World Hindi Day: विदेश में हिंदी का ज्ञान बांट रहे हैं टिहरी के प्रो. रामप्रसाद

अनिवासी भारतीय प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट जर्मनी सहित अन्य यूरोपिय देशों में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को पहचान दिलाने के लिए कार्य कर रहे हैं। जर्मनी के हैंम्बर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रामप्रसाद विदेश में हिंदी गहन अध्ययन नाम से पिछले 14 वर्षों से कार्यक्रम चला रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 10 Jan 2021 06:01 AM (IST) Updated:Sun, 10 Jan 2021 07:37 AM (IST)
World Hindi Day: विदेश में हिंदी का ज्ञान बांट रहे हैं टिहरी के प्रो. रामप्रसाद
अनिवासी भारतीय प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट। फाइल फोटो

जागरण संवाददाता, नई टिहरी। World Hindi Day अनिवासी भारतीय प्रोफेसर रामप्रसाद भट्ट जर्मनी सहित अन्य यूरोपिय देशों में भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को पहचान दिलाने के लिए कार्य कर रहे हैं। जर्मनी के हैंम्बर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रामप्रसाद विदेश में हिंदी गहन अध्ययन नाम से पिछले 14 वर्षों से कार्यक्रम चला रहे हैं। इस कोर्स में अब तक वह नीदरलैंड, पौलेंड, डेनमार्क, इटली आदि यूरोपियन देशों के 673 छात्रों को हिंदी भाषा पढ़ चुके हैं।

मूल रूप से टिहरी जिले के भल्डगांव बासर निवासी रामप्रसाद भट्ट को हिंदी साहित्य से विशेष लगाव है। छात्र जीवन में उन्हें हिंदी कविता व साहित्य लेखन का शौक था। उनका यही शौक हिंदी भाषा की सेवा के रूप में उनके जीवन का मकसद भी बन गया। प्रो. राम प्रसाद भट्ट ने बताया कि वह यूरोपियन देशों के छात्रों के लिए हिंदी गहन अध्ययन नाम से प्रति वर्ष अगस्त के प्रथम तीन सप्ताह में कोर्स संचालित करते हैं और विदेशी छात्रों में यह कोर्स करने की होड़ लगी रहती है। जर्मनी में वह एकमात्र ऐसे हिंदी के शिक्षक हैं जो इस तरह का कोर्स संचालित कर रहे हैं। प्रो. भट्ट बताते हैं कि टिहरी बांध बनने के बाद उन्होंने वर्ष 2006 में टिहरी के लोकगीतों के सांस्कृतिक अध्ययन पर पीएचडी की थी। 2018 से वह शास्त्रीय एवं लोक परंपराओं में पोस्ट डॉक्टरेट कर रहे हैं, जो अभी जारी है।

जर्मन महिला ने किया प्रेरित  

रामप्रसाद बचपन में गांव में ही रहते थे और यहीं से ही उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1985-86 में उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज लाटा चमियाला से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह श्रीनगर गढ़वाल चले गए और यहां से हिंदी विषय में पीएचडी की। शिक्षा पूरी करने के बाद रामप्रसाद देहरादून जिले के मसूरी में एक स्कूल में अध्यापन कार्य करवाने लगे। मसूरी में जर्मनी निवासी एक महिला से रामप्रसाद की जान-पहचान हुई। उन्होंने रामप्रसाद को जर्मनी आने के लिए प्रेरित किया।

क्षेत्रवासियों को है गर्व  

प्रो. रामप्रसाद के बचपन के मित्र व उनके गांव के ही निवासी उदय भट्ट का कहना है कि गांव से निकला होनहार आज जर्मनी में हिंदी का प्रोफेसर है इस पर आज पूरे गांव को ही नहीं, बल्कि क्षेत्रवासियों को भी नाज है। हालांकि, पिछले 25 वर्षों से उनसे मुलाकात नहीं हो पाई है। लेकिन, गांव में सभी उन्हें डॉ. जर्मन के नाम से जानते हैं। रामप्रसाद भट्ट के बड़े भाई जगदीश प्रसाद मसूरी में ही रहते हैं, जबकि दूसरा भाई चिन्यालीसौड़ में डॉक्टर हैं और अपना क्लीनिक चलाते हैं।

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