पौधरोपण के लिए सड़क किनारे शुरू किया अभियान
पर्यावरण के प्रति समर्पण जब जुनून बन जाय तो परिणाम दिखता है भले ही देर हो।
जासं , रुद्रपुर : पर्यावरण के प्रति समर्पण जब जुनून बन जाय तो परिणाम दिखता है। भले ही देर हो। लेकिन पौधों को वृक्ष बनते देखना। उनकी छांव में सुस्ताना। हरी पत्तियों को निहारना और हवा के झोंके के बीच डालियों का मचलना बेहद सुकून देता है। इसी सुकून और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए डा. अजय कुमार ने पौधारोपण के लिए मोदी मैदान से गंगापुर तक की पांच किलोमीटर सड़क को ही गोद लेकर पौधारोपण शुरू कर दिया।
पिछले एक वर्ष से इसके दोनों किनारों पर पौधारोपण करने के बाद अब उनकी देखरेख में जुटे हैं। गर्मी हो या सर्दी, वह ड्यूटी के बाद कार में पानी के गैलन भरकर पौधों को सींचने निकल जाते हैं। उनका लक्ष्य पाच साल में एक हजार पौधों को रोपना है, ताकि लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने के साथ ही वृक्षों की महत्ता भी समझें। इसके लिए डा. अजय ने बकायदा लोकनिर्माण विभाग से लिखित अनुमति भी ली है।
गंगापुर रोड स्थित कैलाशपुरम निवासी डा. अजय ने पंत विवि से वर्ष, 1984 में डाइटिक्स में एमएससी की डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने डेयरी विभाग में नौकरी शुरू की। बाद में नौकरी छोड़कर सामाजिक कार्यो में लग गए। अभी आवास विकास में पतंजलि का स्टोर है। वहीं पर योगाभ्यास की जानकारी भी देते हैं। ऊधमसिंह नगर में बढ़ते प्रदूषण और कम होते वृक्षों के समाधान के लिए उन्होंने मोदी मैदान से गंगापुर जाने वाली पांच किलोमीटर सड़क को चुना। अभी फुलसुंगा तक 150 पौधे रोप चुके हैं। रोजाना सुबह- शाम उन्हें पानी भी देते हैं। मवेशियों से पौधों को बचाने के लिए वन विभाग की मदद से ट्री गार्ड भी लगवा दिया है। पौधारोपण के साथ बचाना भी मकसद
अजय बताते हैं कि मनुष्य अपने स्वार्थ की खातिर प्राकृतिक संसाधनों का गलत तरीके से दोहन कर रहा है। ऐसे में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। सड़क निर्माण के समय पेड़ काट दिए जाते हैं। उनकी जगह अगर सरकारी पौधे लगते भी हैं तो देखरेख के अभाव में अक्सर सूख जाते हैं। अजय बताते हैं कि अक्सर लोग अपने लिए जीते हैं। ऐसे में सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा सकारात्मक कार्य किया जाए जो पर्यावरण संरक्षण के साथ सभी के लिए हितकारी हो। इसलिए पौधे लगाने व उन्हें बचाने की ठानी। इन पौधों का किया रोपण
अमलताश, जामुन, सिल्वर ओक, नीम, पीपल, पाकड़, पुत्रजीवक, सतपर्णी।