स्वच्छता व सख्ती के बलबूते ओखलढूंगा को छू नहीं सका कोरोना

सीमांत जिला पिथौरागढ़ का ओखलढूंगा गांव स्वच्छता के बलबूते आज भी कोरोना संक्रमण से अछूता है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 10:58 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 10:58 PM (IST)
स्वच्छता व सख्ती के बलबूते ओखलढूंगा को छू नहीं सका कोरोना
स्वच्छता व सख्ती के बलबूते ओखलढूंगा को छू नहीं सका कोरोना

संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: सीमांत जिले पिथौरागढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कोरोना संक्रमण की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम है। यह स्थिति तब है जब जिले की दो तिहाई आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहती है। कई गांवों को न तो कोरोना संक्रमण की पहली लहर छू सकी और नहीं दूसरी लहर में कोई मामला सामने आया। ऐसे ही गांवों में शामिल है गंगोलीहाट तहसील का ओखलढूंगा गांव है।

तहसील मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित ओखलढूंगा की आबादी 60 के करीब है। दो तिहाई परिवार कृषि से जुड़े हैं। दूध और सब्जी उत्पादन कुछ परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है। इसके लिए ग्रामीण सुबह से खेतों में निकल पड़ते हैं। खेतों में कड़ी मेहनत के साथ गांव का स्वच्छ वातावरण गांवों के लोगों की अच्छी इम्यूनिटी का आधार है। गांव के लोग अपने लिए सब्जी का उत्पादन अपने खेतों में ही कर लेते हैं। सब्जी उत्पादन के लिए रासायनिक खाद उपयोग में नहीं लाई जाती। कोरोना की पहली लहर के दौरान ही गांव के लोगों ने कोविड गाइडलाइन को अच्छी तरह समझ लिया था। गांव के तमाम लोग बाहरी क्षेत्रों से वापस लौटे थे, जिन्हें क्वारंटाइन किया गया, इसके बाद ही गांव में प्रवेश दिया गया। दूसरी लहर के दौरान वापस लौटे लोग भी क्वारंटाइन के नियम का सख्ती से पालन कर रहे हैं। गांव को नियमित सैनिटाइज भी किया जा रहा है। नियमों के पालन से गांव ने अपने आप को संक्रमण से बचाया है। =========== कोरोना संक्रमण से निपटने की जिम्मेदारी सामूहिक है, इसे लोगों को समझना होगा। गांव के लोगों ने इसे समझा और गाइडलाइन का पूरी तरह पालन किया। इसी के चलते गांव अब तक संक्रमण से अछूता है।

- गणेश चंद्र कोठारी

========= गांव के लोग खेतों में कड़ी मेहनत करते हैं, सुबह पांच बजे से उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। खेतों में मेहनत के साथ ही हरी सब्जियों का सेवन ग्रामीणों की इम्यूनिटी को मजबूत बनाता है। खेतों में मेहनत के साथ ही ग्रामीण योग भी नियमित तौर पर कर रहे हैं।

- विनोद कोठारी, ग्रामीण

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