प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने 13 साल की उम्र में शुरू किया था आंदोलन, पढ़िए पूरी खबर
महज 13 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा के मन में कुछ अलग करने की ऐसी धुन सवार हुई कि वह अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आ गए। उन्होंनेचिपको आंदोलन टिहरी बांध विरोधी आंदोलन सहित कई अन्य आंदोलनों की अगुआई और पर्यावरण संरक्षण के लिए बेमिसाल कार्य किया।
अनुराग उनियाल, नई टिहरी। महज 13 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा के मन में कुछ अलग करने की ऐसी धुन सवार हुई कि वह अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आ गए। इसके बाद उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ बगावत से लेकर शराबंदी, 'चिपको' आंदोलन, टिहरी बांध विरोधी आंदोलन सहित कई अन्य आंदोलनों की अगुआई की और पर्यावरण संरक्षण के लिए बेमिसाल कार्य किया।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म टिहरी के पास मरोड़ा गांव में नौ जनवरी 1927 को हुआ। उनके पिता अंबादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे। वह तब महज 13 साल के थे, जब टिहरी में श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। उस अवधि में श्रीदेव सुमन टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने बहुगुणा की प्रतिभा देख उन्हें कुछ किताबें पढ़ने को दीं। फिर तो बहुगुणा के किशोर मन में क्रांति और कुछ अलग करने की धुन सवार हो गई। वर्ष 1944 में टिहरी जेल में बंद श्रीदेव सुमन की बातें बहुगुणा ने ही उस वक्त जनता के बीच पहुंचाई थीं। इससे वे भी टिहरी रियासत के निशाने पर आ गए और उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
इसके बाद बहुगुणा पढ़ाई के लिए लाहौर चले गए। इस दौरान टिहरी रियासत की पुलिस से बचने के लिए वह कुछ समय तक भेष बदलकर भी रहे। जून 1947 में लाहौर से प्रथम श्रेणी में बीए आनर्स कर टिहरी लौटे तो फिर टिहरी रियासत के खिलाफ बने प्रजामंडल में सक्रिय हो गए। इस बीच 14 जनवरी 1948 को टिहरी राजशाही का तख्तापलट हो गया और प्रजामंडल की सरकार बनी तो उसमें बहुगुणा को प्रचार मंत्री की जिम्मेदारी मिली। फिर कुछ समय तक वे कांग्रेस में भी रहे। वर्ष 1955 में गांधीजी की अंग्रेज शिष्य सरला बहन के कौसानी आश्रम में पढ़़ी विमला नौटियाल से उनका संपर्क हुआ। विमला ने उनसे शादी के लिए राजनीति छोडऩे और सुदूर किसी पिछड़े गांव में बसने की शर्त रखी। बहुगुणा ने शर्त मान ली और टिहरी से 22 मील दूर पैदल चलकर सिल्यारा गांव में झोपड़ी डाल दी। 19 जून 1956 को वहीं विमला नौटियाल से शादी की और पर्वतीय नवजीवन मंडल संस्था बनाई।
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1960 और 1970 के दशक में बहुगुणा ने शराबंदी आंदोलन चलाया और सरकार को पहाड़ों में शराब की दुकानें बंद करनी पड़ीं। 1974 में बहुगुणा प्रसिद्ध 'चिपको' आंदोलन का हिस्सा बने और हरे पेड़ों को कटने से बचाया। वर्ष 1981 में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री देने की घोषणा की, लेकिन उन्होंने पुरस्कार नहीं लिया और केंद्र से कहा कि पहाड़ों में ऊंचाई वाले इलाकों में पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगाया जाए। इसके बाद केंद्र सरकार ने उनकी बात मानी और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ कटान पर प्रतिबंध लगाया। तभी बहुगुणा ने पद्मश्री स्वीकार किया। 1986 में बहुगुणा टिहरी बांध निर्माण के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय हुए और 24 नवंबर 1989 में अपना सिल्यारा का आश्रम छोड़कर टिहरी में भागीरथी के तट पर बांध स्थल के पास धरना शुरू कर दिया। आंदोलन के दौरान कई बार वह जेल भी गए। लेकिन, उनके आंदोलन के प्रभाव से सरकार को बांध निर्माण के दौरान पर्यावरण प्रभाव के लिए कई समितियों का गठन करना पड़ा।
बहुगुणा को मिले सम्मान
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