जान जोखिम में डाल स्वास्थ्यकर्मी लगा रहे जिंदगी का टीका, खड़ी चढ़ाई, खतरनाक रास्ते ही नहीं; भालू के हमले का भी खतरा

Mahamari se azadi कोरोना महामारी से बचाव में टीका बेहद अहम माा जा रहा है। पर्वतीय इलाकों के दुर्गम गांवों में टीकाकरण आआसान नहीं है। श्वेता और सोनम रावत जैसी स्वास्थ्यकर्मी जान जोखिम में डाल लोगों को टीका लगा रही हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Mon, 09 Aug 2021 10:02 AM (IST) Updated:Mon, 09 Aug 2021 10:02 AM (IST)
जान जोखिम में डाल स्वास्थ्यकर्मी लगा रहे जिंदगी का टीका, खड़ी चढ़ाई, खतरनाक रास्ते ही नहीं; भालू के हमले का भी खतरा
जान जोखिम में डाल स्वास्थ्यकर्मी लगा रहे जिंदगी का टीका।

शैलेन्द्र गोदियाल, उत्तरकाशी। Mahamari se azadi कोरोना महामारी से बचाव में टीका बेहद अहम माना जा रहा है। पर्वतीय इलाकों के दुर्गम गांवों में टीकाकरण आआसान नहीं है। श्वेता और सोनम रावत जैसी स्वास्थ्यकर्मी जान जोखिम में डाल लोगों को टीका लगा रही हैं। कहीं जंगली जामवरों का डर तो कहीं भूस्खलन में फंसने का, लेकिन इनके उत्साह में कमी नहीं है।

सीमांत जनपद उत्तरकाशी के दूरदराज के पिछड़े इलाकों में कोविड टीकाकरण करना सबसे जोखिम भरा है। बरसात के इस मौसम में उफान भरे नदी-नालों, जंगल झाड़ियों और पहाड़ियों की विकट पगडंडियों से होकर ये स्वास्थ्य कर्मी गांव तक पहुंच रहे हैं। और उत्साह से टीकाकरण कर रहे हैं।

चीन सीमा से सटे उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के 15 गांव ऐसे हैं, जहां पहुंचने के लिए आठ से 15 किमी की खड़ी चढ़ाई तय करनी पड़ती है। स्वास्थ्य कर्मी उफनाते नदी-नालों, जंगलों-झाड़ियों और विकट पगडंडियों से होकर गांव तक पहुंच रहे हैं। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 225 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ओसला गांव को जाने के लिए आज भी तालुका से 18 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है।

आग्जिलरी नर्स मिडवाइफरी(एएनएम) श्वेता राणा टीकाकरण के लिए दो बार तालुका चली गई हैं। श्वेता टीम के साथ बीती छह जुलाई की सुबह सात बजे रवाना हुई। तालुका से एक किमी पहले भूस्खलन से सड़क बंद थी। सो टीम ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जैसे-तैसे रास्ता पार किया। ओसला के पैदल मार्ग पर जिया गदेरा (पहाड़ी नाला) उफान पर था। लकड़ी की पुलिया से होते हुए टीम आगे बढ़ी।

बिस्कुट-पानी के सहारे कटा पूरा दिन

श्वेता बताती हैं कि बारिश में जंगल से होते हुए रात आठ बजे उनकी टीम ओसला पहुंची। दिन बिस्कुट-पानी के सहारे गुजरा। अतिरिक्त आइस पैक होने और 2,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ओसला में अधिकतम तापमान 15 डिग्री होने से वैक्सीन सुरक्षित रही।

ग्रामीणों को समझाना भी चुनौती

वैक्सीनेशन के लिए ग्रामीणों को राजी भी करना था। समझाने पर लगभग सौ ग्रामीणों ने वैक्सीन लगवाई। ढाटमीर गांव में लोग वैक्सीन के लिए राजी नहीं हुए। फार्मेसिस्ट वासुदेव राणा कहते हैं कि हिम्मत नहीं हारी और कुछ लोगों को तालुका बुलाकर टीका लगाया। तालुका से 14 किमी की पैदल दूरी पर स्थित पंवाणी गांव में टीकाकरण करने वाली एएनएम संगीता रावत और अक अन्य गांव जाने वाली एएनएम सोनम रावत को भी ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

भालू के हमले का भी है खतरा

मोरी तहसील के कलाप, पासा और पोखरी गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं। आठ-दस किमी पैदल चलना पड़ता है। एएनएम सीता चौहान कहती हैं कि जंगल के बीच से जाना पड़ता है। रुद्राला से पोखरी-पासा जाते हुए कुछ दिन पहले उन्हें जंगल में भालू भी दिखा। यह रास्ता खतरे से खाली नहीं है। अधिकांश ग्रामीण छानी (गांव से दूर पारंपरिक घर, जहां मवेशी भी साथ रहते हैं) या सेब के बगीचों में रहते हैं। ऐसे में उनकी टीम को भूखे-प्यासे ही छानियों तक पहुंचना पड़ रहा है।

तीन साल से बेटी से दूर हैं श्वेता

ओसला गांव में टीकाकरण करने वाली एएनएम श्वेता राणा कहती हैं कि नवंबर 2020 से वह अपनी तीन साल की बेटी से दूर हैं। बेटी दादी और पिता के साथ गंगोत्री धाम के पास सुक्की गांव में रहती हैं। 

वहीं, जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने कहा, टीमों को टीकाकरण के लिए ऐसे स्थानों पर भी जाना पड़ रहा है, जहां पहुंचने के लिए सुरक्षित रास्ते तक नहीं हैं। उम्मीद है कि स्वास्थ्य टीम के जज्बे से 15 अगस्त तक जिले में 90 फीसद ग्रामीणों को वैक्सीन की पहली डोज लग जाएगी।

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