इसलिए नहीं शुरू हो पा रहा गौलापार जू का काम, पर्यावरण मंत्रालय के नियम बने रोड़ा
गौलापार में प्रस्तावित चिड़ियाघर का मामला बजट के साथ-साथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के नियमों की वजह से भी अटका हुआ है। हकीकत यह है कि चार साल बाद भी वन विभाग चिड़ियाघर में कोई ऐसा काम नहीं करवा सकता जो कि गैरवानिकी के दायरे में आता हो।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : गौलापार में प्रस्तावित चिड़ियाघर का मामला बजट के साथ-साथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के नियमों की वजह से भी अटका हुआ है। हकीकत यह है कि चार साल बाद भी वन विभाग चिड़ियाघर में कोई ऐसा काम नहीं करवा सकता जो कि गैरवानिकी के दायरे में आता हो। जू के नाम पर फारेस्ट की जमीन ट्रांसफर नहीं होने की वजह से यह दिक्कत आ रही है। और लैंड ट्रांसफर कराने के लिए पहले छह करोड़ 61 लाख रुपये की जरूरत है। जो कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को जमा करने होंगे। उसके बाद ही प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है।
गौलापार में प्रस्तावित चिडिय़ाघर का डिजायन इंटरनेशन स्तर का है। मार्च 2015 में जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसके निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया तो लागत अस्सी करोड़ रुपये आंकी गई थी। चिडिय़ाघर जिस 412 हेक्टेयर जमीन पर बनना है वह तराई पूर्वी वन प्रभाग की गौला रेंज का जंगल है। जू सोसायटी ने यहां सुरक्षा दीवार और अंदर एक कृत्रिम झील का निर्माण करवाया है। झील वन्यजीवों की प्यास बुझाने का काम कर रही है। इसलिए गैरवानिकी काम में नहीं आती। लेकिन अन्य काम शुरू करवाने के लिए सबसे पहले इस लैंड को जू आथोरिटी के नाम किया जाना जरूरी है। जिसके लिए छह करोड़ 61 लाख रुपये की जरूरत है। तीन दिन पहले प्रमुख सचिव वन आनंद वद्र्धन की अध्यक्षता में आयोजित वीसी में यह मुद्दा उठा था। ताकि जल्द शासन से बजट मिल जाए।
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