गंगा परिक्रमा की कठिन डगर पर निकली हैं इंदु

सोनीपत एनसीआरा निवासी 50-वर्षीय इंदु (इंद्रा कुमारी) गंगा की पैदल परिक्रमा कर रही हैं। स्वच्छ एवं निर्मल गंगा के लिए जनमानस को जागृत करने के उद्देश्य से अब तक वह प्रयागराज से गंगा सागर और गंगा सागर से उत्तरकाशी तक की पदयात्रा कर चुकी हैं। बीते 30 अगस्त को इंदु जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से गोमुख के लिए रवाना हुई और रात्रि विश्राम 35 किमी दूर भटवाड़ी में किया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Sep 2021 10:22 PM (IST) Updated:Thu, 02 Sep 2021 10:22 PM (IST)
गंगा परिक्रमा की कठिन डगर पर निकली हैं इंदु
गंगा परिक्रमा की कठिन डगर पर निकली हैं इंदु

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

सोनीपत एनसीआरा निवासी 50-वर्षीय इंदु (इंद्रा कुमारी) गंगा की पैदल परिक्रमा कर रही हैं। स्वच्छ एवं निर्मल गंगा के लिए जनमानस को जागृत करने के उद्देश्य से अब तक वह प्रयागराज से गंगा सागर और गंगा सागर से उत्तरकाशी तक की पदयात्रा कर चुकी हैं। बीते 30 अगस्त को इंदु जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से गोमुख के लिए रवाना हुई और रात्रि विश्राम 35 किमी दूर भटवाड़ी में किया। भटवाड़ी से गोमुख और गोमुख से उत्तरकाशी तक की राह मे विकटता वाले स्थानों को पार करने के लिए इंदु उत्तरकाशी निवासी एवरेस्ट विजेता विष्णु सेमवाल की मदद ले रही हैं।

पंजाब विश्वविद्यालय से परास्नातक इंदु को बचपन से ही ट्रैकिग का शौक रहा है। वो अब तक सात महाद्वीपों के 20 से अधिक देशों में ट्रैकिग कर चुकी हैं। हालांकि, इससे पूर्व उन्होंने 17 वर्षो तक इलेक्ट्रानिक मीडिया में स्क्रिप्ट राइटिग और जानकारीपरक कार्यक्रमों के निर्माण का कार्य भी किया। इंदु बताती हैं कि बीते वर्ष उन्होंने लेफ्टिनेंट कर्नल (सेनि) हेम लोहुमी व कर्नल (सेनि) मनोज केश्वर से अतुल्य गंगा मुंडमाल परिक्रमा पद यात्रा के बारे में सुना। यह बेहद रोचक प्रसंग था। सो, इस यात्रा में शामिल होने के लिए उन्होंने सात माह तक प्रशिक्षण लिया। हर दिन 40 से 45 किमी चलने का अभ्यास किया।

16 दिसंबर 2020 को वह प्रयागराज गंगा तट से कर्नल (सेनि) आरपी पांडे, हीरेन पटेल, ले.जनरल (सेनि) एसए क्रूज, शगुन त्यागी, रोहित कुमार व रोहित उमराव के साथ अतुल्य गंगा मुंडमाल परिक्रमा पद यात्रा पर निकली। गंगा सागर से लौटकर अन्य सदस्यों के साथ बीते आठ मार्च को जब वह पैदल बिहार के बाढ़ जिला पहुंचीं तो चलने में कुछ परेशानी महसूस हुई। इस पर चिकित्सकों ने उन्हें प्रतिदिन 15 से 20 किमी चलने का सुझाव दिया। उन दिनों वह प्रतिदिन 35 से 40 किमी चल रही थीं। दो दिन आराम करने के बाद वह बाढ़ जिले से अकेले ही इस डगर पर निकल पड़ीं और दस मई को बुलंदशहर पहुंचीं।

इसके बाद कोविड के चलते आगे जाने की अनुमति नहीं पाई। अब अनुमति मिलने पर आठ अगस्त को उन्होंने यात्रा को आगे बढ़ाया और बुलंदशहर होते हुए 28 अगस्त को उत्तरकाशी पहुंचीं। यहां एक दिन आराम करने के बाद फिर यात्रा पर निकल पड़ी हैं। सड़क मार्ग से गुजरने वाली राह पर वह अभी भी दस से 35 किमी प्रतिदिन चल रही हैं और अब तक 4250 किमी गंगा परिक्रमा कर चुकी हैं।

इंदु बताती हैं कि भटवाड़ी गंगनानी से लेकर गोमुख और गोमुख में गंगोत्री ग्लेशियर पार करते हुए फिर उत्तरकाशी तक पहुंचने का पैदल मार्ग काफी विकट है। इस मार्ग पर उन्हें कई जगह पहाड़ियों को पार करना होगा। साथ ही कुछ स्थानों पर रस्सी के सहारे आगे बढ़ेंगी। इसलिए इस पदयात्रा में सहयोग के लिए वह एवरेस्ट विजेता विष्णु सेमवाल की मदद ले रही हैं। उन्होंने मुंडमाल यात्रा के दौरान इस विकट क्षेत्र में रास्ता बताने में सहयोग किया था।

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पांच लाख रुपये खर्च का अनुमान

इंदु बताती हैं कि परिवार में उनकी मां सत्य शर्मा व बहनें हैं, जो सोनीपत एनसीआर में रहती हैं। बीते 17 वर्षों के दौरान जो धनराशि उन्होंने जमा की थी, उसी का उपयोग इस यात्रा में कर रही हैं। इस यात्रा के दौरान रहने-खाने में लगभग पांच लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसी तरह के रोमांच और अन्वेषण के लिए उन्होंने इलेक्ट्रानिक मीडिया का करियर छोड़ा है।

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सुबह छह बजे शुरू होती है पदयात्रा

इंदु बताती हैं कि वह नियमित रूप से सुबह पांच बजे बिस्तर छोड़ देती हैं और ठीक छह बजे यात्रा शुरू कर देती हैं। नाश्ता और लंच रास्ते में होटल-ढाबों पर करती हैं। अपने साथ वह सीमित मात्रा में जरूरी सामान ही रखती हैं, ताकि चलने में परेशानी न हो। यात्रा में वह इस बात का ध्यान जरूर रखती हैं कि शाम ढलने से पूर्व किसी सुरक्षित पड़ाव तक पहुंच जाएं। उन्होंने अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वत (5895 मीटर) के साथ एवरेस्ट बेस कैंप, काला पत्थर (5643 मीटर) की ट्रैकिग भी की है।

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उत्तराखंड में स्वच्छ एवं निर्मल है गंगा

इंदु बताती हैं कि इस पदयात्रा के दौरान वह आमजन से गंगा को स्वच्छ रखने की अपील कर रही हैं। साथ ही उन्हें गंगा तट की संस्कृति, रहन-सहन, कृषि, उद्यान, उद्योग और परंपराओं के बारे में जानने का मौका मिल रहा है। कहती हैं, उत्तराखंड में गंगा स्वच्छ और पवित्र है। वह चाहती हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व बंगाल में भी गंगा ऐसी ही निर्मल बहती रहे।

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