वनकर्मियों की लापरवाही से हाथी की मौत

जागरण संवाददाता, कोटद्वार: दो दिन तक घायल हाथी जंगल में घूमता रहा, लेकिन वन महकमा हाथी को उपचार मुहै

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 03:00 AM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 03:00 AM (IST)
वनकर्मियों की लापरवाही से हाथी की मौत
वनकर्मियों की लापरवाही से हाथी की मौत

जागरण संवाददाता, कोटद्वार: दो दिन तक घायल हाथी जंगल में घूमता रहा, लेकिन वन महकमा हाथी को उपचार मुहैया नहीं करा पाया। नतीजा, घायल हाथी जंगल में यहां-वहां फिरता रहा और बाद में दम तोड़ दिया। मृत हाथी को पोस्टमार्टम के बाद दफना तो दिया गया, लेकिन हाथी की मौत कई सवाल भी छोड़ गई। सबसे बड़ा सवाल यही कि यदि हाथी को समय से उपचार मिल जाता तो शायद उसकी जान बच जाती।

लैंसडौन वन प्रभाग की कोटद्वार रेंज के अंतर्गत पनियाली बीट के जंगलों में हाथियों के मध्य संघर्ष हुआ और वन कर्मियों को भनक तक नहीं लगी। शुक्रवार शाम घायल हाथी पर विभागीय कर्मियों की नजर पड़ी, लेकिन विभाग ने हाथी को उपचार मुहैया कराने के बजाय हाथी पर नजर रखना शुरू कर दिया। हाथी के शरीर से खून रिसता रहा और वन महकमा खून के निशान देख हाथी के पीछे-पीछे चलता रहा। शनिवार दोपहर जब हाथी की मौत हो गई, तब विभागीय अधिकारी मौके पर पहुंचे और शव का पोस्टमार्टम कराकर दफना दिया। हाथी के शरीर पर गहरे घाव के निशान थे, जिसके चलते वन अधिकारी मामले को आपसी संघर्ष का मान रहे थे।

पोस्टमार्टम के बाद हाथी की मौत गहरे घावों के कारण अधिक खून रिसने के कारण बताई गई। हाथी तो दफना दिया गया, लेकिन एक बार फिर लैंसडौन वन प्रभाग में संसाधनों पर सवाल खड़े हो गए। दरअसल, लैंसडौन वन प्रभाग हाथियों के मामले में सबसे धनी वन प्रभाग माना जाता है, लेकिन संसाधनों की बात करें तो शून्य। हालात यह हैं कि 43327.60 हेक्टेयर में फैले लैंसडौन वन प्रभाग में वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा का जिम्मा मात्र 36 वन आरक्षियों पर है। प्रभाग में वन आरक्षियों के 88 पद हैं, जिनमें से 52 रिक्त पड़े हैं। इसी तरह वन दारोगा भी स्वीकृत 43 पदों के सापेक्ष मात्र 29 ही कार्यरत हैं जबकि, वन दारोगा और आरक्षी ही जंगल की रीढ़ होते हैं। इसके अलावा प्रभाग में जंगल गश्त के लिए न तो पर्याप्त चौपहिया वाहन हैं, न वन कर्मियों के पास पर्याप्त बंदूकें और न पर्याप्त वायरलैस सेट ही। ट्रैंक्यूलाइजर गन और घायल जीवों के उपचार को चिकित्सक भी प्रभाग में नहीं हैं। हाथी की मौत आपसी संघर्ष में हुई। प्रभाग में संसाधनों की घोर कमी है। पर्याप्त वनरक्षक न होने के कारण जंगल पर हर वक्त चप्पे-चप्पे पर नजर रख पाना काफी मुश्किल है। प्रभाग की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रभाग में पर्याप्त स्टाफ के साथ ही चिकित्सक भी होने चाहिए।

वैभव कुमार ¨सह, प्रभागीय वनाधिकारी, लैंसडौन वन प्रभाग

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