्यालय बडकोट में इतिहास के सहायक प्राध्यापक डॉ. विजय बहुगुणा कहते हैं कि 1855 के दौरान टिहरी राजा सुदर्शन शाह ने यमुनोत्री में एक छोटा मंदिर का निर्माण कराया था। उससे पहले यमुनोत्री धाम की पूजा वहां स्थिति हनुमान गुफा में होती थी। टिहरी रियासत की महारानी गुलेरिया ने यमुनोत्री धाम पैदल मार्ग निर्माण के साथ धाम में सूर्यकुंड का निर्माण करवाया था। इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण छोटे-छोटे स्तरों पर होता रहा।1985 में काली कमली धर्मशाला के ट्रस्टी तोलाराम मोहनलाल जालान ने नागर शैली में यमुनोत्री धाम के वर्तमान मन्दिर का निर्माण करवाया, जो तब से लेकर अब तक वैसा ही है, लेकिन अन्य जरूरी सुविधाओं का यहां आज तक अभाव बना हुआ है। 

यहां तक कि नए निर्माण भी मास्टर प्लान के तहत नहीं हो सके। पर, अब प्रसाद योजना में मंदिर के भव्य पुनर्निर्माण को लेकर बड़ी उम्मीदें हैं। इसकी तैयारियां तेज हो गई हैं। प्रसाद योजना के तहत 48 करोड़ की डीपीआर को केंद्र से सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी है। इस योजना में यमुनोत्री धाम में घाट, कुंड, वेटिग रूम, चेंजिग रूम व शौचालय निर्माण समेत मंदिर का सुंदरीकरण किया जाना है। दूसरे चरण में खरसाली स्थित यमुना व शनि मंदिर और जानकीचट्टी में पार्किंग, रोपवे निर्माण आदि कार्य होने हैं।

वर्षवार यमुनोत्री धाम पहुंचे यात्री

वर्ष, कुल यात्री

2020, 7806

2019, 466699

2018, 393943

2017, 397100

2016, 160563

2015, 123260

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