पर्यटकों को एडवेंचर और संस्कृति से रूबरू करा रहे उत्‍तरकाशी के चैन सिंह रावत

चैन सिंह रावत ने उत्तरकाशी जनपद में पर्यटन की परिभाषा को राहत बचाव से लेकर स्थानीय संस्कृति से समृद्ध कर दिया है। जिससे पर्यटक न केवल ताल बुग्याल का दीदार कर रहे हैं बल्कि एडवेंचर का प्रशिक्षण और संस्कृति रूबरू भी हो रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 27 Apr 2021 10:15 AM (IST) Updated:Tue, 27 Apr 2021 10:15 AM (IST)
पर्यटकों को एडवेंचर और संस्कृति से रूबरू करा रहे उत्‍तरकाशी के चैन सिंह रावत
पर्यटकों को एडवेंचर और संस्कृति से रूबरू करा रहे उत्‍तरकाशी के चैन सिंह रावत।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। उत्तराखंड में ट्रैकिंग व्यवसाय आर्थिकी का एक जरिया है। लेकिन कुछ युवा इस व्यवसाय को लीक से हटकर कर रहे हैं, जिससे पर्यटन की संभावनाएं पंख फैला रही हैं और नए पर्यटक स्थल अपनी मौजूदगी पर्यटन मानचित्र पर कर रहे हैं। इन्हीं युवाओं में शामिल है उत्तरकाशी के सौड़ सांकरी गांव का चैन सिंह रावत। चैन सिंह रावत ने उत्तरकाशी जनपद में पर्यटन की परिभाषा को राहत बचाव से लेकर स्थानीय संस्कृति से समृद्ध कर दिया है। जिससे पर्यटक न केवल ताल बुग्याल का दीदार कर रहे हैं बल्कि एडवेंचर का प्रशिक्षण और संस्कृति रूबरू भी हो रहे हैं।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 200 किलोमीटर दूर मोरी ब्लाक का सौड़ सांकरी गांव है। इस गांव के निवासी 42 वर्षीय चैन सिंह रावत हैं। चैन सिंह रावत ने अपने जुनून व जज्बे से केदारकांठा सहित एक दर्जन नए पर्यटन स्थलों को पर्यटन मानचित्र में विशेष स्थान दिलाया है। साथ ही गांव के 95 फीसद ग्रामीणों को होम-स्टे और पर्यटन के स्वरोजगार से जोड़ा है।

पर्यटकों का स्वागत सत्कार करना सिखाया। जिससे सबसे अधिक पर्यटक केदारकांठा और हरकीदून का रुख कर रहे हैं। जो भी पर्यटक केदारकांठा और हरकीदून की ट्रैकिंग के लिए आते हैं। तो ग्रामीण उनका ढोल नगाड़ों से स्वागत करते हैं, पर्यटकों को फूल माला पहनायी जाती है। उनके स्वागत में ग्रामीण स्थानीय गीत नृत्य प्रस्तुत करते हैं। जब पर्यटक ट्रैकिंग पर जाते हैं तो पर्यटकों को राहत बचाव का प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे पर्यटक आपात स्थिति में खुद और दूसरों की भी सहायता कर सके। राहत बचाव के प्रशिक्षण से पर्यटक बेहद ही उत्साहित रहते हैं।

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से मिली प्रेरणा

चैन सिंह रावत बताते हैं कि जब वे ग्रेजुएशन करने के लिए उत्तरकाशी आए तो नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के बारे में सुना। संस्थान से बेसिक, एडवांस, सर्च एंड रेस्क्यू सहित आदि कोर्स किए। एक वर्ष तक पीजी कॉलेज उत्तरकाशी में छात्रों को पर्यटन विषय पढ़ाया। लेकिन, फिर अपने क्षेत्र में पर्यटन के लिए कुछ खास करने की ललक ने गांव की ओर लौटाया। पीजी कॉलेज से नौकरी छोड़ी। गांव में चैन सिंह रावत के चाचा प्रसिद्ध पर्वतारोही भगत रावत ने राह दिखायी तो चैन सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पुरस्कार की राशि से खरीदा ट्रैकिंग का सामान

चैन सिंह रावत ने कहा कि नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में जब मैंने कोर्स किए तो संस्थान ने मुझे स्कॉलरशिप दे दी। कोर्स समाप्त होने पर पढ़ाई के साथ उत्तरकाशी की ट्रैकिंग एजेंसियों में पोर्टर का काम भी करने लगा। इस बीच नेहरू युवा केंद्र की तरफ से उत्कृष्ट स्वयंसेवी चुने जाने पर 30 हजार रुपये का पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार गोमुख से लेकर गंगोत्री तक स्वच्छता अभियान चलाने के लिए दिया गया। उस समय उच्च हिमालय क्षेत्र से कई क्विंटल कूड़ा एकत्र किया और उसे गंगोत्री पहुंचाया। पुरस्कार की धनराशि से मैंने ट्रैकिंग का सामान खरीदा और पहली बार अपना ट्रैकिंग ग्रुप लेकर केदारताल गया।

स्थानीय युवाओं के हाथों में भी रोजगार

चैन सिंह रावत कहते हैं कि हरकीदून प्रोटेक्शन एंड माउंटेनियरिंग एसोसिएशन गठन किया। स्थानीय युवाओं की एक टीम तैयार की। टीम के साथ चाईंशील, देवक्यारा, सरुताल आदि नए ट्रैक रूट खोजे और साथ ही सांस्कृतिक पर्यटन को भी बढ़ावा दिया। कोविड काल से पहले मोरी क्षेत्र में हर साल 50 हजार से अधिक पर्यटक हर वर्ष पहुंचे हैं। जिन युवाओं को उन्होंने प्रेरित किया उनमें कुछ युवाओं ने अपनी अलग ट्रैकिंग एजेंसी खोल ली हैं। मोरी क्षेत्र में ही करीब 25 एजेंसियां चल रही हैं। जिससे सांकरी, कासला, लिवाड़ी, फिताड़ी, सिरगा, ढाटमीर, ओसला आदि दूरस्थ गांवों के तीन-चार हजार ग्रामीणों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है।

शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति

चैन सिंह रावत कहते हैं कि मोरी क्षेत्र में सबसे बड़ी कमी शिक्षा की है। इसलिए पर्यटन उद्योग में सफलता मिलने के बाद समाज सेवा के उद्देश्य से हरकीदून पब्लिक स्कूल भी खोला। जहां आसपास के गांवों के 100 बच्चे पढ़ते हैं। जिनमें से 50 प्रतिशत से अधिक आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। साथ ही बालिकाओं की शिक्षा भी पूरी तरह से निशुल्क है। जिससे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात सही मायने में चरित्रार्थ हो सके।

बेटे की सफलता पर माता-पिता हैं खुश

चैन सिंह रावत की सफलता से पिता भजन सिंह रावत और माता पवित्री देवी बेहद ही खुश हैं। भजन सिंह रावत कहते हैं कि उनका बेटा चैन सिंह रावत जब 16 वर्ष का था तो कुछ पर्यटकों के साथ केदारकांठा गया था। उस समय पर्यटक भी कम आते थे तथा पर्यटन व्यवसाय को लेकर कोई प्रचार प्रसार भी नहीं था। लेकिन, चैन सिंह की रुचि बचपन से ही पर्यटन में थी। आज पर्यटन के बूते गांव का हर परिवार औसतन दो लाख रुपये कमाता है। सभी ग्रामीण अपने व्यवसाय में व्यस्त हैं। इसलिए खुशी मिलती है कि बेटे ने सही राह चुनी।

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