टिहरी बांध निर्माण के पक्ष में नहीं थे प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा

प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण के विरोध में आंदोलन कर केंद्र सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया था। बहुगुणा के उस प्रतिरोध के कारण ही केंद्र सरकार को बांध निर्माण और विस्थापन से जुड़े कई मामलों में समितियों का गठन करना पड़ा।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 22 May 2021 08:06 AM (IST) Updated:Sat, 22 May 2021 08:06 AM (IST)
टिहरी बांध निर्माण के पक्ष में नहीं थे प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा
वर्ष 2011 में पुरानी टिहरी झील के पास पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा व साथ में उनकी धर्म पत्‍नी विमला देवी।

जागरण संवाददाता, नई टिहरी। प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण के विरोध में आंदोलन कर केंद्र सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया था। बहुगुणा के उस प्रतिरोध के कारण ही केंद्र सरकार को बांध निर्माण और विस्थापन से जुड़े कई मामलों में समितियों का गठन करना पड़ा।

चिपको आंदोलन के आखिरी दौर के बाद 1986 में बहुगुणा ने टिहरी बांध विरोधी आंदोलन की शुरुआत की। सरकार के इस ओर ध्यान न देने पर 1989 में वह अपना गांव छोड़कर टिहरी आ गए और भागीरथी नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे। इस पर भी जब सरकार खामोशी ओढ़े रही तो 1995 मे उन्होंने 45 दिन तक टिहरी बांध के विरोध में उपवास किया। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने बहुगुणा की बात सुनी और आश्वासन देकर उनका उपवास समाप्त कराया। साथ ही टिहरी बांध से पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन को केंद्र ने एक समिति भी गठित की।

सुंदरलाल बहुगुणा इतने से ही चुप नहीं बैठे। बांध में पर्यावरणीय हितों का ध्यान न रखे जाने के विरोध में उन्होंने एक बार फिर 74 दिन का उपवास किया। इस दौरान उनके आंदोलन के कारण कुछ समय टिहरी बांध का कार्य भी बंद रहा, जो वर्ष 2001 में दोबारा शुरू हो पाया। उनके विरोध के कारण ही टिहरी बांध के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के बारे में गंभीरता से सोचा गया और इसके निराकरण की दिशा में पहल की गई।

एसडीएम ने रुकवा दिया था बांध निर्माण का काम

वर्ष 1989 में बहुगुणा ने 11 दिन का उपवास किया। तब तत्कालीन एसडीएम कौशल चंद्र ने टिहरी बांध का निर्माण कार्य रुकवा दिया था। इतिहासकार महिपाल सिंह नेगी बताते हैं कि बांध का काम रुकने से देशभर में खलबली मच गई थी। बहुगुणा के आंदोलन का असर देखकर एसडीएम ने लॉ एंड आर्डर बिगड़ने का हवाला देते हुए बांध का काम रुकवा दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार के सचिव और तमाम बड़े अधिकारी टिहरी पहुंचे थे। तब किसी तरह बांध का निर्माण फिर शुरू करवाया गया। 1996 में भी बहुगुणा ने धरना दिया, जिसके बाद अप्रैल-मई में बांध का काम बंद रहा।

आंदोलन के कारण बनी समितियां

बहुग़ुणा के आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने एसके राय समिति, बुमला समिति, ढौंडियाल समिति, हुनमंत राव समिति और ग्रुप ऑफ एक्सपर्ट नाम से उच्च स्तरीय समिति गठित की। इन समितियों ने पर्यावरण और स्थानीय निवासियों के हितों को लेकर कई संस्तुतियां कीं, जिनका लाभ पर्यावरण और स्थानीय निवासियों को हुआ। बांध प्रभावित क्षेत्र में पुल और सड़कों का निर्माण भी इन्हीं समितियों की संस्तुतियों पर हुआ। इसी तरह बांध क्षेत्र में पौधरोपण का काम भी समितियों की संस्तुतियों पर किया गया।

यह भी पढ़ें-पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान

Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें

chat bot
आपका साथी