और कितनी जान लेगी ट्राली

पिथौरागढ और बागेश्वर को जोड़ने वाले लोहे के पुल के बहने के बाद आवाजाही के लिए लगी ट्राली खतरनाक हो गई है। फोटो फाइल 17 पीटीएच 07

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Jul 2021 06:40 PM (IST) Updated:Sat, 17 Jul 2021 06:43 PM (IST)
और कितनी जान लेगी ट्राली
और कितनी जान लेगी ट्राली

- रोज ट्राली से आने जाने वालों के हाथों में पड़ चुके हैं छाले फोटो फाइल: 17 पीटीएच 07

परिचय: पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले को जोड़ने वाली ट्राली संवाद सूत्र, नाचनी : तीन वर्ष पूर्व पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले को जोड़ने वाले लोहे के पुल के बहने के बाद आवाजाही के लिए लगी ट्राली अब तक दो लोगों की जान ले चुकी है। प्रतिदिन इस ट्राली से आवागमन करने वाले ग्रामीणों के हाथों में पड़े छाले ठीक नहीं हो रहे हैं। दो जिलों का मामला होने के पर भी तीन वर्ष बाद पैदल पुल का निर्माण नहीं हो सका है।

11 अगस्त 2018 को नामिक क्षेत्र में भारी वर्षा के चलते रामगंगा नदी ऊफान पर आ गई। नाचनी में पिथौागढ़ और बागेश्वर को जोड़ने वाला लोहे का पक्का पुल बह गया। इस पुल के बहने से बागेश्वर के कपकोट तहसील के सात गांव अलग-थलग पड़ गए। बागेश्वर जिले के इन तीन गांवों का बाजार पिथौरागढ़ जिले का नाचनी कस्बा पड़ता है। गांवों के बच्चे प्राथमिक शिक्षा से लेकर इंटर तक की शिक्षा के लिए नाचनी आते हैं। वहीं नाचनी के लोगों को भी नाते रिश्तेदारी तथा महिलाओं को घास के लिए नदी के दूसरी तरफ जाना पड़ता है।

पुल बहने के बाद पिथौरागढ़ प्रशासन के निर्देश पर लोनिवि ने यहां पर ट्राली लगाई । रस्सी खींच कर ही इस ट्राली से आरपार हुआ जाता है। कोरोना काल से पूर्व स्कूली बच्चों को ट्राली से पार कराने के लिए माता, पिता को एक तरफ से रस्सी खींचनी पड़ती थी। जिसके चलते उनके हाथों में छाले रहते थे। ट्राली से सफर करना बेहद दुष्कर है। हल्की सी असावधानी में छिटक कर नदी में गिरने का खतरा बना रहता है। अब तक दो लोग ट्राली से गिर कर जान गंवा चुके हैं।

इस संबंध में लोनिवि डीडीहाट का कहना है कि पुल का इस्टीमेट तैयार कर शासन को भेजा गया है। शासन से स्वीकृति मिलने पर पुल निर्माण किया जाएगा। शीतकाल में जब रामगंगा नदी का जलस्तर कम होता है तो पिथौरागढ़ और बागेश्वर के ग्रामीण नवंबर दिसंबर माह में नदी पर श्रमदान से अस्थाई पुल बना कर आवाजाही करते हैं। जून माह में नदी का जलस्तर बढ़ते ही पुल बह जाता है। जून से लेकर अक्टूबर माह तक ग्रामीणों के पास आवाजाही के लिए मात्र यह जानलेवा ट्राली ही माध्यम है।

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