देवस्थानम बोर्ड भंग करना तीर्थपुरोहितों के संघर्ष की जीत: मनोज रावत

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार को तीर्थपुरोहित

By JagranEdited By: Publish:Wed, 01 Dec 2021 05:56 PM (IST) Updated:Wed, 01 Dec 2021 05:56 PM (IST)
देवस्थानम बोर्ड भंग करना तीर्थपुरोहितों के संघर्ष की जीत: मनोज रावत
देवस्थानम बोर्ड भंग करना तीर्थपुरोहितों के संघर्ष की जीत: मनोज रावत

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार को तीर्थपुरोहितों के आंदोलन के सामने झुकना पड़ा और मजबूर होकर बोर्ड को भंग करना पड़ा। विधायक ने कहा कि तीर्थपुरोहित, हक-हकूकधारी और विपक्ष के जोरदार संघर्ष से ही सरकार को अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा।

केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि भाजपा सरकार ने चार धाम के साथ ही 51 मंदिरों का अधिग्रहण कर देवस्थानम बोर्ड में उसे शामिल कर दिया। किसी को भी विश्वास में नहीं लिया गया। इसके खिलाफ चार धाम के तीर्थपुरोहितों, हक-हकूकधारियों व कांग्रेस पार्टी ने सड़क से विधानसभा तक संघर्ष किया और आखिरकार सरकार ने आनन-फानन में इस निर्णय को वापस ले लिया। कांग्रेस ने सड़क से लेकर विधानसभा तक मजबूत विपक्ष के रूप में भूमिका निभाई। सभी तीर्थपुरोहितों, हक-हकूकधारियों और संपूर्ण विपक्ष को सड़क से विधानसभा तक किए गए संघर्ष की जीत पर बधाइयां दी। कहा कि बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, गंगोत्री-यमुनोत्री मंदिर समितियों को भंग कर उत्तराखंड के चारों धामों का नाम हटा कर जब बोर्ड के नाम से कानून बनाने का निर्णय 27 नवंबर 2019 को कैबिनेट में पास किया गया, उसी दिन से कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। कहा कि विधानसभा में केदारनाथ विधायक के रूप में मैंने इस बिल का विरोध किया। बिल को व्यापक चर्चा के लिए प्रवर समिति को भेजकर सभी संबंधित व्यक्तियों से सलाह के बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए था। लेकिन, बहुमत के अहंकार में भाजपा सरकार ने इस बिल को पास कर दिया। बीते दो साल से उत्तराखंड की धर्मावलंबी जनता इस निर्णय के विरोध में सड़क पर थी। कुछ महीने पहले मानसून सत्र में कांग्रेस पार्टी इस बिल को निरस्त करने के लिए प्राइवेट मेंबर बिल भी लाई थी। कहा कि यह सदन से सड़क तक संघर्ष का नतीजा है।

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