मनीषा फार्म में तैयार कर रहीं भविष्य की फसल

मनीषा मजदूरों के बच्चों को पढ़ाई में मदद करने के साथ ही उन्हें जरूरत का सामान भी उपलब्ध करातीं हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 12:07 AM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2020 12:07 AM (IST)
मनीषा फार्म में तैयार कर रहीं भविष्य की फसल
मनीषा फार्म में तैयार कर रहीं भविष्य की फसल

संदीप जुनेजा, किच्छा : सेवाभाव का जज्बा हो तो हर काम आसान हो जाता है। जवाहर नगर पंतनगर की मनीषा खाती ने कुछ इसी जज्बे के साथ बच्चों को दिशा दिखा रही है। फार्म में बच्चों के भविष्य की फसल तैयार रही हैं। बच्चे आत्मनिर्भर होकर जिदगी में खुशबू बिखेर रहे हैं।

जवाहर नगर पंतनगर निवासी मनीषा खाती के दादा भूपाल सिंह खाती स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ ही आजादी के बाद अल्मोड़ा से विधायक रहे। उसके बाद वह जवाहर नगर में आकर बस गए। पारिवारिक नाता खेती के साथ होने के कारण अपने फार्म पर वह दुग्ध उत्पादन के कार्य में सहयोग किया करती थीं। इस दौरान जब वह अपने फार्म पर जाती और वहां खेतों में काम करने वाले खेतिहर मजदूरों के बच्चों को शाम को खेलते देखा तो उनके हाथों में कलम थमा उनको अपने पैरों पर खड़ा करने का जच्बा मन में पैदा किया। वर्ष 2006 में खेतिहर मजदूरों के बच्चों को दिशा देने का काम दो बच्चों के साथ किया जो देखते ही देखते उनकी संख्या 50 से अधिक हो गई। मनीषा की प्रेरणा से बच्चों के परिजनों ने उन्हें स्कूल भेजना शुरू किया। सुबह सूरजमल अग्रवाल कन्या महाविद्यालय में सेवा देने के बाद बच्चों को शाम को नियमित रूप से पढ़ाने का जिम्मा मनीषा ने उठाया। इस दौरान वह बच्चों की स्टेशनरी की जरूरत के साथ ही उनके कपड़ों का भी ध्यान रखती थी। जिनके पास सर्दी में कपड़ा नहीं होता उनको कपड़ा मुहैया करवाने के साथ ही शिक्षा से जुड़ी सामग्री भी उन्हें उपलब्ध कराई। 14 वर्ष की इस मेहनत का परिणाम भी बच्चों ने दिया और आज खेतिहर मजदूरों के बच्चे पढ़ लिख कर इस लायक बन गए कि वह आज अपने पैरों पर खड़े है। उनके सपनों को पंख लगाने का काम मनीषा खाती ने किया। इसमें उनके भाई दिग्विजय खाती भी मददगार है और उनके द्वारा पांच बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया गया है। मनीषा अपने परिवार का आभार व्यक्त करती है जिन्होंने हर समय उनकी इस मुहिम में सहयोग दिया।

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ऐपण कला बनी आजीविका का साधन

मनीषा के प्रयास से उनके पास आने वाली किशोरियों को आत्मनिर्भर बनाया। किसी को सिलाई तो किसी को कढ़ाई के साथ बच्चों को कंप्यूटर सिखाया। इतना ही नहीं पर्वतीय समाज में त्योहारों पर ऐपण कला के प्रयोग को देखते हुए किशोरियों को ऐपण कला में दक्ष किया। इसका प्रयोग उनकी आजीविका के रूप में मददगार साबित हो रहा है।

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लॉकडाउन में स्मार्ट फोन बना मददगार

लॉकडाउन के दौरान जब सामाजिक दूरी के मानकों का पालन की मजबूरी सामने आई तो कक्षा दस व कक्षा 12 में पढ़ने वाले बच्चों को स्मार्ट फोन के माध्यम से उनकी समस्या का समाधान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

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