भारतीय सेना का हिस्सा बने 165 जांबाज, देश की रक्षा की खाई कसम
गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर में शानदार परेड का प्रदर्शन करने के बाद 165 जांबाज भारतीय सेना का हिस्सा बन गए।
लैंसडौन (पौड़ी गढ़वाल), जेएनएन। गर्व से तना सीना और एक साथ बढ़ते कदम। गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर में शानदार परेड का प्रदर्शन करने के बाद 165 जांबाज भारतीय सेना का हिस्सा बन गए। परेड के समीक्षा अधिकारी कर्नल एलएस महादेवन ने नव प्रशिक्षित रिक्रूटों को कसम दिलाई। उन्होंने कहा कि देश के लिए जान की बाजी लगाना ही भारतीय सेना की परंपरा है।
शनिवार को गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट सेंटर के डायस स्टेडियम में कोर-91 के 165 रिक्रूटों के लिए शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया। परेड की सलामी लेने के बाद समीक्षा अधिकारी कर्नल महादेवन ने कहा कि नौजवानों ने सेना में शामिल होकर अपने जीवन का सर्वोत्तम निर्णय लिया है। एक सैनिक के अंदर ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठता, बहादुरी और आज्ञाकारी जैसे गुणों का होना बेहद आवश्यक है।
राइफलमैन परवेश को गोल्ड मेडल
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए राइफलमैन परवेश सिंह को गोल्ड मेडल से नवाजा गया, जबकि टोकोम जेम्स को रजत और राइफलमैन आशीष कंडारी को कांस्य पदक से सम्मानित किया गया। राइफलमैन सूरज चंद को सर्वश्रेष्ठ ड्रिल, राइफलमैन अभिषेक सिंह को बेस्ट इन फिजिकल और एके सिंह बेस्ट फायरिंग के लिए पुरस्कृत किए गए। नायक विक्रम सिंह को उत्तम प्रशिक्षक और नायब सूबेदार साबर सिंह को कंपनी के उत्तम प्लाटून कमांडर के पुरस्कार से नवाजा गया।
कोरोना के चलते शामिल नहीं हो पाए परिजन
गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट सेंटर में आयोजित कसम परेड में पहली बार परिजन शामिल नहीं हो पाए। कोरोना संक्रमण के चलते रेजीमेंट ने परिजनों को आमंत्रित नहीं किया। परेड के दौरान भी शारीरिक दूरी के मानकों का पूरा पालन किया गया।
लगातार 72 घंटे अकेले ही चीनी फौज से लड़ते रहे राइफलमैन जसवंत सिंह रावत
शरीर तो मिट जाता है, पर जज्बा हमेशा ज़िंदा रहता है, यह उक्ति वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीन फौज से लड़ने वाले महावीर चक्र (मरणोपरांत) विजेता राइफलमैन जसवंत सिंह रावत पर सटीक बैठती है। भारतीय सेना इस जांबाज को ‘बाबा जसंवत’ के नाम से सम्मान देती है। जिस पोस्ट पर बाबा जसवंत सिंह रावत शहीद हुए थे, भारत सरकार ने उसे ‘जसवंत गढ़’ नाम दिया है। उनकी याद में गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट के मुख्यालय लैंसडौन में भी ‘जसवंत द्वार’ बनाया गया है।