चमूबैंड से कांडा तक सड़क बनकर हुई तैयार, रंग लाया 26 साल का संघर्ष

पिथौरागढ़ जेएनएन वर्ष 1994 से सात किलोमीटर सड़क के लिए आवाज उठा रहे कांडा के ग्रामीणों

By JagranEdited By: Publish:Sat, 03 Oct 2020 05:05 AM (IST) Updated:Sat, 03 Oct 2020 05:05 AM (IST)
चमूबैंड से कांडा तक सड़क बनकर हुई तैयार, रंग लाया 26 साल का संघर्ष
चमूबैंड से कांडा तक सड़क बनकर हुई तैयार, रंग लाया 26 साल का संघर्ष

पिथौरागढ़, जेएनएन : वर्ष 1994 से सात किलोमीटर सड़क के लिए आवाज उठा रहे कांडा के ग्रामीणों का संघर्ष रंग लाया। गांव तक सड़क पहुंच गई है। सड़क बन जाने से दो गांवों के 120 परिवारों में खुशी की लहर है। गांव के लोगों को अब सड़क के अभाव में पलायन नहीं करना पड़ेगा।

चमू बैंड से धुरौली होते हुए कांडा तक सड़क बनाए जाने की मांग वर्ष 1994 में क्षेत्र के युवाओं ने उठाई। इसके लिए चमूबैंड-चौबाटी संघर्ष समिति का गठन हुआ। 12 दिनों तक चले अनशन के बाद सात किलोमीटर सड़क की स्वीकृति मिली। वर्ष 2000 में धुरौली तक सड़क की कटिंग पूरी हो गई, लेकिन शेष दो किमी हिस्से में से कुछ भूमि के वन क्षेत्र में आने के कारण सड़क निर्माण का मामला फिर लटक गया। ग्रामीण लगातार संघर्ष करते रहे। सामाजिक कार्यकर्ता केएन चौसाली ने बताया कि इसके लिए कई बार शासन-प्रशासन के चक्कर काटे गए। दो वर्ष पूर्व शेष हिस्से की स्वीकृति मिली। विभाग ने गांव की ओर सड़क काट दी, लेकिन धुरौली से गांव की ओर बनी सड़क का 600 मीटर हिस्सा फिर छोड़ दिया। कोविड-19 काल में वापस गांव लौटे युवाओं ने इस हिस्से को खुद ही अपने संसाधनों से काटने का बीड़ा उठाया। इसके लिए धनराशि जमा की गई, लेकिन संसाधन फिर भी कम पड़ गए। ऐसे में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष किशन सिंह भंडारी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने संसाधनों की व्यवस्था की और सड़क कटिंग में पूरा सहयोग दिया। बचे हुए 600 मीटर सड़क कीे कटिंग पूरी हो जाने के बाद अब गांव तक वाहन पहुंचने लगे हैं। सड़क बन जाने से कांडा के साथ ही चिटगालगांव के लोगों को भी फायदा मिल रहा है। ====== एक पीढ़ी नहीं देख पाई सड़क पिथौरागढ़: सात किलोमीटर सड़क निर्माण में 26 वर्ष का समय लग जाने के कारण गांव की एक पीढ़ी सड़क नहीं देख पाई। इस अवधि में तमाम लोगों का निधन हो गया। सड़क पहुंचने की उम्मीद खो चुके कई परिवारों ने पिथौरागढ़, टनकपुर, खटीमा में पलायन कर लिया। सड़क बन जाने के बाद पलायन कर चुके परिवार भी अब गांव लौटने का मन बना रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता देवकी नंदन ने कहा है कि सड़क बन जाने से क्षेत्र के फल उत्पादक अपना उत्पाद बाजार तक ला सकेंगे। इससे उनकी आजीविका बेहतर होगी।

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