कृत्रिम अंगों से दौड़ने लगी ठहरी हुई जिंदगी
डाग गाव के अनिल और घनसाली के जसपाल की जिंदगी दिव्यागता के कारण ठहरी हुई थी लेकिन अब दोनों की जिंदगी दौड़ने लगी है। कृत्रिम पैर लगने के बाद अनिल प्राइवेट जाब कर रहा है तो जसपाल टेलर की दुकान चला रहा है।
जागरण संवाददाता, नई टिहरी: डाग गाव के अनिल और घनसाली के जसपाल की जिंदगी दिव्यागता के कारण ठहरी हुई थी, लेकिन अब दोनों की जिंदगी दौड़ने लगी है। कृत्रिम पैर लगने के बाद अनिल प्राइवेट जाब कर रहा है, तो जसपाल टेलर की दुकान चला रहा है।
कुछ साल पहले बैसाखी के सहारे चलने वाले अनिल और जसपाल को नई राह मिल चुकी है। भल्डयाणा निवासी अनिल सिंह को वर्ष 2018 में कृत्रिम पैर लगाया गया था। पैर लगाने से पूर्व 6 बहनों और 2 भाइयों में सबसे बड़े अनिल के लिए जिंदगी आसान नहीं थी। पिता मजदूर और घर के बड़े बेटे होने की परिवार जिम्मेदारी अनिल के ऊपर थी। राड्स संस्था ने अनिल को कृत्रिम पैर लगाया तो उनको नई राह मिल गई।
आज अनिल कृत्रिम पैर से बिना बैसाखी के सहारे आराम से चल लेते हैं और महीने में लगभग आठ हजार रुपये भी कमा रहे हैं। कंडियाल गाव प्रतापनगर निवासी एकादशी देवी को भी संस्था ने कृत्रिम पैर उपलब्ध करवाया था। आज एकादशी देवी भैंस पालन कर अपना गुजारा स्वयं कर रही हैं और खुद कमाने में भी सक्षम है।
जसपाल ने बताया कि पहले वह चल नहीं पाते थे। जिंदगी बोझ जैसी लगती थी, लेकिन जब राड्स संस्था की तरफ से उन्हें कृत्रिम पैर लगाया तो वह चलने लगे। अब उनकी टेलर की दुकान है और वह खुद अपना खर्च उठा रहे हैं। राड्स संस्था के अध्यक्ष सुशील बहुगुणा ने बताया कि उनकी संस्था की तरफ से जिले में अभी तक 80 व्यक्तियों को कृत्रिम पैर उपलब्ध कराए जा चुके हैं। 29 अक्टूबर को नई टिहरी में आयोजित शिविर में दिव्याग जनों को कृत्रिम अंग वितरित किए जाएंगे।