आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रहा उत्तराखंड के टिहरी जिले का फैगुल गांव

फैगुल गांव में प्रवासियों द्वारा अनुपयोगी पड़ी भूमि को आबाद कर उगाई जा रही फसल। प्रवीन सिंह धनोला

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 02 Sep 2020 12:34 PM (IST) Updated:Wed, 02 Sep 2020 12:35 PM (IST)
आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रहा उत्तराखंड के टिहरी जिले का फैगुल गांव
आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रहा उत्तराखंड के टिहरी जिले का फैगुल गांव

मधुसूदन बहुगुणा, नई टिहरी। उत्तराखंड के टिहरी जिला स्थित चंबा ब्लॉक का फैगुल गांव आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रहा है। कोरोना काल में बेरोजगार होने पर जड़ों को लौटे प्रवासियों की सोच ने यहां वर्षो से अनुपयोगी पड़ी साढ़े तीन लाख वर्ग फुट पहाड़ी-परती भूमि को हरियाली से भर दिया है। चार माह के अथक परिश्रम का सुफल अब सब्जी और नकदी फसलों की नई पौध के रूप में सामने है।

पानी की समस्या को भी इनकी संकल्प शक्ति के आगे हार माननी पड़ी। जिस परती के कारण गांव छूट गया था, वही धरती आज गांव के परिवारों की आजीविका का आधार बनती दिख रही है। मार्च-अप्रैल में लॉकडाउन के दौरान पहाड़ के अन्य हिस्सों की तरह फैगुल गांव में भी दर्जनभर प्रवासी श्रमिक परिवार लौट आए। जिसे असाध्य मानकर हार मान ली थी और पलायन कर गए थे, अब उसी समस्या पर जीत दर्ज करने के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष न था। सभी ने अपने-अपने हिस्से की उस भूमि को उपजाऊ बनाने का संकल्प लिया, जो पानी की कमी के चलते वर्षो से परती बन चुकी थी। जब यह तय हो गया कि जीवन अब इसी पर निर्भर है, तो अथक परिश्रम के बूते हर चुनौती को मात दी। आज परती में नए अंकुर फूट चुके हैं, जो विश्वास दिलाते हैं कि फिर कभी किसी को भी पलायन नहीं करना पड़ेगा।

प्रवासी प्रवीन सिंह धनोला और रणवीर सिंह धनोला बताते हैं कि परती पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए सभी ने जमकर पसीना बहाया। जिला मुख्यालय नई टिहरी से करीब 50 किमी दूर फैगुल गांव के निकट तैला तोक में गांव वालों की साढ़े तीन लाख वर्ग फुट भूमि पिछले 15 वर्षो से अनुपयोगी पड़ी थी। तय किया कि सभी मिलकर इसे उपजाऊ बनाएंगे। प्रवासियों ने पहले इस भूमि पर उग आई झाड़ियों को काटा और फिर भूमि को हल-बखर कर खेती योग्य बनाया। सब्जी सहित राई, उड़द, तिल और अन्य नकदी फसलों की पैदावार की तैयारी की। इसके अलावा खेतों के किनारे आम, लीची और कीनू के पौधे भी लगाए।

गांव लौटे प्रवासी दरम्यान सिंह धनोला, दिनेश सिंह, कलम सिंह, सुंदर सिंह, सचिन, सुरेश सिंह और यशपाल बताते हैं कि वे दिल्ली, पंजाब के होटलों-कारखानों में काम करते थे। कोरोना के कारण बेरोजगार हुए तो गांव लौट आए। भूमि को तो कृषि योग्य बना लिया, किंतु सिंचाई की समस्या थी। ऐसे में निकटवर्ती प्राकृतिक जलस्नोत से पानी ढोकर लाया गया। अंतत: सफलता मिली और फसल उग आई। बताते हैं, सिंचाई अब भी उसी तरह से कर रहे हैं। क्षतिग्रस्त सिंचाई प्रणाली (हौज-गूल) के पुननिर्माण के लिए सिंचाई विभाग को प्रस्ताव भेजा है। साथ ही, अब नकदी फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए कृषि विभाग से भी तकनीकी जानकारी ले रहे हैं। कोशिश यही है कि बड़े स्तर पर दाल व सब्जियों का उत्पादन कर इसे स्वरोजगार का मजबूत जरिया बनाया जाए।

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