बाजपुर में तस्करों ने उड़ा दी करोड़ों वन संपदा और विभाग सोया रहा

बाजपुर में कोसी व दाबका नदियां के किनारे के इलाके पर लकड़ी तस्कर चांदी काट रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 07 Nov 2020 10:35 PM (IST) Updated:Sat, 07 Nov 2020 10:35 PM (IST)
बाजपुर में तस्करों ने उड़ा दी करोड़ों वन संपदा और विभाग सोया रहा
बाजपुर में तस्करों ने उड़ा दी करोड़ों वन संपदा और विभाग सोया रहा

जीवन सिंह सैनी, बाजपुर : कोसी व दाबका नदियां के किनारे के इलाके पर लकड़ी तस्कर चांदी काट रहे हैं। इसी वर्ष लोग कोरोना में उलझे रहे और तस्करों ने 40 से 60 वर्ष पुराने पेड़ों पर आरा चला दिया।

बंजारी गेट व दाबका के बीच ज्वाला वन क्षेत्र 1992 में कोसी काटा जोगीपुरा तक था। अवैध खनन के साथ ही जंगलों में अवैध लकड़ी कटान इस कदर शुरू हुआ कि आजादी के समय लगे पेड़ तस्करों ने वन कर्मियों की मिलीभगत से काट डाले। ऐसे में वन क्षेत्र घटता गया और वन भूमि पर लोग कब्जा करते रहे। इस जमीन पर आज कहीं अवैध खनन तो कहीं पर फसलें लहलहा रही हैं। उच्चाधिकारी भी अपने बचाव के लिए लोगों को न्यायालय का रास्ता बता देते हैं, ताकि कह सकें कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है।

ताजा मामला कोरोनाकाल के दौरान करीब सैकड़ों हरे पेड़ काटे जाने का है। जांच के बाद पेड़ों की गणना की गई। तस्करों पर तो कार्रवाई नहीं हुई अलबत्ता वन रक्षक को निलंबित करते जुए वन दारोगा को कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया। करोड़ों के खेल में लापरवाह बने रहे जिम्मेदार अधिकारियों पर आज तक कार्रवाई नहीं हुई।

जानकारों ने बताया कि एक पेड़ में 50 से 70 फीट तक माल निकलता है। बाजार में सागवान इमारती लकड़ी ढाई हजार से लेकर 35 फीट तक कच्चे और पक्के के हिसाब से बिकती है। ऐसे में एक पेड़ की कीमत ही लाखों रुपये में बैठती है।प्रारंभिक जांच में ज्वाला वन क्षेत्र के प्लाट नंबर 5, 6, 7 में पेड़ काटने की सूचना मिली थी। उच्चाधिकारियों ने लगभग 400 पेड़ों की गणना कर ली है। ठूंठ मौके पर मिलने के चलते विभाग ने स्वयं नंबरिग भी की। जंगल के बीच मचान बनाकर लकड़ी तस्करी रोकने की कवायद भी की मगर रुका कुछ नहीं।

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घट रही है पेड़ों की संख्या

ज्वाला वन क्षेत्र में 25 से 40 हेक्टेयर के 13 प्लाट हैं। इसमें कभी सागवान के पेड़ ही दिखाई देते थे, लेकिन अवैध कटान के चलते वन विभाग ने अब यूकेलिप्टिस के पेड़ लगाए गए हैं। मध्य भाग में कहीं-कहीं दिख रहे सागौन के पेड़ों पर भी तस्करों की नजर है। तस्करी के निशान मिटाने के लिए अनेक जगह ठूंठ जला भी दिए गए हैं। बताया जाता है कि लकड़ी तस्कर रात के अंधेरे में आधुनिक पेट्रोल चालित मशीन से चंद मिनटों में पेड़ काट देते हैं और कुछ समय में ही लगभग 40 से 60 फीट लंबे पेड़ का सफाया कर दिया जाता है। लकड़ी तस्कर इतने शातिर हैं कि कटान के पेड़ को बाइकों से नजदीकी क्षेत्रों में खड़े वाहनों तक पहुंचाते हैं और वहां से प्रशासनिक मिलीभगत के चलते यह लकड़ी उप्र के कुछ शहर में पहुंच जाती है। कभी था घना जंगल

च्वाला वन क्षेत्र की चौड़ाई कभी लगभग दो किलोमीटर के आसपास थी। कोसी व दाबका नदियों में हो रहे अवैध खनन के चलते हजारों पेड़ कटान के चलते या तो नदियों में समा गए या तस्करों की भेंट चढ़ गए हैं। वनक्षेत्र अब लगभग एक किलोमीटर दायरे में सिमट गया है।

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पेड़ काटने की सूचना मिली थी, जिसमें जांच की जा रही है। पर्याप्त सुरक्षा न कर पाने के चलते एक वनरक्षक को निलंबित कर दिया गया है, जबकि वन दारोगा के विरुद्ध जांच जारी है और उन्हें कार्यालय से संबंध किया गया है। घटना के बाद से जगह-जगह कार्रवाई करते हुए कुछ माल बरामद भी किया गया है। जांच पूरी होने के बाद जिम्मेदार अन्य लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई संभव है। -हिमांशु बाघरी- डीएफओ तराई पश्चिमी वन प्रभाग रामनगर

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