सुख सुविधाओं का जीवन छोड़ पकड़ी गांव की राह

प्रखंड नैनीडांडा के अंतर्गत ग्रामसभा जमरिया के ग्राम विनोदू-बाखल निवासी किरन शर्मा का अभी तक का जीवन देश-विदेश में ही बीता लेकिन दिलो-दिमाग में अपनी मातृभूमि के वाशिदों के लिए कुछ करने की ललक हमेशा रही। यही कारण रहा कि वर्ष 2015 में वह परिवार सहित मुंबई लौटी तो फिर स्वरोजगार शुरू किया। यहां स्वरोजगार चल पड़ा तो फिर सीधे वहां से गांव पहुंची और अपने साथ ही ग्रामीणों की आर्थिकी सुधारने का बीड़ा उठा लिया। इसमें काफी हद तक उनको सफलता भी मिली है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 10:32 PM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 10:32 PM (IST)
सुख सुविधाओं का जीवन छोड़ पकड़ी गांव की राह
सुख सुविधाओं का जीवन छोड़ पकड़ी गांव की राह

जागरण संवाददाता, कोटद्वार: प्रखंड नैनीडांडा के अंतर्गत ग्रामसभा जमरिया के ग्राम विनोदू-बाखल निवासी किरन शर्मा का अभी तक का जीवन देश-विदेश में ही बीता, लेकिन, दिलो-दिमाग में अपनी मातृभूमि के वाशिदों के लिए कुछ करने की ललक हमेशा रही। यही कारण रहा कि वर्ष 2015 में वह परिवार सहित मुंबई लौटी तो फिर स्वरोजगार शुरू किया। यहां स्वरोजगार चल पड़ा तो फिर सीधे वहां से गांव पहुंची और अपने साथ ही ग्रामीणों की आर्थिकी सुधारने का बीड़ा उठा लिया। इसमें काफी हद तक उनको सफलता भी मिली है। विनोदू-बाखल लौट किरन ने मशरूम को ग्रामीणों का आर्थिकी का आधार बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने इस दिशा में कार्य शुरू किए। कोरोना संक्रमण ने उनकी मुहिम पर ब्रेक लगा दिए। अब जबकि कोरोना की लहर थम रही है, किरन ने एक बार फिर अपनी मुहिम शुरू कर दी है।

पौड़ी जनपद के पौड़ी शहर में जन्मी किरन के पिता जगदीश प्रसाद जोशी पालीटेक्निक कालेज में शिक्षक थे, जबकि माता कादंबरी जोशी गृहणी थी। 1996 में उनका विवाह नैनीडांडा प्रखंड के अंतर्गत ग्रामसभा जमरिया के ग्राम विनोदू-बाखल निवासी दिनेश शर्मा से हुआ। दिनेश आइटी सेक्टर से जुड़े थे व अरब देशों में उनकी सेवाएं थी। ऐसे में किरन भी दुबई, आबूधाबी, दोहा, कतर में रहीं। यहां उन्होंने विभिन्न विद्यालयों में बतौर शिक्षिका कार्य किया। 2015 में किरन अपने परिवार के साथ भारत वापस लौट आई व मुंबई में अपना ठौर बना लिया। दंपति ने मुंबई में ही रिसोर्ट खोल अपना कारोबार शुरू कर दिया। बकौल किरन, मुंबई लौटने के बाद उनकी तमन्ना वापस घर लौट अपने क्षेत्र के लिए कुछ करने की थी।

नतीजा, चार वर्षों तक उन्होंने मुंबई में रिसोर्ट संचालन में अपने जीवन साथी की मदद की और मई 2019 में विनोदू-बाखल लौट आईं। गांव लौट दंपति ने खेती में नए प्रयोग करने का मन बनाया, लेकिन जंगली सुअर व बंदरों ने उनके इस विचार को धरातल पर आने से पहले ही खत्म कर दिया। आखिर, किरन ने मशरूम पर हाथ आजमाने का मन बताया। इसके लिए उन्होंने देहरादून में दिव्या रावत से मशरूम उत्पादन का 15-दिवसीय प्रशिक्षण लिया व घर वापस लौट ग्रामीणों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण देना शुरू किया। इससे पहले, मुहिम रंग पकड़ती, कोरोना संक्रमण ने रफ्तार रोक ली। अब जबकि कोरोना संक्रमण काफी हद तक थम गया है, किरन एक बार फिर अपनी मुहिम में जुड़ गई हैं। यह है पूरी योजना

किरन की मानें तो वे नैनीडांडा प्रखंड को मशरूम हब के रूप में विकसित करना चाहती हैं। बताया कि वर्तमान में दस परिवार मशरूम उत्पादित कर उसे स्थानीय बाजार में बेच रहे हैं। लेकिन, भविष्य में वे नैनीडांडा के प्रत्येक गांव में मशरूम उत्पादन करवाने की तैयारी में हैं। उत्पादित मशरूम की बिक्री के लिए इन दिनों वे दिल्ली, काशीपुर, रामनगर में व्यापारियों से वार्ता कर बाजार तैयार कर रही हैं। बताया कि मशरूम उत्पादन बढ़ने के साथ ही प्रखंड में ही एक इकाई स्थापित की जाएगी, जहां मशरूम व अन्य स्थानीय उत्पादों से अचार सहित अन्य उत्पाद बनाए जाएंगे। 7 कोटपी 1

देहरादून में मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेती विनोदू-बाखल निवासी किरन शर्मा 7 कोटपी 2

नैनीडांडा प्रखंड में ग्रामीण महिलाओं को मशरूम उत्पादन के संबंध में जानकारी देती किरण शर्मा

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